गोरखपुर बीआरडी मेडिकल कॉलेज में कोरोना के गंभीर मरीजों का इलाज प्रोन वेंटिलेशन (पेट के बल लिटाकर ऑक्सीजन देना) के जरिए किया जा रहा है। इस तकनीक में गंभीर मरीजों को ऑक्सीजन लेवल की रफ्तार धीरे-धीरे बढ़ रही है। इससे मरीजों को काफी हद तक राहत मिली है। यह तकनीक अब तक बेहद कारगार साबित रही है। विशेषज्ञ होम आइसोलेट मरीजों को यह सलाह भी दे रहे हैं कि अगर सांस लेने में तकलीफ बढ़े तो पेट के बल लेटकर ऑक्सीजन लें।
बीआरडी मेडिकल कॉलेज में लगातार मौतों की बढ़ती संख्या को देखते हुए गंभीर मरीजों के इलाज में बदलाव किया जा रहा है। जिससे की मौत की दर को रोका जा सके। इसी कड़ी में कॉलेज प्रशासन ने ऐसे मरीजों को चिन्हित करने का काम किया है, जिन मरीजों को सांस (ऑक्सीजन लेवल नीचे गिरना) लेने में ज्यादा परेशानी हो रही है। ऐसे मरीजों को प्रोन वेंटिलेशन के जरिए ऑक्सीजन दिया जा रहा है।
इस तकनीक से ऑक्सीजन धीरे-धीरे शरीर में जाएगा और ऑक्सीजन लेवल को पूरी तरह से मेंटेंन कर देगा। बीआरडी मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. महिम मित्तल ने बताया कि यह तकनीक बेहद सफल रही है। अमेरिका के मेडिकल जनरल में यह बात सामने भी आ चुकी है कि प्रोन वेंटिलेशन तकनीक से 25 से 30 प्रतिशत मरीजों की रिकवरी की संभावना बढ़ गई है। बीआरडी में इस प्रयोग से कई मरीजों की जान बचाई जा चुकी है।
क्या है प्रोन वेंटिलेशन तकनीक
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के चेस्ट विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अश्वनी मिश्रा ने बताया कि अधिकांश कोरोना मरीजों में एआरडीएस (एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम) के शिकार हो रहे हैं। इसकी वजह से फेफड़ों में संक्रमण के कारण फूलने की ताकत नहीं बचती है। फेफड़ों के बाहर एक दीवार से बन जाता है। इसकी वजह से मरीज सांस नहीं ले पाता है और लगातार ऑक्सीजन लेवल गिरता जाता है।
उन्होंने बताया कि ऑक्सीजन की कमी से दूसरे अंग भी काम करने बंद कर देते हैं। पेट के बल लेटने से फेफड़े खुल जाते हैं। इस बीच नोजल से ऑक्सीजन ज्यादा जाता है। जब मरीज धीरे-धीरे सांस खींचने लगता है तो फेफड़े पूरी तरह से काम करना शुरू कर देते हैं। इसी तकनीक को प्रोन वेंटिलेशन कहते हैं।