लोकप्रिय और ट्रेंडिंग टॉपिक्स

विज्ञापन
Hindi News ›   Uttar Pradesh ›   Lucknow News ›   UP : The budget session of the Legislature became memorable for many things

UP : नजीर, नसीहत और नजरिये के लिए यादगार बना विधानमंडल का बजट सत्र, बड़ी भागीदारी से कायम हुआ इतिहास

अखिलेश वाजपेयी, लखनऊ Published by: दुष्यंत शर्मा Updated Sun, 05 Mar 2023 04:37 AM IST
सार

सत्र की 11 दिन चली कार्यवाही में मात्र 36 मिनट के स्थगन ने इस सत्र को संसदीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण पृष्ठ के रूप में न सिर्फ जोड़ा, बल्कि बजट और राज्यपाल के अभिभाषण पर सदन के करीब 250 सदस्यों की भागीदारी ने भी इसे ऐतिहासिक बना दिया।

UP : The budget session of the Legislature became memorable for many things
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विधानभवन के समक्ष समस्त विधायकों के साथ... - फोटो : अमर उजाला

विस्तार

विधानमंडल का बजट सत्र नजीर बनाने, नसीहत देने, राजनीतिक दलों तथा उनके नेताओं का नजरिया जनता को समझाने वाला रहा। सत्र की 11 दिन चली कार्यवाही में मात्र 36 मिनट के स्थगन ने इस सत्र को संसदीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण पृष्ठ के रूप में न सिर्फ जोड़ा, बल्कि बजट और राज्यपाल के अभिभाषण पर सदन के करीब 250 सदस्यों की भागीदारी ने भी इसे ऐतिहासिक बना दिया।


साल 2004 में भाजपा के तत्कालीन विधायक सलिल विश्नोई के साथ मारपीट के आरोप में कानपुर के तत्कालीन छह पुलिस कर्मियों को विधानसभा से एक दिन के कारावास की मिली सजा ने भी इस सत्र की उल्लेखनीय घटना रही। जो कार्यपालिका के लिए नजीर भी है। हालांकि विपक्ष एक बार फिर छाप छोड़ने या सरकार को घेरने में असफल रहा। सत्र के दौरान मुख्यमंत्री के बढ़ते आत्मविश्वास और अपने ही बुने जाल में घिरते दिखे विपक्ष ने प्रदेश की भावी बिसात की चालें भी काफी हद तक समझा दीं।


दशकों बाद सबसे कम स्थगन, अधिकारियों-कर्मचारियों को सजा और ज्यादा से ज्यादा विधायकों को बोलने का मौका देने के लिए सदन को देर रात तक चलाकर विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने इस सत्र को ऐतिहासिक ही नहीं बनाया, बल्कि उनके नए प्रयोगों की शुरुआत ने भी इसे यादगार बना दिया। सदन के साथ आमलोगों को जोड़ने, छात्रों को संसदीय परंपराओं से रूबरू कराने के लिए ज्यादा से ज्यादा बुलाने, आम लोगों को विधान मंडल के इतिहास की जानकारी देने के लिए तैयार डिजिटल वीथिका जैसे प्रयोग भी इस सत्र को यादगार बनाने वाले रहे।

नई परंपराओं के साथ नसीहतें भी
पुराने लोग बताते हैं कि आमतौर पर विधायकों के साथ सामूहिक फोटो विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने के अंतिम दिन होता है। पर, इस बार यह परंपरा तोड़ते हुए बजट सत्र के बाद ही ग्रुप फोटोग्राफी कराकर नई परंपरा शुरू की गई। सत्र से सियासी दलों को यह नसीहत भी मिली कि अतीत की गलतियां भविष्य में उत्तराधिकारियों को ही राजनीतिक तेवर बनाने तथा जनता के बीच भरोसा कायम करने में मुश्किलें डालती हैं। इसका उदाहरण प्रयागराज का उमेश पाल हत्याकांड रहा। इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की कोशिश में मुख्य विपक्षी दल सपा खुद ही घिर गई। पार्टी मुखिया अखिलेश यादव यह तर्क देते रहे कि उन्होंने अतीक को कोई संरक्षण नहीं दिया। पर, वे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस तीखे सवाल का जवाब नहीं दे पाए कि अतीक को पहली बार विधायक व सांसद क्या सपा ने नहीं बनाया था?

दमदार प्रदर्शन करने में चूकी सपा
कानून-व्यवस्था पर अतीक के संरक्षण के पलटवार ने सपा के हमले की धार भोथरी कर दी, तो भ्रष्टाचार पर सीएम योगी के बिना नाम लिए ऑस्ट्रेलिया में टापू और लंदन में होटल खरीदने के आरोप सपा के हमलों की धार और कुंद करते दिखे। बची कसर बजट पर मुख्यमंत्री के भाषण के दौरान नेता प्रतिपक्ष अखिलेश की सदन से गैरहाजिरी ने पूरी कर दी। इस स्थिति ने भी सत्तापक्ष को विपक्ष पर बढ़त बनाने का मौका दिया। हालांकि प्रयागराज की घटना पर पक्ष-विपक्ष दोनों तरफ से भाषाई संयम व मर्यादा टूटती दिखी, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने लंच डिप्लोमेसी से इसे मुद्दा नहीं बनने दिया। उमेश पाल हत्याकांड के अलावा विधायक के पिटाई प्रकरण में विशेषाधिकार हनन के दोषी अधिकारियों को सजा की घोषणा के दौरान दूसरे मुद्दे पर बहिगर्मन तथा अखिलेश के इसे परंपरा के विपरीत बताने वाले बयान ने भी भाजपा को ही उस पर हमले का मौका दिया। इस प्रकरण ने तत्कालीन सपा सरकार की भूमिका पर लोगों को अंगुली उठाने का अवसर भी दिया।

विभाजित विपक्ष ने आसान की सत्तापक्ष की राह
विपक्ष पूरे सत्र में सत्तापक्ष को घेरने में नाकाम रहा। वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र भट्ट कहते हैं कि महंगाई, कानून-व्यवस्था तथा भ्रष्टाचार को लेकर सपा सरकार के खिलाफ खूब बयान देती है। लेकिन वह इन्हें सदन में मुद्दा नहीं बना पाई। बिजली दरें बढ़ाने का प्रस्ताव बड़ा मुद्दा था। लेकिन इस पर भी वह तैयारी के साथ सदन में नहीं दिखी। विपक्षी दूसरे दल भी उसके साथ नहीं दिखे। भट्ट की बात सही भी है, क्योंकि मुख्य विपक्षी दल की भूमिका अन्य दलों को साथ लेकर सत्तापक्ष को जवाबदेह बनाने की होती है। रणनीतिक तौर पर सपा को उन मुद्दों को नहीं उठाना चाहिए था, जिन पर दूसरों से उसे समर्थन मिलने की उम्मीद नहीं थी। पर, पार्टी के अपने कुछ सदस्यों की इस मुद्दे पर सार्वजनिक असहमति के बावजूद सदन में भी स्वामी प्रसाद मौर्य की रामचरित मानस की कुछ चौपाइयों पर विवादित टिप्पणियों के साथ खड़ी दिखी। इससे भी मुख्यमंत्री को उन पर हमलावर होने का मौका मिल गया। जातीय जनगणना के मुद्दे पर भी ओमप्रकाश राजभर जैसे विपक्ष के ही कुछ सदस्यों ने निशाना बनाकर चेता दिया कि यूपी की सियासी बिसात पर भाजपा को घेरने के लिए सपा को अभी काफी कुछ करने की जरूरत है।
विज्ञापन
 
विज्ञापन
विज्ञापन

रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे|
Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

विज्ञापन
विज्ञापन

एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें

फॉन्ट साइज चुनने की सुविधा केवल
एप पर उपलब्ध है

बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही
एप में पढ़ें

क्षमा करें यह सर्विस उपलब्ध नहीं है कृपया किसी और माध्यम से लॉगिन करने की कोशिश करें

Followed