कान्हा की नगरी मथुरा से बाल्यकाल में रामनगरी आए नृत्यगोपाल दास कृष्ण व रामभक्ति के अनुपम उदाहरण हैं। वे दोनों नगरी भक्तित्व अनुराग के प्रमुख संत के साथ जहां श्रीरामजन्मभूमि के साथ श्रीकृष्ण जन्मभूमि न्यास के भी अध्यक्ष हैं। राममंदिर आंदोलन में परमहंस के बाद सर्वेसर्वा हैं, छह दिसंबर की घटना से लेकर इसके पहले व बाद के तमाम संघर्षों में कांग्रेस, सपा-बसपा सरकारों में तरह-तरह के उत्पीडन भी झेलने पड़े। लेकिन भक्ति व समर्पण का प्रतिफल रहा कि अब सुप्रीम कोर्ट से रामलला के पक्ष में आए फैसले के बाद राममंदिर निर्माण के लिए गठित श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के ट्रस्टियों ने उन्हें बुधवार को सर्वसम्मति से अध्यक्ष मनोनीत किया है। वे रामलला के भव्य व दिव्य मंदिर का अब सपना साकार करने वाले प्रमुख शिल्पी बन गए हैं।
राममंदिर आंदोलन में जिन प्रमुख संतों ने अयोध्या में कोर्ट से लेकर सड़क तक संघर्ष किया था, उनमें दिगंबर अखाड़ा के महंत परमहंस रामचंद्र दास के बाद मणिरामदास छावनी के महंत नृत्यगोपाल दास हैं। जन्मभूमि को मुक्त कराने हेतु जन-जागरण के लिए सीतामढ़ी से अयोध्या पहुंची राम-जानकी रथ यात्रा मणिरामदास छावनी में ही रूकी थी। परमहंस कोर्ट में सक्रिय थे तो नृत्यगोपाल आंदोलन के संतों-महंतों व कारसवेकों के लिए साधन-सुविधाएं रात दिन एक उपलब्ध कराते।
जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी शिवरामाचार्य जी महाराज के द्वारा श्रीराम जन्मभूमि न्यास की स्थापना हुई। दिसंबर 1985 की द्वितीय धर्म संसद उडुपी (कर्नाटक) में परमहंस की अध्यक्षता में निर्णय हुआ, 'यदि 8 मार्च 1986 को महाशिवरात्रि तक रामजन्मभूमि पर लगा ताला नहीं खुला तो महाशिवरात्रि के बाद ताला खोलो आन्दोलन, ताला तोड़ो में बदल जाएगा। 8 मार्च के बाद प्रतिदिन देश के प्रमुख धर्माचार्य इसका नेतृत्व करेंगे। इसी दौरान जब परमहंस रामचन्द्र दास ने 8 मार्च 1986 तक श्रीराम जन्मभूमि का ताला नहीं खुला तो मैं आत्मदाह करूंगा' की घोषणा करके सनसनी फैला दी तो नृत्यगोपाल आंदोलन के प्रमुख कर्ता-धर्ता थे।
परिणाम यह हुआ कि 1 फरवरी 1986 को ही ताला खुल गया। जनवरी, 1989 में प्रयाग महाकुम्भ के अवसर पर आयोजित तृतीय धर्मसंसद में शिला पूजन एवं शिलान्यास में अहम भूमिका निभाई। इस अभिनव शिलापूजन कार्यक्रम ने सम्पूर्ण विश्व के रामभक्तों को जन्मभूमि के साथ प्रत्यक्ष जोड़ दिया। श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष जगद्गुरु रामानन्दाचार्य पूज्य स्वामी शिवरामाचार्य जी महाराज का साकेतवास हो जाने के पश्चात् अप्रैल, 1989 में परमहंस को श्रीराम जन्मभूमि न्यास का कार्याध्यक्ष घोषित किया गया। तब नृत्यगोपाल दास उपाध्यक्ष बने।
परमहंस की दृढ़ संकल्प शक्ति के परिणामस्वरूप ही निश्चित तिथि, स्थान एवं पूर्व निर्धारित शुभ मुहूर्त 9 नवम्बर 1989 को शिलान्यास कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। 30 अक्टूबर 1990 की कारसेवा के समय अनेक बाधाओं को पार करते हुए अयोध्या में आए हजारों कारसेवकों का नेतृत्व व मार्गदर्शन देने में नृत्यगोपाल दास की अहम भूमिका रही। 2 नवम्बर 1990 को आशीर्वाद लेकर कारसेवकों ने जन्मभूमि के लिए कूच किया। उस दिन हुए बलिदान के वे स्वयं साक्षी थे।
अक्टूबर 1982 में दिल्ली की धर्म संसद में 6 दिसम्बर की कारसेवा के निर्णय में मुख्य भूमिका निभाई। स्वयं अपनी आंखों से उस ढांचे को बिखरते हुए देखा था, जिसका स्वप्न वह अनेक वर्षों से अपने मन में संजोए थे। अक्टूबर 2000 में गोवा में केन्द्रीय मार्गदर्शक मण्डल की बैठक, जनवरी, 2002 में अयोध्या से दिल्ली तक की चेतावनी सन्त यात्रा, 27 जनवरी 2002 को प्रधानमंत्री से मिलने गए सन्तों के प्रतिनिधि मण्डल में अहम किरदार थे।
मार्च 2002 के पूर्णाहुति यज्ञ के समय शिलादान को लेकर भी संघर्ष किया। सितंबर, 2002 को केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की लखनऊ बैठक में गोरक्ष पीठाधीश्वर महन्त अवैद्यनाथ जी महाराज की अध्यक्षता में श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण आन्दोलन उच्चाधिकार समिति का निर्माण हुआ। 26 मार्च 2003 को दिल्ली में आयोजित सत्याग्रह के प्रथम जत्थे का नेतृत्व कर पूज्य परमहंस रामचन्द्र दास के साथ गिरफ्तारी देने वालों में नृत्यगोपाल दास भी थे। 29-30 अप्रैल 2003 को अयोध्या में आयोजित उच्चाधिकार समिति की बैठक में श्रीराम संकल्पसूत्र संकीर्तन कार्यक्रम की योजना का निर्णय हुआ। इसके द्वारा दो लाख गांवों के दो करोड़ रामभक्त प्रत्यक्ष रूप से मन्दिर के साथ सहभागी बनाए गए।
इसके बाद परमहंस के गोलोकवाली होने पर 2003 में नृत्यगोपाल दास न्यास के अध्यक्ष बने। नृत्यगोपाल दास की अगुवाई में ही राममंदिर के लिए पत्थर तराशी तेज हुई, मंदिर मॉडल में लगने वाले दो लाख घनफुट पत्थर में सवा लाख घनफुट पत्थर तराशे जा चुके हैं। न्यास के पास करोड़ों की भूमि समेत नकदी भी है।