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प्रयागराज स्थित कमला नेहरू मेमोरियल हॉस्पिटल के एक चिकित्सक ने पीड़ित महिला की छाती में हुई गांठ का इलाज फाइलेरिया बताकर करता रहा। गलत इलाज के कारण मरीज की हालत बिगड़ने पर परिजन ने उसे बीएचयू में दिखाया। जहां परीक्षण के बाद डॉक्टर ने उसे कैंसर बताते हुए इलाज के लिए टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल मुंबई ले जाने का सुझाव दिया।
इलाज के दौरान उसका कैंसर असाध्य हो कर शरीर के अन्य अंगों तक फैल गया और आठ मई 2013 को पीड़िता की मौत हो गई। इस मामले में राज्य उपभोक्ता आयोग के न्यायिक सदस्य राजेन्द्र सिंह और विकास सक्सेना की पीठ ने हॉस्पिटल के निदेशक व चिकित्सक डॉ.आरएन सक्सेना को इलाज में घोर लापरवाही बरतने का दोषी मानते हुए 50 लाख का हर्जाना लगाया है।
पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि जांच रिपोर्ट में ब्रैस्ट कैंसर की प्रारम्भिक शंका के पर्याप्त साक्ष्य के बावजूद मरीज का इलाज किसी भी कैंसर रोग विशेषज्ञ से न दिखाना अस्पताल व चिकित्सक की तरफ से सेवा में कमी के साथ इलाज में लापरवाही दर्शाता है। इस लिए निदेशक व दोषी चिकित्सक मृतका के परिजनों को मानसिक उत्पीड़न, शारीरिक कष्ट, अवसाद, चिकित्सीय खर्च व वाद व्यय इत्यादि के बतौर 50 लाख रुपये की धनराशि 45 दिन में 7 अगस्त 2012 से 10 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज की दर के साथ चुकाए।
मृतका गीता देवी के पति की तरफ से इलाज में बरती गई लापरवाही का हर्जाना दिलवाने के लिए राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील दाखिल की गई थी। इसमें बताया गया कि उसकी पत्नी के बाएं ब्रैस्ट के पास एक छोटी गांठ होने पर 7 अगस्त 2012 को कमला नेहरू मेमोरियल हास्पिटल, इलाहाबाद के सर्जन डॉ. रवींद्र नारायण सक्सेना को दिखाया था। अल्ट्रासाउंड व मेमोग्राफी जांच के बाद डॉ. सक्सेना ने इसे फाइलेरिया का लक्षण बताते हुए इलाज शुरू कर दिया।
21 दिन तक दवा खाने के बाद भी मरीज की हालत नहीं सुधरी और सूजन भी काफी बढ़ गई। इसके बाद भी डॉ. सक्सेना ने इस मामले को किसी अन्य डॉक्टर के पास रिफर नहीं किया। मुंबई में टाटा मेमोरियल हास्पिटल के चिकित्सकों ने बताया कि शुरूआत में गलत इलाज होने के कारण ही उसका कैंसर असाध्य हो कर शरीर के अन्य अंगों तक फैल गया। इलाज के दौरान ही गीता की मौत हो गई।