रामपुर/डंसा। सदियों से चली आ रही देव परंपरा का निर्वहन करते हुए मकर संक्रांति के पर्व पर आज शिमला और कुल्लू जिला के सभी देवी-देवता स्वर्ग प्रवास के लिए प्रस्थान करेंगे। अब एक माह तक मंदिर के कपाट बंद रहेंगे और कोई भी धार्मिक अनुष्ठान नहीं हो सकेगा। सभी देवता इंद्र देव की अगुवाई में साल भर के लिए अच्छे बुरे फलादेशों के संदर्भ में विचार-विमर्श करेंगे। देवी-देवताओं के स्वर्ग प्रवास पर जाने के बाद देवालयों के कपाट बंद करवा दिए जाते हैं। अब श्रद्धालुओं के लिए एक माह तक मंदिर सूने पड़ जाएंगे।
देवी-देवताओं के स्वर्ग प्रवास रवाना होने से पहले गुरों के माध्यम से धूप और खिचड़ी परोस कर विधि विधान से पूजा अर्चना कर विदाई करवाई जाती है। लोग एक माह तक अपने आराध्य देवताओं को खुले आसमान की ओर धूप बत्ती (पाजा) छोड़ते हैं। लोहड़ी की रात सुबह तड़के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं विभिन्न पकवान बनाने में व्यस्त हो जाती हैं।
मान्यता है कि कुल्लू के जनपद देवी-देवता एक सप्ताह के अंतराल में देवालयों में प्रवेश करते हैं। वहीं अधिकांश देवता एक माह के स्वर्ग प्रवास के पश्चात ही फाल्गून संक्रांति को मंदिरों में लौटते हैं। मंगलवार को रामपुर उपमंडल के देवता साहिब लक्ष्मी नारायण कुमसू, देव जाख रचोली, देवता दमुख डंसा, छिज्जा देवता साहिब देवठी, देवता साहिब गसो सहित सभी देवी-देवता स्वर्ग प्रवास को निकलेंगे। परशुराम मंदिर कमेटी प्रधान खेलचंद नेगी, महासचिव जेएल डमालू, एसडी कायथ, फूला सिंह, साध राम, भगत राम, ज्ञान हुड्डन, श्रवण कुमार, रूप दास और चरण सिंह के अनुसार प्राचीन काल से चली आ रही इस धार्मिक परंपरा आधुनिकता के दौर में भी ग्रामीण क्षेत्र के लोगों ने संजोए रखा है। धार्मिक परंपरा के अनुरूप देवताओं को स्वर्ग प्रवास के लिए प्रस्थान करवाया जाता है।
रामपुर/डंसा। सदियों से चली आ रही देव परंपरा का निर्वहन करते हुए मकर संक्रांति के पर्व पर आज शिमला और कुल्लू जिला के सभी देवी-देवता स्वर्ग प्रवास के लिए प्रस्थान करेंगे। अब एक माह तक मंदिर के कपाट बंद रहेंगे और कोई भी धार्मिक अनुष्ठान नहीं हो सकेगा। सभी देवता इंद्र देव की अगुवाई में साल भर के लिए अच्छे बुरे फलादेशों के संदर्भ में विचार-विमर्श करेंगे। देवी-देवताओं के स्वर्ग प्रवास पर जाने के बाद देवालयों के कपाट बंद करवा दिए जाते हैं। अब श्रद्धालुओं के लिए एक माह तक मंदिर सूने पड़ जाएंगे।
देवी-देवताओं के स्वर्ग प्रवास रवाना होने से पहले गुरों के माध्यम से धूप और खिचड़ी परोस कर विधि विधान से पूजा अर्चना कर विदाई करवाई जाती है। लोग एक माह तक अपने आराध्य देवताओं को खुले आसमान की ओर धूप बत्ती (पाजा) छोड़ते हैं। लोहड़ी की रात सुबह तड़के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं विभिन्न पकवान बनाने में व्यस्त हो जाती हैं।
मान्यता है कि कुल्लू के जनपद देवी-देवता एक सप्ताह के अंतराल में देवालयों में प्रवेश करते हैं। वहीं अधिकांश देवता एक माह के स्वर्ग प्रवास के पश्चात ही फाल्गून संक्रांति को मंदिरों में लौटते हैं। मंगलवार को रामपुर उपमंडल के देवता साहिब लक्ष्मी नारायण कुमसू, देव जाख रचोली, देवता दमुख डंसा, छिज्जा देवता साहिब देवठी, देवता साहिब गसो सहित सभी देवी-देवता स्वर्ग प्रवास को निकलेंगे। परशुराम मंदिर कमेटी प्रधान खेलचंद नेगी, महासचिव जेएल डमालू, एसडी कायथ, फूला सिंह, साध राम, भगत राम, ज्ञान हुड्डन, श्रवण कुमार, रूप दास और चरण सिंह के अनुसार प्राचीन काल से चली आ रही इस धार्मिक परंपरा आधुनिकता के दौर में भी ग्रामीण क्षेत्र के लोगों ने संजोए रखा है। धार्मिक परंपरा के अनुरूप देवताओं को स्वर्ग प्रवास के लिए प्रस्थान करवाया जाता है।