किसी से किया गया वादा अगर पूरा होता है तो खुशी होना लाजिमी है, लेकिन खुशी वहां कम हो जाती है, जब जिससे वादा किया था, वहीं खुशियां मनाने साथ न हो।
यह कहना है कि डबवाली अग्निकांड की पीड़िता डॉ. गुजन कामरा का। वे आज ऑस्ट्रेलिया की मानी हुई डॉक्टर हैं। अग्निकांड ने उनके मन पर गहरा आघात तो किया लेकिन वो मां से किए गए वादे को तोड़ न सका।
डॉ. गुंजन मां से वादा से किया था कि वह एक दिन डॉक्टर बनकर दिखाएगी। सो डॉक्टर बनी और आज उनकी प्रतिदिन की कमाई 365 हजार डॉलर से अधिक है।
अग्निकांड में मां को खोने के बाद गुंजन ने अपनी पढ़ाई जारी रखी। इस तरह सन 2000 में उन्होंने एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त की।
अग्निकांड से पीड़ित गुंजन कामरा शहर की ऐसी पहली लड़की है, जो लड़कों को पछाड़कर चिकित्सक बनी। आज वह ऑस्ट्रेलिया में चिकित्सीय सेवाएं दे रही हैं।
जलते बच्चों को बचाने गई मां, फिर नहीं लौटी
23 दिसंबर 1995 को गुंजन अपने पिता मुकेश कामरा, मां नरेश कामरा, भाई वरुण कामरा के साथ डीएवी स्कूल का वार्षिक कार्यक्रम देखने के लिए राजीव मैरिज पैलेस में गई थी।
उन दिनों गुंजन का एमबीबीएस के लिए हुबली में एडमिशन हुआ था। वहीं डीएवी स्कूल की प्रिंसिपल उनकी मां नरेश कामरा ही थीं।
गुंजन और मुकेश कामरा आग में झुलसने के बाद बाहर आ गए। हादसे के वक्त वरुण भी अपनी मां नरेश कामरा के साथ बाहर आ गया था।
मैरिज पैलेस से सही सलामत बाहर आने के बावजूद प्रिंसिपल नरेश कामरा ने बच्चों को आग में देखा। वे बच्चों को आग के लपटों की बीच नहीं देख सकी और उन्हें बचाने दौड़ पड़ी।
बच्चों को बचाते हुए वे काफी जल गई जिसके बाद उन्हें बचाया नहीं जा सका। वहीं आग में झुलसने के बाद गुंजन तथा मुकेश कामरा को डीएमसी लुधियाना में ले जाया गया। आग में 25 से 30 फीसदी तक झुलसने के बाद गुंजन तीन माह तक उपचाराधीन रही।
पांच साल तक चला उपचार
आग में झुलसने के बावजूद गुंजन एमबीबीएस करने के साथ-साथ करीब पांच साल तक उपचार लेती रही। डिग्री मिलने के बाद वर्ष 2002 में गुंजन की शादी बंगलुरु निवासी मनोवैज्ञानिक प्रसुन्न से हुई।
बंगलुरु में एक साल तक प्रेक्टिस करने के बाद वर्ष 2004-06 में पैथोलॉजी की डिग्री प्राप्त की। बाद में अपने पति के साथ जुलाई 2006 में ऑस्ट्रेलिया शिफ्ट हो गई।
ऑस्ट्रेलिया ने सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक के अवार्ड से नवाजा
भारत में चिकित्सीय डिग्री लेकर ऑस्ट्रेलिया गई इस अग्निकांड पीड़िता ने वहां भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। ऑस्ट्रेलिया में चिकित्सा सेवाएं देने के लिए उसने एक वर्ष तक कड़ी मेहनत की।
बाद में उसका एग्जाम हुआ। जिसमें उसने करीब 80 फीसदी से ऊपर अंक प्राप्त किए। ऑस्ट्रेलिया में चिकित्सीय क्षेत्र में सरकारी जॉब मिलने पर गुंजन ने फिजिशयन के तौर पर टैंमब्रथ सिटी में कार्य शुरू किया।
ऑस्ट्रेलियन सरकार ने उसे वर्ष 2012 की सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक के अवार्ड से नवाजा। इन दिनों वह क्विंसलैंड (ब्रिसबेन) में कार्यरत है। डबवाली अग्निकांड को 19 वर्ष बीत चुके हैं।
यह पहला मौका है कि गुंजन डबवाली में है। वह तीन साल बाद भारत लौटी है। हादसे के बाद पहली बार वह अग्निकांड स्मारक पर कदम रखेगी।
प्रतिदिन कमा रही 1000 डॉलर
ऑस्ट्रेलिया में चिकित्सीय सेवा दे रही गुंजन काम के बदले प्रतिदिन 1000 डॉलर कमा रही है। अगर इसकी तुलना भारतीय मुद्रा से की जाए तो वह हर रोज 63 हजार रुपये से ज्यादा कमा रही है।
गुंजन के अनुसार ऑस्ट्रेलिया में पैसा काम के बदले मिलता है। जिस दिन काम नहीं, उस दिन वेतन नहीं। यहीं नहीं ऑस्ट्रेलिया में पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत काम किया जा सकता है।
गुंजन को सताता है अग्निकांड का दर्द
गुंजन के अनुसार अग्निकांड का दर्द उसे हमेशा सताता है। देश में आज भी चिकित्सीय सेवाओं का अभाव है। वे मानती हैं कि प्रत्येक मेडिकल संस्थान में बर्न यूनिट स्थापित नहीं किया जा सकता।
लेकिन ऑस्ट्रेलिया की तरह टेली कांफ्रेंसिंग की जा सकती है। विशेषज्ञ डॉक्टरों से संबंधित मरीज का पूरा बायोडाटा शेयर करके उपचार किया जा सकता है।
दादी गई थी, बात में पता चला
गुंजन का कहना है कि मां को दिया वायदा बेशक पूरा हो गया। लेकिन वो आज इस दुनियां में नहीं हैं। 23 दिसंबर 1995 को उसके भाई ने कार्यक्रम में भागीदारी की थी।
अपने पोते को कार्यक्रम करता देखने के लिए दादी रेशमा देवी उनसे पहले ही बिना बताए चली गई। उनकी मृत्यु की खबर हादसे के आठ दिन बाद लगी।