किताबों के इस मौसम में जब कई मशहूर और प्रशासनिक हस्तियों की किताबें चर्चा में हैं, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बेटी दमन सिंह ने भी अपने पिता पर एक किताब लिखी है जिसका आज विमोचन है।
हालांकि, बुक रिलीज के ठीक एक दिन पहले उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उन्हें दुख है कि उनके पिता के दस साल के शासन के बाद उनकी सरकार को ऐसा जनमत मिला।
दमन ने माना कि इससे उन्हें दुख्ा तो हुआ लेकिन, जनमत का सम्मान किया जाना ही लोकतंत्र की परंपरा है।
गौरतलब है कि दमन सिंह की किताब 'क्ट्रिकटली पर्सनल : मनमोहन एंड गुरुशरण' का आज विमोचन होना है। दमन ने करन थापर के शो 'नथिंग बट द ट्रूथ' में इस बात का खुलासा करते हुए कहा कि उनके परिवार को इस लोकसभा परिणाम से दुख हुआ क्योंकि उनके पिता ने कड़ी मेहनत की थी।
आगे पढ़िए दमन सिंह द्वारा किताब पर किए गए खुलासे की पूरी कहानी
ऐसे समय में जब मनमोहन सिंह सवालों के घेरे में हैं और उन पर संजय बारू से लेकर नटवर सिंह तक सभी सवाल उठा रहे हैं उन्हें बचाने के लिए उनकी बेटी दमन सिंह ने मोर्चा संभाला है।
'स्ट्रिक्टली पर्सनल,मनमोहन एंड गुरूशरन' में उन्होंने साफ किया है कि उनके पिता न तो चालाक राजनीतिज्ञ हैं और न ही अवसरवादी हैं। अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में उन्होंने मनमोहन सिंह की जिंदगी से जुड़े कई पक्षों का खुलासा किया है।
सवाल-जवाब की प्रक्रिया में उन्होंने कई बातें कहीं जिनमें कुछ खास इस प्रकार हैं
हां, 2009 के चुनाव में उन्होंने कहा था कि हम दोबारा सत्ता में नहीं आ रहे हैं। उन्हें ऐसा लगता था, लेकिन ये बात उन्होंने बहुत गंभीरता से नहीं कही थी। जब उनसे उनके पिता और नरसिंहाराव के बीच संबंधों के बारे में पूछा गया तो दमन ने बताया कि नरसिंहाराव ने मेरे पिता को फोन किया और रातों रात उन्हें देश का वित्त मंत्री बना दिया गया। देश का बजट पेश करने के लिए उनके पास केवल एक महीने का समय था। उस समय अर्थव्यवस्था बहुत ही बुरे हाल में थी।
आर्थिक नीति में जो भी आमूल बदलाव किए गए उनके आइडिया भले ही मेरे पिता ने दिए थे, लेकिन वो सब नरसिंहाराव जी की वजह से अमल में लाए जा सके। मेरे पिता हमेशा कहते थे कि वो एक अल्पमत सरकार थी जिसने देश के अर्थव्यवस्था की दशा और दिशा हमेशा के लिए बदल दिया। मेरे पिता को लगता है कि अगर उनके पास पांच साल और होते तो वो और भी बहुत कुछ कर सकते थे। उनका कहना है कि भारत में तब तक कोई बदलाव लाना मुश्किल है जब तक व्यवस्था पूरी तरह घ्वस्त न हो जाए। लोकतंत्र में व्यवस्था ऐसे ही चलती है।
लोगों पर ऊपर से कोई क्रांतिकारी फैसला थोपा नहीं जा सकता। जब उन्होंने बदलावों की शुरूआत की तो कांग्रेस पार्टी में ही उनको विरोध का सामना करना पड़ा। उन्हें लगातार लोगों को यह समझाना पड़ता था कि वो ऐसा क्यों कर रहे हैं। नरसिंहाराव लगातार पार्टी को इस बारे में सूचित करते रहते थे।
जब उनसे ये पूछा गया कि बदलाव लाने के दौरान उनके पिता पर पार्टी के लोगों ने हमला भी किया तो उन्होंने कहा कि सी सुब्रमनयम मेरे पिता के प्रशंसक थे। किताब लिखने के दौरान मुझे पता चला कि उन्होंने हरित क्रांति को आगे बढ़ाना चाहा था, लेकिन उन्हें अमेरिका का एजेंट कहा गया। सुब्रमनयम अपनी सीट हार गए। पथ प्रदर्शकों को कभी भी उनका उचित सम्मान नहीं मिलता और न ही कभी उनको याद किया जाता है।
दमन से जब ये पूछा गया कि क्या उन्हें लगता है कि उनके पिता राजनीति के लिए सही आदमी नहीं हैं तो उन्होंने कहा कि मुझे नहीं लगता कि वो राजनीति के लिए सही व्यक्ति नहीं हैं, लेकिन राजनीतिक जोड़-तोड़ करना उन्हें नहीं आता। वो अवसरवादी नहीं हैं। लेकिन फिर भी वो राजनीति कर सके, क्या इसे उनकी सफलता नहीं कहा जाना चाहिए। उन्हें अनिच्छुक राजनीतिज्ञ कहना भी गलत है क्योंकि उन्हें चुनौतियों से खेलना अच्छा लगता है और वो खतरों से खेलते हैं।
किताबों के इस मौसम में जब कई मशहूर और प्रशासनिक हस्तियों की किताबें चर्चा में हैं, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बेटी दमन सिंह ने भी अपने पिता पर एक किताब लिखी है जिसका आज विमोचन है।
हालांकि, बुक रिलीज के ठीक एक दिन पहले उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि उन्हें दुख है कि उनके पिता के दस साल के शासन के बाद उनकी सरकार को ऐसा जनमत मिला।
दमन ने माना कि इससे उन्हें दुख्ा तो हुआ लेकिन, जनमत का सम्मान किया जाना ही लोकतंत्र की परंपरा है।
गौरतलब है कि दमन सिंह की किताब 'क्ट्रिकटली पर्सनल : मनमोहन एंड गुरुशरण' का आज विमोचन होना है। दमन ने करन थापर के शो 'नथिंग बट द ट्रूथ' में इस बात का खुलासा करते हुए कहा कि उनके परिवार को इस लोकसभा परिणाम से दुख हुआ क्योंकि उनके पिता ने कड़ी मेहनत की थी।
आगे पढ़िए दमन सिंह द्वारा किताब पर किए गए खुलासे की पूरी कहानी