दिल्ली दंगा मामले में आंतकरोधी कानून (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार जेएनयू की छात्राओं देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और जामिया छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को मिली जमानत के खिलाफ दिल्ली पुलिस सुप्रीम कोर्ट जा पहुंची है। दिल्ली पुलिस ने तीनों छात्रों की जमानत का विरोध करते हुए याचिका दायर की है।
बता दें कि इन तीनों को मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट से जमानत मिली थी और आज उन्हें रिहा होना था। लेकिन इससे पहले ही तीनों की जमानत के खिलाफ पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी है।
सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर कर हाईकोर्ट द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण पर सवाल उठाए हैं। दिल्ली पुलिस ने कहा है कि तीन अलग-अलग जमानत के फैसले बिना किसी आधार के थे और चार्जशीट में एकत्रित और विस्तृत सबूतों की तुलना में सोशल मीडिया कथा पर आधारित प्रतीत होते हैं।
अपनी अपील में दिल्ली पुलिस ने यह भी कहा है कि हाईकोर्ट ने न केवल एक 'मिनी-ट्रायल' किया है, बल्कि हाईकोर्ट ने जो निष्कर्ष दर्ज किए हैं वो रिकॉर्ड और मामले की सुनवाई के दौरान की गई दलीलों के विपरीत हैं।
दिल्ली पुलिस ने कहा है कि हाईकोर्ट ने पूर्व-कल्पित तरीके से इस मामले का निपटारा किया और यह पूरी तरह से गलत फैसला है। हाईकोर्ट ने मामले का इस तरह से निपटारा किया जैसे कि छात्रों द्वारा विरोध का एक सरल मामला हो। नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध के बाद शुरू हुए फरवरी, 2020 के दंगों में 53 लोगों की जान चली गई थी और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे। बता दें कि तीनों आरोपी एक साल से अधिक समय से जेल में थे।
पुलिस ने दावा किया है कि हाईकोर्ट ने सबूतों और बयानों पर पूरी तरह से ध्यान नहीं दिया, जबकि स्पष्ट रूप से तीनों आरोपियों द्वारा अन्य सह-साजिशकर्ताओं के साथ मिलकर बड़े पैमाने पर दंगों की एक भयावह साजिश रची गई थी।
पुलिस ने तर्क दिया है कि हाईकोर्ट का विचार है कि यूएपीए के प्रावधानों को केवल 'भारत की रक्षा' पर गहरा प्रभाव वाले मामलों से निपटने के लिए लागू किया जा सकता है, न ही अधिक और न ही कम। पुलिस का कहना है कि हाईकोर्ट का यह मानना गलत है कि वर्तमान मामला असंतोष को दबाने के लिए था।
जानिए इन तीन छात्रों को जमानत देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या-क्या कहा-
हम यह कहने को मजबूर हैं कि ऐसा लगता है असहमति को दबाने की चिंता में सरकार की नजर में विरोध करने के सांविधानिक अधिकार और आतंकी गतिविधि के बीच का फर्क धुंधला होता जा रहा है। अगर यह मानसिकता ऐसे ही बढ़ती रही, तो यह लोकतंत्र के लिए काला दिन होगा और खतरनाक होगा। ये कड़ी टिप्पणी हाईकोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की छात्राओं नताशा नरवाल, देवांगना कालिता और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत देते हुए की।
जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की पीठ ने कहा, दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में आरोपी विद्यार्थियों के खिलाफ यूएपीए के तहत अपराधों में कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं पाया गया है। जमानत के खिलाफ यूएपीए की सख्त धारा 43 डी (5) आरोपियों पर लागू नहीं होती है और इसलिए वे दंड प्रक्रिया संहिता के तहत सामान्य सिद्धांतों के तहत जमानत पाने के हकदार हैं।
पीठ ने कहा, पुलिस के आरोपपत्र में ऐसा कतई कुछ भी नहीं है जिसे लगाए गए आरोपों के मद्देनजर यूएपीए की धारा 15 की रोशनी में संभावित आतंकी, धारा 17 के तहत आतंकी कृत्य के लिए फंड जुटाने एवं धारा 18 के तहत आतंकी कृत्य या आतंकी कृत्य करने की तैयारी के रूप में देखा जा सके। पीठ ने इन आरोपी विद्यार्थियों की अपील पर निचली अदालत के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया गया था।
कोर्ट ने कहा, सीएए प्रदर्शन प्रतिबंधित नहीं था। प्रदर्शनों पर कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा निगरानी रखी जा रही थी। आरोपियों की अगुवाई में प्रदर्शन कर रहे छात्र संगठन कोई प्रतिबंधित संगठन नहीं है। दिल्ली दंगों के सिलसिले में कालिता पर चार, नरवाल पर तीन और तन्हा पर दो मामले हैं। अब इनके जेल से छूटने का रास्ता साफ हो गया है क्योंकि इन्हें अन्य मामलों में पहले ही जमानत मिल चुकी है।
पिंजरा तोड़ कार्यकर्ताओं में शामिल इन लोगों को पिछले साल फरवरी में दंगों से जुड़े एक मामले में यूएपीए कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था। खंडपीठ ने इस बात पर भी गौर किया कि इस मामले में 16 सितंबर 2020 को आरोपपत्र दाखिल किया जा चुका है। इस मामले में 740 गवाह है और कोरोना के हालात के मद्देजर कोर्ट में मुकदमे की सुनवाई भी शुरू नहीं हो पाई है। पीठ ने इन तीनों की जमानत याचिकाओं पर 18 मार्च को अपना आदेश सुरक्षित रखा था।
हाईकोर्ट ने कहा, विरोध करने का अधिकार गैरकानूनी नहीं है और इसे यूएपीए के अर्थ में आतंकवादी कृत्य नहीं कहा जा सकता है। आरोपपत्र में निहित तथ्यात्मक आरोपों और उसके साथ दिए गए साक्ष्यों से साफ है कि निश्चित रूप से यूएपीए की धारा 15, 17 और/या 18 के तहत अपराध नहीं है। आरोपपत्र में आतंकी कृत्य या इसके लिए धन जुटाने के आरोप नहीं हैं। कोर्ट ने कहा कि शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत लोगों का सांविधानिक अधिकार है।
पीठ ने की सख्त टिप्पणी और नसीहत भी दी....
आतंकी कृत्य जैसे शब्दों का बेधड़क इस्तेमाल न हो
खंडपीठ ने 113, 83 व 72 पन्नों के अपने तीन फैसलों में कहा हालांकि यूएपीए की धारा 15 में दी गई आतंकी कृत्य की परिभाषा काफी व्यापक है और कुछ हद तक अस्पष्ट भी है, लेकिन उसमें आतंक के जरूरी तत्व होने चाहिए और आतंकी कृत्य जैसे शब्दों का प्रयोग बेधड़क अंदाज में करने की अनुमति ऐसे मामलों में नहीं दी जा सकती जो साफ तौर पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के दायरे में आते हैं।
किसी प्रदर्शन से नहीं हिल सकती राष्ट्र की मजबूत नींव
जजों ने कहा, हमारा मानना है कि हमारे राष्ट्र की नींव मजबूत आधार पर है और कॉलेज के छात्रों या शहर के बीच बनी यूनिवर्सिटी की समन्वय कमेटी के सदस्यों द्वारा किए गए किसी भी प्रदर्शन, चाहे वह कितना भी दोषपूर्ण क्यों न हो, उससे हिलने वाली नहीं है।
यूएपीए को लोगों पर थोपना इसे कमतर करेगा
कोर्ट ने कहा, यूएपीए के अत्यंत गंभीर और गंभीर दंड प्रावधानों को लोगों पर थोपना हमारे राष्ट्र के अस्तित्व के खतरों को दूर करने के उद्देश्य से संसद द्वारा बनाए गए कानून को कमजोर करेगा। गंभीर दंडात्मक प्रावधानों का बिना मतलब इस्तेमाल इसे कमतर करेगा।
प्रदर्शन जरूर किया, पर हिंसा भड़काई हो यह समझ से परे
पीठ ने कहा, भड़काऊ भाषण, चक्का जाम करने, महिलाओं को विरोध के लिए उकसाने और इसी प्रकार के अन्य आरोप कम से कम इस बात के सुबूत हैं कि आरोपी विरोध प्रदर्शनों को आयोजित करने में शामिल थे, लेकिन इन लोगों ने हिंसा को उकसाया हो, यह हमारी समझ से परे है। ऐसे में आतंकी कृत्य या साजिश की क्या बात करना।
आरोपियों को दी हिदायतें
हाईकोर्ट ने जेएनयू छात्रा व पिंजरा तोड़ समूह की सदस्यों नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और जामिया के छात्रा तन्हा को अपने पासपोर्ट जमा कराने और अभियोजन के किसी भी गवाह को प्रलोभन न देने और साक्ष्यों से छेड़छाड़ न करने की सख्त हिदायत दी है। तीनों को हिदायत दी है कि वे किसी भी गैर कानूनी गतिविधि में शामिल नहीं होेंगे और दिए गए अपने पतों पर ही रहेंगे।
विस्तार
दिल्ली दंगा मामले में आंतकरोधी कानून (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार जेएनयू की छात्राओं देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और जामिया छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को मिली जमानत के खिलाफ दिल्ली पुलिस सुप्रीम कोर्ट जा पहुंची है। दिल्ली पुलिस ने तीनों छात्रों की जमानत का विरोध करते हुए याचिका दायर की है।
बता दें कि इन तीनों को मंगलवार को दिल्ली हाईकोर्ट से जमानत मिली थी और आज उन्हें रिहा होना था। लेकिन इससे पहले ही तीनों की जमानत के खिलाफ पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी है।
सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर कर हाईकोर्ट द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण पर सवाल उठाए हैं। दिल्ली पुलिस ने कहा है कि तीन अलग-अलग जमानत के फैसले बिना किसी आधार के थे और चार्जशीट में एकत्रित और विस्तृत सबूतों की तुलना में सोशल मीडिया कथा पर आधारित प्रतीत होते हैं।
अपनी अपील में दिल्ली पुलिस ने यह भी कहा है कि हाईकोर्ट ने न केवल एक 'मिनी-ट्रायल' किया है, बल्कि हाईकोर्ट ने जो निष्कर्ष दर्ज किए हैं वो रिकॉर्ड और मामले की सुनवाई के दौरान की गई दलीलों के विपरीत हैं।
दिल्ली पुलिस ने कहा है कि हाईकोर्ट ने पूर्व-कल्पित तरीके से इस मामले का निपटारा किया और यह पूरी तरह से गलत फैसला है। हाईकोर्ट ने मामले का इस तरह से निपटारा किया जैसे कि छात्रों द्वारा विरोध का एक सरल मामला हो। नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध के बाद शुरू हुए फरवरी, 2020 के दंगों में 53 लोगों की जान चली गई थी और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे। बता दें कि तीनों आरोपी एक साल से अधिक समय से जेल में थे।
पुलिस ने दावा किया है कि हाईकोर्ट ने सबूतों और बयानों पर पूरी तरह से ध्यान नहीं दिया, जबकि स्पष्ट रूप से तीनों आरोपियों द्वारा अन्य सह-साजिशकर्ताओं के साथ मिलकर बड़े पैमाने पर दंगों की एक भयावह साजिश रची गई थी।
पुलिस ने तर्क दिया है कि हाईकोर्ट का विचार है कि यूएपीए के प्रावधानों को केवल 'भारत की रक्षा' पर गहरा प्रभाव वाले मामलों से निपटने के लिए लागू किया जा सकता है, न ही अधिक और न ही कम। पुलिस का कहना है कि हाईकोर्ट का यह मानना गलत है कि वर्तमान मामला असंतोष को दबाने के लिए था।
जानिए इन तीन छात्रों को जमानत देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या-क्या कहा-
हम यह कहने को मजबूर हैं कि ऐसा लगता है असहमति को दबाने की चिंता में सरकार की नजर में विरोध करने के सांविधानिक अधिकार और आतंकी गतिविधि के बीच का फर्क धुंधला होता जा रहा है। अगर यह मानसिकता ऐसे ही बढ़ती रही, तो यह लोकतंत्र के लिए काला दिन होगा और खतरनाक होगा। ये कड़ी टिप्पणी हाईकोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की छात्राओं नताशा नरवाल, देवांगना कालिता और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत देते हुए की।
जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की पीठ ने कहा, दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में आरोपी विद्यार्थियों के खिलाफ यूएपीए के तहत अपराधों में कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं पाया गया है। जमानत के खिलाफ यूएपीए की सख्त धारा 43 डी (5) आरोपियों पर लागू नहीं होती है और इसलिए वे दंड प्रक्रिया संहिता के तहत सामान्य सिद्धांतों के तहत जमानत पाने के हकदार हैं।
पीठ ने कहा, पुलिस के आरोपपत्र में ऐसा कतई कुछ भी नहीं है जिसे लगाए गए आरोपों के मद्देनजर यूएपीए की धारा 15 की रोशनी में संभावित आतंकी, धारा 17 के तहत आतंकी कृत्य के लिए फंड जुटाने एवं धारा 18 के तहत आतंकी कृत्य या आतंकी कृत्य करने की तैयारी के रूप में देखा जा सके। पीठ ने इन आरोपी विद्यार्थियों की अपील पर निचली अदालत के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया गया था।
कोर्ट ने कहा, सीएए प्रदर्शन प्रतिबंधित नहीं था। प्रदर्शनों पर कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा निगरानी रखी जा रही थी। आरोपियों की अगुवाई में प्रदर्शन कर रहे छात्र संगठन कोई प्रतिबंधित संगठन नहीं है। दिल्ली दंगों के सिलसिले में कालिता पर चार, नरवाल पर तीन और तन्हा पर दो मामले हैं। अब इनके जेल से छूटने का रास्ता साफ हो गया है क्योंकि इन्हें अन्य मामलों में पहले ही जमानत मिल चुकी है।
पिंजरा तोड़ कार्यकर्ताओं में शामिल इन लोगों को पिछले साल फरवरी में दंगों से जुड़े एक मामले में यूएपीए कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था। खंडपीठ ने इस बात पर भी गौर किया कि इस मामले में 16 सितंबर 2020 को आरोपपत्र दाखिल किया जा चुका है। इस मामले में 740 गवाह है और कोरोना के हालात के मद्देजर कोर्ट में मुकदमे की सुनवाई भी शुरू नहीं हो पाई है। पीठ ने इन तीनों की जमानत याचिकाओं पर 18 मार्च को अपना आदेश सुरक्षित रखा था।