न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चंडीगढ़
Published by: ajay kumar
Updated Fri, 03 Jan 2020 07:25 PM IST
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने केरल विधानसभा द्वारा नागरिकता संशोधन एक्ट (सीएए) में संशोधन करने की मांग को लेकर पास किए प्रस्ताव के हक में उतरते हुए प्रस्ताव को आवाम की आवाज करार दिया है। इसके साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार से जनता की आवाज सुनने की अपील की।
मुख्यमंत्री ने शुक्रवार को यह बात केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री द्वारा इस मुद्दे पर दिए बयान के संदर्भ में कही। कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद को लिखे पत्र में मुख्यमंत्री ने केंद्रीय मंत्री के उस बयान पर आपत्ति जताई, जिसमें उन्होंने कहा था कि जो राज्य सीएए का विरोध कर रहे हैं, उन राज्यों के राजनीतिज्ञों को ऐसा स्टैंड लेने से पहले उचित कानूनी सलाह लेनी चाहिए।
कैप्टन ने कहा कि राज्यों ने अपेक्षित कानूनी सलाह पहले ही ली हुई है और केरल विधानसभा के प्रस्ताव के साथ लोगों ने अपने चुने हुए नुमाइंदों द्वारा सूझबूझ और इरादों को प्रदर्शित किया है। उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे विधायक जनता की आवाज की नुमाइंदगी करते हैं।’’ उन्होंने कहा कि यह सिर्फ संसदीय अधिकारों का मुद्दा नहीं है बल्कि ऐसे विचारों को दर्शाना, वहां के नुमाइंदों का संवैधानिक फर्ज होता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि ज़म्मेदार राज्य सरकारों के प्रमुख होने के नाते हम न तो अनजान हैं और न ही गुमराह हुए हैं। उन्होंने कहा कि नागरिकों पर कानून जबरदस्ती नहीं थोपे जा सकते और सभी शक्तियों की तरह संसदीय शक्ति की ड्यूटी भी इसे जिम्मेदारी के साथ निभाने की है।
कैप्टन ने इस बात पर जोर दिया कि धारा 245 अधीन नागरिकता से संबंधित कानून पास करने की कानूनी शक्ति सिर्फ संसद के पास है न कि राज्यों के पास जबकि केंद्रीय कानून मंत्री ने केरल विधानसभा द्वारा पास किये प्रस्ताव में इस नुक्ते को दरकिनार कर दिया कि विधानसभा ने कोई नागरिकता कानून पास नहीं किया बल्कि भारत सरकार को संसद में सीएए में संशोधन करने की अपील की, जहां उसके पास बहुमत है।
कैप्टन ने कहा, ‘‘निश्चित तौर पर कानून मंत्री और एक वकील होने के नाते आप जानते होंगे कि यह प्रस्ताव सही दिशा में है जबकि ऐसे कानून के आधार पर भारत सरकार द्वारा पेश प्रस्ताव/बिल में संशोधन या रद्द संसद को ही करना होता है। कानून मंत्री की तरफ से ऐसे कानून लागू करने के लिए राज्यों को उनके ‘संवैधानिक फर्ज’ याद करवाने के बारे की गई टिप्पणी पर मुख्यमंत्री ने कहा कि इन राज्यों के नेताओं ने अपने चुनाव जीते हैं और भारतीय संविधान के अंतर्गत पद की शपथ ली है।
संविधान की प्रस्तावना की तरफ मंत्री का ध्यान दिलाते हुए कैप्टन ने कहा कि वह (रवि शंकर प्रसाद) एक वकील हैं और उनको ‘धर्म निरपेक्ष’ शब्द के बारे पता होना चाहिए जो 42वें संवैधानिक संशोधन एक्ट -1976 द्वारा प्रस्तावना में विशेष तौर पर शामिल किये तीन शब्दों में से एक है।
उन्होंने कहा कि हमारे संविधान के ताने-बाने के लिए धर्मनिरपेक्ष आचरण की जरूरत है और मंत्री भी वास्तव में राज्यों को संविधान के मूल सिद्धांत का पालन करने के लिए कह रहे हैं। कैप्टन ने कहा कि केंद्रीय मंत्री बार -बार इस बात से इन्कार कर रहे हैं कि सीएए किसी भी सूरत में भारतीय मुसलमानों को प्रभावित नहीं करेगा जो एक सार्वजनिक/राजनैतिक स्टैंड है और आपको पद के दायरे में से निकलने के लिए मजबूर करता है।
कैप्टन ने अपने पत्र में कहा कि चूंकि सीएए के मुताबिक भारतीय मूल के होने के तौर पर या ऐसे मूल को सिद्ध करने की ज़रूरत नहीं है यानी छह धर्मों के साथ जुड़ा कोई भी व्यक्ति संशोधित कानून के अनुसार आवेदन कर सकता है और निश्चित तारीख पर या पहले सिद्ध करने पर नागिरकता के लिए योग्य होगा। इससे हमारे देश विशेषकर सरहदी राज्यों में घुसपैठ करने के लिए इस कानून का दुरुपयोग किया जा सकता है जिससे यह कानून राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने का जरिया बन जायेगा।
एनआरसी से लोगों में फैला डर
राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के संबंध में भारत सरकार द्वारा की जा रही परस्पर विरोधी बयानबाजी का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि इससे किसी तरह भरोसा पैदा नहीं होता। कैप्टन ने कहा कि जब यह सीएए के साथ पढ़ा जाता है तो यह बहुत से भारतीय मुसलमानों को स्वयं ही नागरिकता के हक से वंचित कर देगा। उन्होंने कहा, ‘‘यह डर है कि राजनैतिक उद्देश्यों के लिए रातो-रात कानून को तोड़ा-मरोड़ा जा सकता है जिस कारण हमारे देश के सही सोच वाले नागरिकों के मन में पैदा हुए डर जायज हैं।’’
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने केरल विधानसभा द्वारा नागरिकता संशोधन एक्ट (सीएए) में संशोधन करने की मांग को लेकर पास किए प्रस्ताव के हक में उतरते हुए प्रस्ताव को आवाम की आवाज करार दिया है। इसके साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार से जनता की आवाज सुनने की अपील की।
मुख्यमंत्री ने शुक्रवार को यह बात केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री द्वारा इस मुद्दे पर दिए बयान के संदर्भ में कही। कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद को लिखे पत्र में मुख्यमंत्री ने केंद्रीय मंत्री के उस बयान पर आपत्ति जताई, जिसमें उन्होंने कहा था कि जो राज्य सीएए का विरोध कर रहे हैं, उन राज्यों के राजनीतिज्ञों को ऐसा स्टैंड लेने से पहले उचित कानूनी सलाह लेनी चाहिए।
कैप्टन ने कहा कि राज्यों ने अपेक्षित कानूनी सलाह पहले ही ली हुई है और केरल विधानसभा के प्रस्ताव के साथ लोगों ने अपने चुने हुए नुमाइंदों द्वारा सूझबूझ और इरादों को प्रदर्शित किया है। उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे विधायक जनता की आवाज की नुमाइंदगी करते हैं।’’ उन्होंने कहा कि यह सिर्फ संसदीय अधिकारों का मुद्दा नहीं है बल्कि ऐसे विचारों को दर्शाना, वहां के नुमाइंदों का संवैधानिक फर्ज होता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि ज़म्मेदार राज्य सरकारों के प्रमुख होने के नाते हम न तो अनजान हैं और न ही गुमराह हुए हैं। उन्होंने कहा कि नागरिकों पर कानून जबरदस्ती नहीं थोपे जा सकते और सभी शक्तियों की तरह संसदीय शक्ति की ड्यूटी भी इसे जिम्मेदारी के साथ निभाने की है।