प्रतिदिन हजारों लीटर सीवर सीधा यमुना में समा रहा
आठ साल तक फाइलों में दबी रही वन मंत्रालय की अधिसूचना
नियमों को ताक पर रख विकसित हुईं 200 से अधिक कॉलोनियां
अमर उजाला ब्यूरो
मथुरा। अफसरों ने लापरवाही की इंतिहा कर दी। वन मंत्रालय की अधिसूचना आठ सालों तक फाइलों में ही कैद रही। इस बीच प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पत्रों को भी लगातार अनदेखा किया जाता रहा। नतीजा ये कि प्रतिदिन हजारों लीटर सीवर सीधा यमुना में समा रहा है।
उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका तथा स्वत: संज्ञान के बाद यमुना में प्रदूषण पर विचार करते हुए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने सात जुलाई 2004 को एक नोटिफिकेशन जारी किया। इसमें एक हजार से अधिक या इससे कम लोगों के लिए बने टाउनशिप, औद्योगिक टाउनशिप, रिहायशी कॉलोनी, व्यवसायिक परिसर, होटल, अस्पताल आदि जिनमें प्रतिदिन 50 हजार लीटर पानी की निकासी हो को दायरे में रखा गया था। इसके लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनापत्ति प्रमाण पत्र की अनिवार्यता की गई।
प्रावधान किया गया कि प्रस्तावित गतिविधियों में जल निकाय में छोड़े जाने वाले घरेलू मल-जल के शोधन संबंधी व्यवस्था के निर्देश दिए गए। पर्यावरण मंत्रालय के इन आदेशों की संबंधित विभागाें ने जमकर धज्जियां उड़ाईं। नतीजा ये रहा कि इन आठ सालों में लगभग 200 कॉलोनियां और पांच दर्जन इंजीनियरिंग कॉलेज, अस्पताल तथा व्यवसायिक कांप्लेक्स विकसित हो गए। इनसे लाखों लीटर सीवर प्रतिदिन यमुना में प्रवाहित हो रहा है।
विप्रा को लिखे पत्र, नहीं लिया संज्ञान
मथुरा (ब्यूरो)। पर्यावरण मंत्रालय के इस नोटिफिकेशन के अनुपालन के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसरों ने समय-समय पर पत्र लिखे। आग्रह किया कि आदेश के अनुपालन में बोर्ड की एनओसी के बिना कॉलोनियाें, अस्पतालों के नक्शे पास न किए जाएं लेकिन विप्रा ने एक नहीं मानी। इसका खामियाजा यमुना को प्रदूषण के रूप में भुगतना पड़ रहा है।
दोषी अफसरों के खिलाफ कब होगी कार्रवाई!
मथुरा। जिस यमुना के प्रदूषण ने आज देश भर में भक्तों का उद्वेलित कर दिया है। न्यायालय के आदेश पर विचारोपरांत जारी दिशा-निर्देशों के अनुपालन में हद दर्जे की लापरवाही बरती गई। ऐसे में बड़ा सवाल ये भी है कि क्या इस लापरवाही के दोषी अफसरों के खिलाफ भी कोई कार्रवाई होगी।