पडरौना। डुम्मरभार के संतोष कुमार ने छह लाख रुपये कर्ज लेकर ईमू पालन किया। ईमू के बच्चों को पालने-पोसने के लिए कंपनी ने रुपये देने का वादा किया था। अब भोजन के अभाव में संतोष के सौ में से बीस ईमू मर चुके हैं। बैंक के कर्ज में डूबे संतोष कुमार के लिए बीमार माता-पिता, चाचा का इलाज और बीवी-बच्चों का पालन-पोषण ही विकराल समस्या बना है। ऐसे में इनकी समझ में नहीं आता कि बेजुबान पक्षियों को जिंदा रखने के लिए उनकी खुराक का इंतजाम कहां से करें।
नाममात्र की जमीन वाले परिवार के संतोष कुमार को विज्ञापनों और नगर में संचालित एक किसान मेला में ईमू पालन की प्रेरणा मिली थी। बैंक से कर्ज लेकर इन्होंने ईमू बेचने वाली कंपनी को ढाई लाख रुपयों का ड्राफ्ट दिया और बदले में पचास जोड़ी ईमू के बच्चे पाए। इनको ईमू के बच्चे देने वाली कंपनी के प्रतिनिधि ने कहा था कि ढाई लाख रुपये अमानत के तौर पर जमा रहेंगे। ईमू के बच्चों का पालन-पोषण करिए। एक साल बाद जब ईमू का वजन 25 किलोग्राम के आसपास हो जाएगा, तब कंपनी इन्हें आपसे खरीद लेगी और प्रति माह, प्रति ईमू पांच सौ जोड़कर दिए जाएंगे। एक साल में तीन लाख रुपये से अधिक का दाना इन्होंने ईमू को खिला दिया। लगभग एक हजार रुपये रोज खर्च करना आज संतोष के बूते के बाहर की बात है। अपने परिवार की देखभाल करने के लिए भी संतोष को रुपयों की जरूरत है।
कुरमौल उर्फ सोहनपुर के अनिल कुशवाहा अब बैंक के तीन लाख से अधिक रुपयों के कर्जदार हो गए हैं। ईमू पालन को कुछ नए किस्म का व्यवसाय मानकर इन्होंने भी गोरखपुर की इसी कंपनी से बकायदे करार किया था और इसी विश्वास पर कर्ज भी ले लिया था। आज इनको सपना दिखाने वाली कंपनी ही फरार है। बैंक के कर्ज की वजह से अनिल को भी मुंह छिपाकर रहना पड़ रहा है। भोजन के अभाव में अनिल का चौथा ईमू बृहस्पतिवार को दम तोड़ बैठा। बाकी बचे चौदह ईमू को लेकर यह कहां जाए, इनकी समझ में नहीं आता। कसया के सेखवनिया बगही टोला के सुरेंद्र शर्मा के दरवाजे पर चार जोड़ी इमू शो पीस बनकर पड़े हैं। इनके यहां बीते दिनों इमू आठ अंडे भी दिए हैं। पर न तो इन अंडों को कोई खरीददार है और न ही इमू का पुरसाहाल है। इमू के पालने में जो रकम लग रही है, वह अलग। इमू पालन में सुरेंद्र के दो लाख दस हजार रुपये का निवेश हुआ है। ईमू बेचने वाली कंपनी का निदेशक कुशीनगर का रहने वाला था, जो अब फरार है। कंपनी का गोरखपुर में आफिस भी बंद हो चुका है। यहां तक कि कंपनी के विभिन्न बैंकों में खाते तक बंद हो चुके हैं। ईमू पालक ने न्यायालय में कंपनी के निदेशक के विरुद्ध धोखाधड़ी और डूबी पूंजी दिलाने के लिए मुकदमा दायर किया है।
एक हजार से पंद्रह सौ रुपये तक प्रति अंडा और बहुत अच्छे दामों पर ईमू को खरीदने का सपना दिखाने वाली कंपनी आज खुद इनके लिए स्वपभन हो गई है। शासन-प्रशासन से अपने साथ हुई ठगी के लिए इंसाफ मांगते-मांगते यह लोग थक से गए हैं। ईमू देने वाली कंपनी के कर्ता-धर्ताओं को ढूंढते, उनके घरों पर धरना-प्रदर्शन करने के बावजूद इन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ।
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मेरी जानकारी में पहली बार ईमू पालन का प्रकरण सामने आया है। यह भी पता चला है कि एक पीड़ित धरने पर बैठे हैं। इसमें जल्द ही कुछ अधिकारियों से बात करके यह तय किया जाएगा कि इस प्रकरण में क्या किया जा सकता है। जिस कंपनी के लोगों ने झूठा वादा करके ठगी की है, उसके खिलाफ कार्रवाई होगी।
लोकेश एम, डीएम।
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क्षतिपूर्ति के लिए दूसरे दिन भी धरना
समस्या का निराकरण तो दूर, नहीं पड़ी अधिकारियों की नजर
ईमू पालक रामअधार तिवारी कुनबे के साथ धरने पर बैठे हैं
अमर उजाला ब्यूरो
पडरौना। ईमू पालन करके पछता रहा कुनबा क्षतिपूर्ति के लिए दूसरे दिन भी कलेक्ट्रेट के बाहर धरना देता रहा। लेकिन इनकी मांग पूरा करना तो दूर किसी अधिकारी ने पूछा तक नहीं कि वे धरना किसलिए दे रहे हैं?
अपनी पत्नी और दो बच्चाें के साथ धरना दे रहे रामआधार तिवारी ने बताया कि गोरखपुर की एक बायोटिक कंपनी के लोगों ने उन्हें ईमू के 20 चूजे दिए और कहा कि इन्हें पालकर बड़ा कीजिए। इनके अंडे और मांस काफी महंगा बिकता है। ईमू के चूजाें के एवज में उनसे 1.20 लाख रुपये सिक्योरिटी मनी जमा कराई गई। साथ ही बताया गया कि ईमू बड़े हो जाने पर कंपनी उन्हें ले लेगी और फिर सिक्योरिटी मनी के अलावा 1.20 लाख रुपये अलग से दिया जाएगा। ईमू के बड़े हो जाने पर कंपनी के लोग सभी ईमू अपने साथ लेकर चले गए लेकिन रुपये नहीं दिए।
रामअधार तिवारी का कहना है कि क्षतिपूर्ति दिलाने के लिए 19 नवंबर 2013 को कंपनी के डायरेक्टर के कसया स्थित आवास पर उन्होंने धरना दिया था। डायरेक्टर के पिता ने लिखित समझौता किया कि 15 जनवरी तक रुपये वापस कर दिए जाएंगे। लेकिन रुपये लौटाने की बजाय वे घर छोड़कर ही फरार हो गए। 28 जनवरी से 05 फरवरी तक डायरेक्टर के घर पर फिर धरना चला। 05 फरवरी को पुलिस के आश्वासन पर धरना समाप्त हो गया। आश्वासन पूरा न होने पर 15 फरवरी को फिर धरना देने पर कुछ लोगाें ने धमकाकर भगा दिया। रामअधार तिवारी ने बताया कि 11 नवंबर को प्रार्थना पत्र देने पर तत्कालीन डीएम रिग्जियान सैंफिल ने मुख्य पशु चिकित्साधिकारी से पूछा था कि क्या इस कंपनी ने किसी और व्यक्ति को तो नहीं लूटा है? उन्हाेंने कहा कि बृहस्पतिवार से डीएम कार्यालय के बाहर परिवार के साथ धरना देने के बावजूद किसी अधिकारी ने सुधि नहीं ली।
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क्या था कंपनी का नियम:
रामअधार तिवारी ने बताया कि खोराबार की बायोटिक कंपनी 1.20 लाख रुपये जमानत राशि लेती थी। रुपये लेने के बाद ईमू के चूजे देते थे। एक वर्ष पूरा होने पर ईमू को वापस लेना था। तब जमानत राशि के अलावा 1.20 लाख रुपये कंपनी देने वाली थी। किसी ईमू के मर जाने पर उसकी जगह दूसरा देना था।