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हिंदी से भेदभाव के लिए मानसिकता दोषी, बदलना होगा नजरिया
झांसी ब्यूरो
Updated Mon, 14 Sep 2020 01:30 AM IST
झांसी। अमर उजाला हिंदी हैं हम मुहिम के तहत हुए वेबिनार में शिक्षक-शिक्षिकाओं ने ‘पाठ्यक्रम और परीक्षा परिणाम से इतर हिंदी को कैसे बनाएं व्यवहार की भाषा’ विषय पर परिचर्चा की। सभी ने महत्वपूर्ण सुझाव दिए कि हिंदी को सम्मान और जीवन का अभिन्न अंग बनाने का जिम्मा घर-परिवार और शिक्षकों पर है। बेसिक शिक्षकों की इसमें विशेष भूमिका है। शिक्षकों ने सामाजिक अनुभवों का हवाला देते हुए हिंदी की उपेक्षा के लिए समाज में तथाकथित आधुनिकता की होड़ को जिम्मेदार ठहराया। गुरुजनों ने कहा कि दोष बच्चों का नहीं, समाज का है। सभी ने पांचवीं कक्षा तक क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई वाली नई शिक्षा नीति से भी उम्मीद जताई।
अंग्रेजी के अनुवाद में ही निकल जाता है सीखने का समय: मनुजा द्विवेदी
शिक्षिका मनुजा द्विवेदी ने कहा, देखो बेटा...काउ आ रही है। कुछ इस तरह ही तो हम सिखा रहे हैं बच्चों को। पहले उन्हें गाय का तो ज्ञान कराएं। अंग्रेजी के नाम पर गली, मोहल्लों में स्कूल खुल गए हैं। न वहां अंग्रेजी ढंग से पढ़ाई जाती है न हिंदी। सीखने और अभिव्यक्त करने की जगह बच्चों का सारा समय अनुवाद में ही निकल जाता है। इसमें बच्चों का कोई दोष नहीं है। हम ही उन्हें ‘मां’ की जगह ‘मम्मा’ बोलना सिखाते हैं। इसलिए वे तो बड़े होकर भी ‘मम्मा’ बोलेंगे ही। हम ही उन्हें पौष्टिक भोजन की जगह नूडल्स, फास्टफूड खिला रहे हैं। इससे सेहत बिगड़ना तय है। इसलिए हिंदी को सम्मान दिलाना है तो शुरुआत घर और स्कूल से करनी होगी। इसमें माता-पिता और शिक्षक की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है।
कब छोड़ेंगे ए फॉर एपल सुनकर गर्व करना : नीना उदैनिया
पूर्व उप शिक्षा निदेशक नीना उदैनिया ने कहा कि घर-घर में पढ़ाई की शुरुआत ए फॉर एपल से होती है। हमारे बच्चे को अंग्रेजी की पोइम आती है, टेबल आते हैं। इस पर बहुत गर्व किया जाता है। लेकिन कोई हिंदी में बच्चे को कविता न तो सिखाता है और न उसका प्रोत्साहन करता है। यह प्रवृति बहुत गलत है। हम सभी विवेकानंद जी, अटल बिहारी वाजपेयी या नरेंद्र मोदी के हिंदी में संबोधन की धाक को तो स्वीकारते हैं पर उसे अमल में नहीं लाते। यह नजरिया बदलना होगा।
प्रशासनिक व अन्य परीक्षाओं में हिंदी को मिले महत्व: डॉ.श्याम मोहन पटेल
बुंदेलखंड स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ.श्याम मोहन पटेल ने कहा हिंदी को सम्मान दिलाने के लिए हर स्तर पर सजग होना होगा। इन दिनों सोशल मीडिया सशक्त माध्यम बन कर उभरा है। इस पर युवा पीढ़ी अधिक से अधिक हिंदी में संवाद कर रही है। इसी तरह प्रशासनिक सेवाओं, न्यायिक अधिकारियों की परीक्षाआें, चिकित्सा व अन्य क्षेत्र की पाठ्य सामग्री अधिक से अधिक हिंदी में आए।
सरकार को भी इच्छाशक्ति का परिचय देना चाहिए: मिथलेश मिश्रा
ब्लू बेल्स ग्रुप ऑफ स्कूल्स की वरिष्ठ हिंदी अध्यापिका मिथलेश मिश्रा ने कहा स्वतंत्रता संग्राम में हिंदी बोलना, लिखना सम्मान की बात थी। अब स्थिति यह है कि यह भाषा अपनों के द्वारा ही भुलाई जा रही है। जबकि वक्त इसे अपनाने का है। हम सभी बचपन से ही हिंदी के संस्कार दें। अभी हो ये रहा है कि लोग बच्चों को अंग्रेजी सिखा कर गर्व करते हैं। इससे जो बच्चे अंग्रेजी सीखने से वंचित रह जाते हैं उनमें हीन भावना आ जाती है। सरकार को भी हिंदी को सही मायने में सम्मान दिलाने के लिए इच्छाशक्ति का परिचय देना चाहिए।
सॉरी बोलने और क्षमा मांगने में स्पष्ट है हिंदी का प्रभाव: अरुणा गोस्वामी
महात्मा हंसराज स्कूल की शिक्षिका अरुणा गोस्वामी ने कहा कि मानसिकता बदलनी होगी। लोग हिंदी बोलने में कतई संकोच न करें। जब बोलने वाला हिंदी में बात करना जानता है उसे सुनने वाला भी हिंदी को बखूबी समझता है फिर बेवजह अंग्रेजी में बात करने की क्या जरूरत है। समाज में इस चलन की वजह से ही भेदभाव होता है। हम सभी को गर्व होना चाहिए कि हम हिंदुस्तानी और हिंदी भाषी हैं। आप खुद महसूस करके देखिए किसी सामान्य सी गलती के लिए सॉरी बोल दिया जाए और उसी गलती के लिए क्षमा चाहूंगा या क्षमा कर दीजिएगा कहा जाए तो सामने वाला क्षमा मांगने के भाव को बखूबी समझेगा उसे सम्मान देगा।
मनुजा द्विवेदी - फोटो : REPORTERS
नीना उदैनिया - फोटो : REPORTERS
महावीर शरण - फोटो : REPORTERS
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