बिकरू में दहशत का साम्राज्य अब खत्म हो चुका है। खूंखार अपराधी विकास दुबे के एनकाउंटर की खबर मिलने के बाद गांव वालों के चेहरे चमक उठे हैं। अब तक सिले रहे होंठ विकास के दहशत की कहानियां बुदबुदा रहे हैं। हर किसी की जुबान पर एक लाइन जरूर आई कि जो भी हुआ, अच्छा हुआ। आठ दिन से गांव में पसरा सन्नाटा अब टूट रहा है।
बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं की चहल पहल दिख रही है। घरों के बाहर बैठकर दहशतगर्दी की चर्चाएं भी शुरू हो चुकी हैं। कुछ अपनी आपबीती बता रहे हैं तो कुछ विकास के दहशत की कहानियां। हालांकि विकास के मोहल्ले के घरों में मुर्दनी छाई है। यहां मीडिया और पुलिस वालों की आवाजें ही सन्नाटे को तोड़ती हैं। हां, एक आवाज और आती है कभी कभी।
एनकाउंटर में मारे गए विकास के गुर्गों के बुजुर्गों की चीखें। दिन शुक्रवार। सुबह के 11 बजे हैं। बिकरू गांव से एक किलोमीटर पहले ही पुलिस की गाड़ियां हर सौ, दो सौ मीटर पर खड़ी हैं। गांव का एंट्री प्वाइंट तो पूरी तरह से छावनी बना हुआ है। अलग-अलग थानों का फोर्स मुस्तैद है। जांच में लगी टीमों की आवाजाही इतनी है कि हर थोड़ी देर में सायरन ही सन्नाटा खत्म करता है।
गांव में प्रवेश करते ही पता चला कि पंचायत भवन में सात बम मिले हैं। जिन्हें विकास के गुुर्गों ने पुलिस पर हमले के लिए उसी दिन तैयार किए थे। बम निरोधी दस्ता इन्हें निष्क्रिय करने में जुटा है। विकास का ढहाया गया किलेनुमा घर उसके साम्राज्य की बर्बादी की कहानी कह रहा है। हम अपने फोटो जर्नलिस्ट के साथ गांव की गलियों की ओर मुड़े। थोड़ी दूर पर ही एक दुकान खुली मिली।
यहां तीन बुजुर्ग आपस में चर्चाएं कर रहे थे। हमने पूछा कि विकास की कोई खबर मिली की नहीं। वे कुछ मुस्कुराए, फिर बोले, आप ही लोग तो सुबह से टीवी पर चला रहे हैं। सबकुछ पता चल गया। एक बुजुर्ग ने अपना नाम नवीबक्स बताया। बोले, आठ पुलिस कर्मियों को मौत के घाट उतारते समय ही विकास ने अपनी मौत पर दस्तखत कर दिए थे।