"न भीतो मरणादस्मि केवलम् दूषितो यश"
भगवान राम ने कहा था कि मैं मृत्यु से नहीं डरता। अगर डरता हूं तो बदनामी से डरता हूं, लोकापवाद से डरता हूं। चालीस साल का मेरा राजनीतिक जीवन खुली किताब है। लेकिन जनता ने जब भारतीय जनता पार्टी को सबसे बड़े दल के रूप में समर्थन दिया तो क्या जनता की अवज्ञा होनी चाहिए।
जब राष्ट्रपति महोदय ने मुझे सरकार बनाने के लिए बुलाया और कहा कि कल आपके मंत्रियों की शपथ विधि होनी चाहिए और 31 तारीख तक आप अपना बहुमत सिद्ध कीजिए तो क्या मैं मैदान छोड़कर चला जाता...? मैं पलायन कर जाता...? जिस जनता का हमने विश्वास अर्जित किया है क्या उसकी अवज्ञा करता...?
मैंने जब चर्चा आरंभ की थी तब इसका भी स्पष्टीकरण किया था। क्या यह तथ्य नहीं है कि हम सबसे बड़े दल के रूप में उभरे हैं...? इस बारे में जो और तर्क दिए जा रहे हैं मैं उन पर आउंगा। क्या राष्ट्रपति महोदय से कहा कि नहीं पहले मुझे जरा बात कर लेने दो। जब वह कह रहे हैं कि कल शपथ विधि होगी और मुझे समय दे रहे हैं 31 तारीख तक का तो मैंने कहा कि 31 तारीख तक जो समय दिया जा रहा है उसका मैं सदुपयोग करूंगा।
अन्य दलों से चर्चा करूंगा उनका समर्थन प्राप्त करने का प्रयास करूंगा। एक कॉमन प्रोग्राम के आधार पर आगे बढ़ सकें इस तरह का वातावरण बनाने की कोशिस करूंगा। इसमें क्या आपत्ति की बात है... इसमें कौन सा सत्ता लोभ है...और फैसला केवल मेरा अकेला का नहीं था फैसला पार्टी का था।
अध्यक्ष महोदय जब एक बार 31 तारीख शक्ति परीक्षण के लिए तय हो गई और शक्ति परीक्षण संसद में ही हो सकता है राष्ट्रपति भवन या राजभवन में हो इसका तो हमने कभी प्रतिपादन नहीं किया, तो सदन की बैठक बुलाना जरूरी था। सदन की बैठक में राष्ट्रपति महोदय का अभिभाषण जरूरी था।