मुलायम सिंह यादव और मैनपुरी का अटूट रिश्ता किसी से छिपा नहीं है। शायद इसीलिए 26 वर्षों में मैनपुरी लोकसभा सीट पर मुलायम का तिलिस्म कोई तोड़ नहीं पाया। पहली बार सपा और सैफई परिवार बिना मुलायम के मैनपुरी लोकसभा का उपचुनाव लड़ेंगे। ऐसे में ये चुनाव कई मायनों में अहम है। मैनपुरी का चुनाव ही अब मुलायम के बाद सैफई परिवार की नई सियासी पटकथा लिखेगा।
चार अक्तूबर 1992 को मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी की नींव रखी थी। इसके बाद 1996 में मुलायम सिंह यादव ने पहली बार मैनपुरी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। ये वह चुनाव था, जिसने मैनपुरी की सियासत को पलट कर रख दिया। हर बार लोकसभा चुनाव हुए, लेकिन मैनपुरी ने हमेशा मुलायम या उनके चुने हुए प्रत्याशी को ही चुना।
पांच बार मुलायम ने मैनपुरी लोकसभा सीट से जीत दर्ज की और दो बार सीट छोड़कर सैफई परिवार के लिए संसद की राह आसान की। एक बार जहां 2004 में मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी सीट छोड़कर भतीजे धर्मेंद्र यादव को संसद पहुंचाया तो वहीं दूसरी बार 2014 में पोते तेजप्रताप यादव को सांसद बनाया। 2019 का लोकसभा चुनाव उन्होंने खुद मैनपुरी से लड़ा और जीते। ऐसे में एक बात तो साफ है कि प्रत्याशी चाहे जो रहा हुआ, लेकिन चुनाव तो मुलायम के चेहरे पर ही हुआ।