चुनाव हो तो रहा है यूपी की सरकार तय करने का, पर इसके पीछे किसी न किसी रूप में केंद्रीय मंत्रियों के मुकद्दर की भी इबारत लिखी जा रही है। नतीजे सिर्फ मैदान में डटे उम्मीदवारों के भाग्य और यूपी की भावी सरकार का ही फैसला करने वाले नहीं होंगे, बल्कि मोदी की कैबिनेट के मंत्रियों की लोकप्रियता, क्षेत्र में पकड़ व पहुंच का परिणाम भी बताने वाले होंगे।
यह भी साफ होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैबिनेट में उन्हें जो जगह दी है, वह उस कसौटी पर कितना खरे उतर रहे हैं। भाजपा के लिए कितना उपयोगी हैं। उनमें अपने लोगों के बीच से कितना वोट भाजपा के पक्ष में दिलाने की क्षमता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित प्रदेश के 15 चेहरे केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल हैं। यूपी को पश्चिम, पूर्व और मध्य हिस्से में बांटकर देखें तो केंद्रीय कैबिनेट में प्रदेश के इन तीनों हिस्सों से पांच-पांच लोगों को हिस्सेदारी दी गई है।
यही नहीं, केंद्रीय कैबिनेट में भागीदारी देने में यूपी की जातीय गणित को भी ध्यान में रखा गया। महिलाओं के आधार पर देखें तो प्रदेश से कैबिनेट में शामिल इन 15 चेहरों में एक तिहाई अर्थात पांच महिलाएं हैं। स्वाभाविक रूप से चुनाव में मोदी की गणित और इन चेहरों की साख और सरोकार कसौटी होगी।
पूर्वांचल में सीटें बढ़ाने का लक्ष्य
वैसे तो प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर पूरे उत्तर प्रदेश का ही चुनाव लड़ा जा रहा है। पर, एक सांसद के नाते उनके लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश का चुनाव कम महत्वपूर्ण नहीं है। एक तो उनके खुद के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में विधानसभा की पांच सीटों में सिर्फ तीन ही भाजपा के पास हैं। साथ ही पड़ोस के जिलों मिर्जापुर, आजमगढ़, मऊ व गाजीपुर में पार्टी का कोई विधायक नहीं है।
बलिया और चंदौली में भी भाजपा के पास इस समय एक-एक ही विधायक है। वाराणसी, गोरखपुर, सिद्धार्थनगर, जौनपुर, महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया सहित पूरे पूर्वांचल की बात करें तो विधानसभा की 125 सीटों में भाजपा के पास इस समय सिर्फ 13 सीटें हैं। जाहिर है कि मोदी के लिए इन सीटों पर भाजपा की जीत का आंकड़ा बढ़ाना किसी चुनौती से कम नहीं है।
अगड़ों-पिछड़ों का समीकरण
मोदी सहित केंद्रीय मंत्रिपरिषद में यूपी से शामिल चेहरों में आठ अगड़े, छह पिछड़े, एक दलित वर्ग से हैं। अगड़ों में तीन ब्राह्मण, दो ठाकुर व एक भूमिहार हैं। पिछड़ों में कुर्मी बिरादरी केदो, लोध, निषाद और जाट से एक-एक चेहरे को जगह देकर इस वोट को भी लामबंद करने की कोशिश की गई है।
दलितों में जाटवों के बाद अनुसूचित जाति में सबसे ज्यादा आबादी वाले पासी बिरादरी का एक चेहरा शामिल है। एक मुस्लिम को भी कैबिनेट में शामिल किया गया है। स्वाभाविक रूप से इन सबको अपने-अपने समाज के बीच भाजपा की जड़ें मजबूत बनाकर दिखाने की चुनौती है।
राजनाथ सिंह
केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह वैसे तो प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सांसद हैं। पर, केंद्रीय मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री के बाद उन्हीं का नाम आता है। पूरे प्रदेश में वह चुनावी दौरा भी कर रहे हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके सिंह निर्विवाद रूप से पूरे प्रदेश के चेहरे माने जाते हैं। इसलिए उन पर न सिर्फ लखनऊ या अवध के 18 जिलों में भाजपा की जीत का आंकड़ा बढ़ाने की जिम्मेदारी है, बल्कि पूरे प्रदेश के नतीजों को भाजपा के अनुकूल बनाने का दायित्व है। साथ ही यह साबित करने की जिम्मेदारी भी है कि वे यूं ही कद-काठी वाले नेता नहीं माने जाते हैं।
कलराज मिश्र
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्री कलराज मिश्र देवरिया से सांसद हैं। इनके संसदीय क्षेत्र की सिर्फ एक सीट पर भाजपा का विधायक है। कलराज पूरे उत्तर प्रदेश में चुनावी दौरा कर रहे हैं। स्वाभाविक रूप से देवरिया और आसपास के जिलों में आने वाली विधानसभा की सीटों के नतीजे कलराज की लोकप्रियता की कसौटी से जुड़े हैं। साथ ही यह बताने वाले भी होंगे कि उन्हें यूपी भाजपा का ब्राह्मण चेहरा यूं ही नहीं माना जाता है।
मेनका गांधी
पीलीभीत से सांसद मेनका गांधी महिला कल्याण मंत्री हैं। उनकी संसदीय सीट पीलीभीत के तहत विधानसभा सीटों में सिर्फ एक पर भाजपा विधायक है। मेनका इससे पहले भी कई बार यहां से सांसद रह चुकी हैं। स्वाभाविक रूप से चुनाव के नतीजे न सिर्फ उनके इलाके बल्कि पीलीभीत के आसपास के जिलों में भी उनके कामकाज और पकड़ व पहुंच का पैमाना बने हैं। इससे यह साबित होगा कि केंद्रीय मंत्रिपरिषद में उनकी मौजूदगी की ठोस वजह है।