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यूपी के माथे पर दो धब्बे: रक्तरंजित विधानसभा और अतिथि गृह कांड- दोनों घटनाओं से कलंकित हुई प्रदेश की समृद्ध सियासी विरासत

अमर उजाला ब्यूरो, लखनऊ Published by: अनुराग सक्सेना Updated Wed, 24 Nov 2021 08:06 AM IST
Two spots on the forehead of UP: Bloody assembly and guest house scandal - both the incidents tarnished the rich political heritage of the state
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मंडल और कमंडल की हवा के बीच सपा-बसपा ने गठबंधन कर सत्ता तो हासिल कर ली, लेकिन सियासी मर्यादाओं के चीरहरण ने प्रदेश के माथे पर दो बदनुमा दाग लगा दिए। माननीयों की मारपीट से विधानसभा रक्तरंजित हो गई। केशरीनाथ त्रिपाठी तो गंभीर रूप से घायल हो गए थे। मतभेदों का जवाब विचारों के बजाय बाहुबल से देने का इसके साथ जो सिलसिला शुरू हुआ वह राज्य अतिथि गृह कांड तक जा पहुंचा। सपा-बसपा ने गठबंधन कर जो चौसर बिछाई थी, वह महत्वाकांक्षाओं की अनंत उड़ान में बिखर गई। पढ़िए अमर उजाला की विशेष रिपोर्ट...

जब वैचारिक प्रतिस्पर्धा बनी राजनीतिक शत्रुता
पहले बात विधानसभा में माननीयों की मारपीट की। अयोध्या में विवादित ढांचा ढहने के बाद से प्रदेश का माहौल गरम था। राजनीति सिर्फ वैचारिक मतभेदों की न रहकर परस्पर मनभेदों तक पहुंच चुकी थी। नाम भले ही कोई दिया गया हो, लेकिन सियासत हिंदू और मुस्लिम हितैषी खांचों में बंट चुकी थी। वैचारिक प्रतिस्पर्धा का स्थान राजनीतिक शत्रुता ने ले लिया था। लोकतंत्र और संवैधानिक परंपराओं की मनमुताबिक परिभाषाएं गढ़कर एक-दूसरे को निपटाने का काम हो रहा था। भाजपा 177 सीटें जीतकर विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनी। पर, उसकी राहें रोकने के लिए धर्म निरपेक्षता, प्रगतिशीलता और स्थिर सरकार देने के नाम पर कांग्रेस ने समर्थन दिया तो सपा-बसपा गठबंधन को सरकार बनाने का मौका मिल गया। इस मौके ने राजनीतिक तनाव को और बढ़ा दिया।
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मुलायम सिंह यादव ने चार दिसंबर 1993 को दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। कल्याण सिंह नेता प्रतिपक्ष बने। धनीराम वर्मा विधानसभा अध्यक्ष। विधानसभा का सत्र शुरू हुआ। तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोरा ने 16 दिसंबर को जैसे ही सदन में अभिभाषण शुरू किया, भाजपा के सदस्य व पूर्व मंत्री राजेंद्र गुप्त ने नियम-311 के तहत कल्याण सिंह की गिरफ्तारी का मामला उठाने का प्रयास किया। अध्यक्ष ने जब इसकी अनुमति नहीं दी तो भाजपा सदस्य ‘कल्याण नहीं तो सदन नहीं’ का नारा लगाते हुए वेल में आ गए। कागज के गोले अध्यक्ष की पीठ की तरफ फेंके जाने लगे। राज्यपाल अभिभाषण पूरा नहीं पढ़ सके। विधानसभा अध्यक्ष ने सदन की कार्यसूची की अगली मद पुकारी। इस पर हंगामा और तेज हो गया।

एक-दूसरे को माइक मारने लगे सदस्य
इसी बीच सत्तापक्ष और विपक्ष में कहासुनी शुरू हो गई। सदस्य मेजों पर लगे माइक तोड़कर एक-दूसरे को मारने लगे। पूर्व मंत्री और तत्कालीन सदन के विधायक डॉ. सरजीत सिंह डंग बताते हैं कि उन्होंने अपनी अटैची सिर पर रखकर खुद को बचाया। वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र भट्ट बताते हैं कि प्रेस गैलरी में पत्रकारों ने भी किसी तरह खुद को बचाया।

कमर में साइकिल की चेन बांधकर आए थे विधायक
इस घटना से एक दिन पहले तक विधानसभा अध्यक्ष रहे केशरीनाथ त्रिपाठी पर लिखी गई किताब ‘केशरीनाथ त्रिपाठी अभिनंदन ग्रंथ’ में उनके हवाले से कहा गया है कि विधायक अपनी कमर में साइकिल की चेन बांधकर आए थे। सदन परिसर में रखे कांच के गिलासों को तोड़कर हथियार बनाया था। बकौल त्रिपाठी यह घटना असंसदीय उपहार थी। यह कार्य अगर किसी दल के इशारे पर नहीं हुआ तो करने वाले कौन थे?
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मायावती पर हमले से लगा दूसरा कलंक
1993 में सपा से गठबंधन के बाद बसपा को 67 सीटें मिलीं तो कांशीराम ने समझ लिया कि जिस दिन यह संदेश देने में कामयाब हो जाएंगे कि वह सरकार बना सकते हैं, बसपा के लिए सबसे बड़े दल के रूप में उभरने में कोई बाधा नहीं आएगी। उन्होंने मायावती को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया। प्रभारी के रूप में वे अप्रत्यक्ष रूप से पूरी सरकार ही चलाने की कोशिश करने लगीं।
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बसपा ने सपा सरकार से ले लिया समर्थन
इससे खफा होकर मुलायम बसपा से पीछा छुड़ाने की कोशिश करने लगे। मुलायम की मायावती से तल्खी बढ़ी तो कांशीराम भी लखनऊ आ गए। बसपा ने दो जून 1995 को मुलायम सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। इससे गुस्साए सपा कार्यकर्ताओं व नेताओं ने राज्य अतिथि गृह,  जहां कांशीराम और मायावती रुके थे, पर हमला कर दिया।

कहा तो यहां तक जाता है कि भाजपा के तत्कालीन नेता दिवंगत ब्रह्मदत्त द्विवेदी अगर अपने समर्थकों के साथ वहां नहीं पहुंचते तो कोई अनहोनी हो सकती थी। बहरहाल राज्य अतिथि गृह कांड ने कांशीराम के दलित व पिछड़ों की एकजुटता के सपने को बुरी तरह तोड़ दिया।
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राजभवन में भाजपा विधायकों के धरने के बाद बर्खास्त हुई मुलायम सरकार
स्टेट गेस्ट हाउस कांड के बाद भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष कलराज मिश्र ने तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोरा से मुलायम सिंह यादव को मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त करने की मांग की। धरने में शामिल रहे अमित पुरी बताते हैं, दो जून की शाम होने तक जब मुलायम को मुख्यमंत्री पद से नहीं हटाया गया, तो कलराज मिश्र लखनऊ में मौजूद विधायकों, प्रमुख नेताओं व कार्यकर्ताओं के साथ राजभवन पहुंचे और धरना दे दिया। उस समय प्रधानमंत्री थे नरसिम्हाराव। देर रात तक धरना चला, तब जाकर मुलायम सिंह यादव को मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त किया गया।
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