मंडल और कमंडल की हवा के बीच सपा-बसपा ने गठबंधन कर सत्ता तो हासिल कर ली, लेकिन सियासी मर्यादाओं के चीरहरण ने प्रदेश के माथे पर दो बदनुमा दाग लगा दिए। माननीयों की मारपीट से विधानसभा रक्तरंजित हो गई। केशरीनाथ त्रिपाठी तो गंभीर रूप से घायल हो गए थे। मतभेदों का जवाब विचारों के बजाय बाहुबल से देने का इसके साथ जो सिलसिला शुरू हुआ वह राज्य अतिथि गृह कांड तक जा पहुंचा। सपा-बसपा ने गठबंधन कर जो चौसर बिछाई थी, वह महत्वाकांक्षाओं की अनंत उड़ान में बिखर गई। पढ़िए अमर उजाला की विशेष रिपोर्ट...
जब वैचारिक प्रतिस्पर्धा बनी राजनीतिक शत्रुता
पहले बात विधानसभा में माननीयों की मारपीट की। अयोध्या में विवादित ढांचा ढहने के बाद से प्रदेश का माहौल गरम था। राजनीति सिर्फ वैचारिक मतभेदों की न रहकर परस्पर मनभेदों तक पहुंच चुकी थी। नाम भले ही कोई दिया गया हो, लेकिन सियासत हिंदू और मुस्लिम हितैषी खांचों में बंट चुकी थी। वैचारिक प्रतिस्पर्धा का स्थान राजनीतिक शत्रुता ने ले लिया था। लोकतंत्र और संवैधानिक परंपराओं की मनमुताबिक परिभाषाएं गढ़कर एक-दूसरे को निपटाने का काम हो रहा था। भाजपा 177 सीटें जीतकर विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनी। पर, उसकी राहें रोकने के लिए धर्म निरपेक्षता, प्रगतिशीलता और स्थिर सरकार देने के नाम पर कांग्रेस ने समर्थन दिया तो सपा-बसपा गठबंधन को सरकार बनाने का मौका मिल गया। इस मौके ने राजनीतिक तनाव को और बढ़ा दिया।
जब वैचारिक प्रतिस्पर्धा बनी राजनीतिक शत्रुता
पहले बात विधानसभा में माननीयों की मारपीट की। अयोध्या में विवादित ढांचा ढहने के बाद से प्रदेश का माहौल गरम था। राजनीति सिर्फ वैचारिक मतभेदों की न रहकर परस्पर मनभेदों तक पहुंच चुकी थी। नाम भले ही कोई दिया गया हो, लेकिन सियासत हिंदू और मुस्लिम हितैषी खांचों में बंट चुकी थी। वैचारिक प्रतिस्पर्धा का स्थान राजनीतिक शत्रुता ने ले लिया था। लोकतंत्र और संवैधानिक परंपराओं की मनमुताबिक परिभाषाएं गढ़कर एक-दूसरे को निपटाने का काम हो रहा था। भाजपा 177 सीटें जीतकर विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनी। पर, उसकी राहें रोकने के लिए धर्म निरपेक्षता, प्रगतिशीलता और स्थिर सरकार देने के नाम पर कांग्रेस ने समर्थन दिया तो सपा-बसपा गठबंधन को सरकार बनाने का मौका मिल गया। इस मौके ने राजनीतिक तनाव को और बढ़ा दिया।