कृषि कानूनों के खिलाफ जब हरियाणा के बॉर्डर पर किसानों ने आंदोलन शुरू किया था तो किसी को उम्मीद नहीं थी कि यह इतना लंबा चलेगा। पंजाब से शुरू हुआ आंदोलन हरियाणा के किसानों के सहयोग से आगे बढ़ा और फिर यूपी के किसानों ने इसमें और जोश भर दिया। किसानों की एक मांग से शुरू हुआ आंदोलन बाद में किसानी से जुड़े हर मसले के हल की आवाज बन गया। इसके बाद पूरे देश से किसान दिल्ली के बॉर्डर पर जुटने लगे और आंदोलन कई मायनों में जुदा हो गया। पिज्जा लंगर और एसी वाले टेंट से किसानों ने अपनी आवाज बुलंद की। आंदोलन लंबा होने लगा तो लंगर में रोटी बनाना हो या फिर चावल पकाना, सभी कामों के लिए मशीनें लगा दी गई थी। किसानों ने बढ़ती ठंड से बचने के लिए गैस हीटर लगा लिए थे।
केंद्र से बार बार बातचीत असफल रही तो किसानों ने अपनी दिनचर्या तय कर ली। दिन की शुरुआत शबद कीर्तन से होती फिर चाय नाश्ते के बाद धरना दिया जाता। लंगर में सेवा करने के बाद किसान ताश खेलते, हुक्का गुड़गुड़ाते और फिर शाम के खाने की तैयारी हो जाती। रात में सेहत फिट रखने के लिए काजू-बादाम वाला दूध भी जरूर पिया जाता था।
किसानों ने अपनी ट्रैक्टर-ट्रालियों को घर बना लिया था। खाद्य सामग्री से लेकर सोने तक की व्यवस्था ट्राली के अंदर कर दी गई थी। पंजाब से किसानों को ठंड से बचाने के लिए लगातार रजाई, गद्दे पहुंचे थे। वाटरप्रूफ टेंट भी लाए गए थे। धरनास्थल पर कपड़े धोने के लिए काफी मशीनें लगा दी गई थी। सफाई की सेवा भी युवा किसानों ने संभाल ली थी।
मौसम के हिसाब से मेन्यू भी बदले गए। बारिश में दिनभर पिज्जा बनाकर बांटा गया। इसके साथ ही गोलगप्पे व जलेबी का लंगर भी लगाए गए। ब्रेड पकौड़े भी थे। युवाओं को पिज्जा के साथ कोल्ड ड्रिंक्स तो बुजुर्गों को कॉफी व चाय दी जाती थी। गाजर का हलवा और जलेबी भी मेन्यू में शामिल थे।
किसानों के पड़ाव में लंगर वाली जगह पर फ्रिज लगाए गए थे वहीं तंबुओं में कूलर और एसी भी लगे थे। जनसभाओं वाले स्थानों पर पंखे लगाए गए थे।