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UP Nikay Chunav: आयोग ने की निकायवार 20-27 प्रतिशत आरक्षण तय करने की सिफारिश, यहां जानें क्या होंगे इसके मायने
अमर उजाला ब्यूरो, लखनऊ
Published by: आकाश दुबे
Updated Sun, 12 Mar 2023 12:50 AM IST
सार
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आयोग की रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में रखकर वहां से चुनाव करवाने की अनुमति मिलने के बाद आरक्षण का प्रतिशत तय करने और आरक्षित सीटों का आकलन करने की प्रक्रिया शुरू होगी। रिपोर्ट में कई जगहों पर एक जैसी ही सीमा रहते हुए भी ओबीसी आबादी की गणना दो बार अलग-अलग करने की बात कही गई है।
निकाय चुनाव में पिछड़ों का आरक्षण तय करने के लिए गठित उप्र राज्य समर्पित पिछड़ा वर्ग आयोग ने निकायवार ओबीसी की आबादी की राजनीतिक स्थिति के आकलन के आधार पर आरक्षण की सिफारिश की है। इसके लिए 1995 के बाद हुए निकायों के चुनाव के परिणामों को आधार बनाया गया है। सूत्रों का कहना है कि प्रदेश के सभी निकायों के परीक्षण के बाद आयोग ने 20 से 27 प्रतिशत की रेंज में अलग-अलग निकायों के लिए अलग-अलग आरक्षण देने की सिफारिश की है। नगर विकास विभाग इस संदर्भ में स्थितियों का आकलन करके आरक्षण का प्रतिशत तय करेगा। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि 752 निकायों की कुल सीटों पर कम से कम 27 प्रतिशत पिछड़ों को आरक्षण मिले।
सूत्रों का कहना है कि आयोग की रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में रखकर वहां से चुनाव करवाने की अनुमति मिलने के बाद आरक्षण का प्रतिशत तय करने और आरक्षित सीटों का आकलन करने की प्रक्रिया शुरू होगी। इसके अलावा आयोग की रिपोर्ट में कई जगहों पर एक जैसी ही सीमा रहते हुए भी ओबीसी आबादी की गणना दो बार अलग-अलग करने की बात कही गई है। बता दें कि आयोग की रिपोर्ट में कई बिंदुओं पर खामियां गिनाई गई हैं और नये सिरे से शुरू होने वाली चुनाव प्रक्रिया में इसे दूर करने का सुझाव दिया गया है। जानकार बताते हैं कि अगर इन सिफारिशों के मुताबिक आरक्षण की स्थितियों में बदलाव हुआ तो बड़े पैमाने पर निकायों के आरक्षण में फेरबदल होंगे। आयोग ने पिछड़ों की आबादी की गिनती के लिए रैपिड सर्वे, आरक्षण नियमों के पालन और आरक्षण की चक्रानुक्रम प्रणाली समेत कई मसलों पर भी सवाल उठाए हैं।
दरअसल नगर विकास विभाग द्वारा पांच दिसंबर को जिस प्रकार से महापौर व अध्यक्षों के अलावा पार्षदों के सीटों के आरक्षण की सूची जारी की गई थी, उसे लेकर ही अधिक विवाद उठा था। इसकों लेकर कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में भी यह शिकायत की गई थी कि नियमानुसार न तो रैपिड सर्वे किया गया है और न ही चक्रानुक्रम प्रणाली का ही पालन किया गया है। साथ ही यह भी सवाल उठाया गया था कि 2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर रैपिड सर्वे कराया गया है, जबकि 12 वर्षों जातीय आंकड़ों में काफी बदलाव हो चुका है।
15 जिलों में मिलीं ज्यादा गड़बड़ियां
सूत्रों का कहना है कि पिछड़ों के आरक्षण को लेकर उठे विवाद के बाद गठित आयोग ने 48 जिलों से अधिक जिलों का दौरा कर रैपिड सर्वे और चक्रानुक्रम प्रणाली का परीक्षण किया तो जनता की शिकायतें कुछ हद तक सही पाई गईं। आयोग को कई ऐसे दृष्टांत मिले, जहां आरक्षण नियमों का सही तरह से पालन नहीं किया गया है। सूत्र बताते हैं कि बरेली, वाराणसी, लखनऊ, वाराणसी, कानपुर, गाजियाबाद, प्रयागराज, गोरखपुर, बरेली, बहराइच, मैनपुरी, इटावा समेत 15 जिलों में आरक्षण से संबंधित गड़बड़ियां मिलीं।
महापौर, अध्यक्ष और तमाम पार्षदों की सीटों में बदलाव संभव
सूत्रों का कहना है कि अगर आयोग की सिफारिशों के मुताबिक नियमों की कसौटी पर आरक्षण को कसा गया तो कई नगर निगमों में महापौर, कई नगर पालिका परिषदों और नगर पंचायतों में अध्यक्षों के अलावा पार्षदों की अधिकांश सीटों के आरक्षण बदल जाएंगे । आयोग ने पाया कि आरक्षण में चक्रानुक्रम प्रणाली का ठीक से पालन न किए जाने से तमाम सीटों को लगातार कई चुनावों में एक ही वर्ग के लिए आरक्षित किया जा रहा है। इसके अलावा ओबीसी की आबादी की गणना के लिए भी जो रैपिड सर्वे हुए हैं, उनके आंकड़ों में भी समानता नहीं है।
आयोग की रिपोर्ट के सुझावों व खामियों को सुलझाने में जुटा विभाग
उधर नगर विकास विभाग के स्तर पर आयोग की रिपोर्ट में दिए गए सुझावों पर अमल करने से साथ ही बताई गई खामियों को दूर करने का काम शुरू कर दिया गया है। विभाग इसके लिए आयोग की रिपोर्ट का अध्ययन कर रहा है। विभाग की कोशिश है कि सुप्रीम कोर्ट से कोई फैसला आने से पहले सभी खामियों तो दूर कर लिया जाए, ताकि कोर्ट से अनुमति मिलते ही चुनाव प्रक्रिया शुरू की जा सके।
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