उत्तर प्रदेश में छठे और सातवें चरण को मिलाकर अब सिर्फ 27 संसदीय सीटों पर चुनाव होना शेष है। सीटों की संख्या कम होने के बावजूद इनके नतीजे न सिर्फ पक्ष बल्कि विपक्ष के लिए भी काफी महत्वपूर्ण हैं। एक तो इन सीटों की जटिल गणित आगे के मुकाबलों को काफी रोचक बनाती दिख रही है, वहीं, भाजपा के ही नहीं विपक्ष के भी कई दिग्गजों की साख दांव पर लगी है। इनमें से कुछ मैदान में तो कुछ बाहर हैं।
दरअसल, वाराणसी, आजमगढ़, गोरखपुर, फूलपुर, गाजीपुर, मिर्जापुर, संतकबीरनगर और देवरिया जैसी सीटों के नतीजे प्रदेश के राजनीतिक समीकरणों में उलटफेर का संकेत दे रहे हैं। वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद चुनाव लड़ रहे हैं तो बगल की सीट आजमगढ़ से सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव मैदान में हैं। भाजपा ने यहां दिनेशलाल यादव निरहुआ को उतारा है। हालांकि आजमगढ़ में अखिलेश यादव के पक्ष में समीकरण काफी मजबूत दिख रहे हैं।
बावजूद इसके किन्हीं कारणों से यदि उनकी सीट फंसती है तो दिल्ली में मायावती के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने की उनकी कोशिशों को बड़ा झटका लग सकता है। गोरखपुर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा से जुड़ी सीट है तो फूलपुर उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की साख से जुड़ी है। फूलपुर में 2014 में केशव मौर्य लगभग 3 लाख के अंतर से जीते थे पर, उप चुनाव में यह सीट भाजपा के हाथ से निकल गई थी। वैसे भी फूलपुर में भाजपा सिर्फ 2014 में ही जीत पाई है।
यह भी वजह
संतकबीरनगर और देवरिया की सीट का सामान्यत: तो बहुत महत्व नहीं था पर, जूता कांड के चलते पूर्वांचल की संतकबीरनगर से देवरिया तक की पट्टी में खेमेबाजी के चलते भाजपा के समीकरण बहुत उलझ चुके हैं। मिर्जापुर से अपना दल की अनुप्रिया पटेल की जीत-हार उनके दल का भविष्य निश्चित करेगी।