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जटिल सियासी गणित में उलझी हैं यूपी की ये 27 सीटें, कम वोटों के उलटफेर से बदल जाएंगे चुनावी नतीजे

अखिलेश वाजपेयी/अमर उजाला, लखनऊ Published by: ishwar ashish Updated Wed, 08 May 2019 02:09 PM IST
Lok sabha elections 2019 Political equations of 27 seats of Uttar Pradesh.
- फोटो : amar ujala

उत्तर प्रदेश में छठे और सातवें चरण को मिलाकर अब सिर्फ 27 संसदीय सीटों पर चुनाव होना शेष है। सीटों की संख्या कम होने के बावजूद इनके नतीजे न सिर्फ पक्ष बल्कि विपक्ष के लिए भी काफी महत्वपूर्ण हैं। एक तो इन सीटों की जटिल गणित आगे के मुकाबलों को काफी रोचक बनाती दिख रही है, वहीं, भाजपा के ही नहीं विपक्ष के भी कई दिग्गजों की साख दांव पर लगी है। इनमें से कुछ मैदान में तो कुछ बाहर हैं।



दरअसल, वाराणसी, आजमगढ़, गोरखपुर, फूलपुर, गाजीपुर, मिर्जापुर, संतकबीरनगर और देवरिया जैसी सीटों के नतीजे प्रदेश के राजनीतिक समीकरणों में उलटफेर का संकेत दे रहे हैं। वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद चुनाव लड़ रहे हैं तो बगल की सीट आजमगढ़ से सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव मैदान में हैं। भाजपा ने यहां दिनेशलाल यादव निरहुआ को उतारा है। हालांकि आजमगढ़ में अखिलेश यादव के पक्ष में समीकरण काफी मजबूत दिख रहे हैं।


बावजूद इसके किन्हीं कारणों से यदि उनकी सीट फंसती है तो दिल्ली में मायावती के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने की उनकी कोशिशों को बड़ा झटका लग सकता है। गोरखपुर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रतिष्ठा से जुड़ी सीट है तो फूलपुर उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की साख से जुड़ी है। फूलपुर में 2014 में केशव मौर्य लगभग 3 लाख के अंतर से जीते थे पर, उप चुनाव में यह सीट भाजपा के हाथ से निकल गई थी। वैसे भी फूलपुर में भाजपा सिर्फ 2014 में ही जीत पाई है।

यह भी वजह
संतकबीरनगर और देवरिया की सीट का सामान्यत: तो बहुत महत्व नहीं था पर, जूता कांड के चलते पूर्वांचल की संतकबीरनगर से देवरिया तक की पट्टी में खेमेबाजी के चलते भाजपा के समीकरण बहुत उलझ चुके हैं। मिर्जापुर से अपना दल की अनुप्रिया पटेल की जीत-हार उनके दल का भविष्य निश्चित करेगी।

बड़ी चुनौती: छह सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों की जीत का अंतर एक लाख से कम था

Lok sabha elections 2019 Political equations of 27 seats of Uttar Pradesh.
वर्ष 2014 में इन 27 सीटों में छह पर भाजपा उम्मीदवारों की जीत का अंतर एक लाख से भी कम था। दो में तो यह अंतर 35 हजार वोटों के अंदर का था। एक सीट आजमगढ़ पर सपा के मुलायम सिंह यादव जीते थे पर, उनकी जीत का अंतर एक लाख से कम था। इसके अलावा इन 27 सीटों में छह सीटें ऐसी हैं जिन्हें भाजपा पहली बार सिर्फ 2014 में ही जीत पाई है।

प्रतापगढ़ में 1998 में भाजपा का कब्जा रहा। पिछली बार यहां भाजपा के सहयोगी अपना दल से कुंवर हरिवंश जीते थे। इसलिए मतदान में जरा सा उलटफेर भाजपा के मिशन 74 प्लस की राह में बड़ी चुनौती खड़ा कर सकता है।

इन सीटों पर एक लाख से कम अंतर से जीती सीटें

Lok sabha elections 2019 Political equations of 27 seats of Uttar Pradesh.
आजमगढ : अंतर 63204
भाजपा को आजमगढ़ से सिर्फ 2009 में ही जीत हासिल हुई है। तब पार्टी ने इलाके के दबंग चेहरे रमाकांत यादव को मैदान में उतारा था। इस बार भोजपुरी गायक और अभिनेता दिनेशलाल यादव निरहुआ भाजपा के टिकट पर लड़ रहे हैं। रमाकांत अब कांग्रेस में हैं और भदोही से मैदान में हैं। रमाकांत के कांग्रेस में जाने और बसपा सपा का साथ होने से भाजपा की कठिनाई बढ़ी है। बसपा और सपा के कुल वोटों का योग 6,06,834 भी भाजपा को मिले 2,77,102 वोटों से काफी आगे है। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि निरहुआ अखिलेश को कितनी चुनौती दे पाते हैं।

बस्ती : अंतर 33562
यहां भाजपा के मौजूदा सांसद हरीश द्विवेदी सपा के ब्रज किशोर उर्फ डिंपल को कड़े संघर्ष में मात्र 33562 वोटों से ही हरा पाए थे। इस बार यहां गठबंधन से बसपा के रामप्रसाद चौधरी मैदान में हैं। पिछली बार बसपा-सपा को 6,07,865 वोट मिले थे। इस आधार पर भाजपा के सामने कठिन चुनौती है। पर, भाजपा को राहत इतनी है कि यहां कांग्रेस से राजकिशोर सिंह मैदान में हैं, जो 2014 में सपा में थे और इन्हीं के भाई को सपा ने प्रत्याशी बनाया था। राजकिशोर के इस बार कांग्रेस से लड़ने के कारण गठबंधन व भाजपा दोनों का गणित उलझा है। वोटों का बंटवारा भाजपा की उम्मीदों को हवा दे सकता है।

गाजीपुर व इलाहाबाद का ये रहा था हाल

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गाजीपुर :  अंतर 32452
गाजीपुर से मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा की जीत भी सपा की शिवकन्या कुशवाहा के मुकाबले मात्र 32452 वोटों से ही हो पाई थी। 2014 में सपा- बसपा के वोटों को जोड़ें तो यह 5,16,122 वोट हो जाता है जो मनोज सिन्हा को मिले 3,06,929 वोटों की तुलना में काफी ज्यादा है। ऐसे में मनोज सिन्हा की चुनौती बढ़ी हुई है।

इलाहाबाद : अंतर 62009
यहां से प्रदेश सरकार की मंत्री डॉ. रीता बहुगुणा जोशी लड़ रही हैं। पिछली बार यहां से भाजपा के टिकट पर जीते श्यामाचरण गुप्त इस बार सपा के टिकट पर बांदा से लड़ रहे हैं। गुप्त की जीत 62009 वोटों से ही हुई थी। 2014 में सपा और बसपा को मिले वोटों का जोड़ 4,91, 083 भाजपा को मिले 3,48,892 वोटों से आगे निकल रहा है।

लगभग डेढ़ लाख का यह अंतर भाजपा की जीत को पीछे छोड़ देता है। यही नहीं, इस सीट से भाजपा से टिकट मांग रहे पार्टी के पुराने नेता योगेश शुक्ल अब कांग्रेस से लड़ रहे हैं। बताया जा रहा है कि योगेश अपने निजी रिश्तों से भाजपा का वोट काट रहे हैं। यहां फिलहाल नतीजों का अनुमान आसान नहीं दिख रहा है।

लालगंज व कुशीनगर में ये था हाल

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लालगंज : अंतर 63086
लालगंज में 63086 वोटों से भाजपा की जीत को गठबंधन की गणित पीछे छोड़ती दिखती है। वर्ष 2014 में गठबंधन का कुल वोट यहां 4,94,901 वोट रहा था जबकि भाजपा की नीलम सोनकर को 3,24,016 वोट मिले थे। यही नहीं लालगंज सीट लंबे समय से भाजपा के लिए बंजर रही है। मोदी मैजिक में पहली बार 2014 में यहां भाजपा का झंडा फहराने वाली नीलम सोनकर ही फिर मैदान में हैं।

कुशीनगर : अंतर 85540
कुशीनगर में भाजपा के राजेश पांडेय गुड्डू ने कांग्रेस के आरपीएन सिंह को 85,540 वोटों से हराया था। सपा-बसपा को 2,44,137 वोट मिला था। इस बार सपा और बसपा का गठबंधन है और कांग्रेस से फिर आरपीएन सिंह मैदान में हैं। भाजपा ने राजेश का टिकट काटकर विजय दुबे को उम्मीदवार बनाया है। भले ही आंकड़ों के लिहाज से गठबंधन यहां भाजपा की राह रोकता नहीं दिख रहा पर, वोटों में थोड़ा बहुत परिवर्तन नतीजे बदल सकता है।

जूता कांड से चर्चा में आए संतकबीरनगर में ये है हाल

Lok sabha elections 2019 Political equations of 27 seats of Uttar Pradesh.
संतकबीरनगर : 97978
यह वही सीट है जहां भाजपा के सांसद शरद त्रिपाठी का जूता कांड मीडिया में खासा मु्द्दा बना था। भाजपा ने इस बार शरद की जगह सपा से भाजपा में आए गोरखपुर से सांसद प्रवीण निषाद को मैदान में उतारा है। पूर्वांचल की इस पट्टी के ब्राह्मण मतदाता नाराज न हों इसके लिए शरद के पिता डॉ. रमापति राम त्रिपाठी को पार्टी ने देवरिया से कलराज मिश्र की जगह उम्मीदवार बनाया है।
 
संतकबीरनगर सीट पर सपा और बसपा का जोड़ 4,91,083 भाजपा को मिले 3,48, 892  वोटों पर भारी दिख रहा है। पर, उम्मीदवार बदलने और सांसद व विधायक के बीच हुए इस कांड से समीकरण बदले हुए हैं। इसलिए रुझान का बदलाव कुछ भी नतीजे दे सकता है।  

यह गणित भी कम उलझा नहीं
अंबेडकरनगर, घोसी, सलेमपुर और बलिया सीटें भाजपा 2014 में पहली बार जीती थी। हालांकि इन सभी सीटों पर भाजपा की जीत का अंतर काफी ज्यादा रहा था। पर, यहां सपा-बसपा के वोट जोड़ दें तो भाजपा की राह कठिन दिखती है। इसी तरह डुमरियागंज व महराजगंज में भाजपा की जीत का अंतर काफी ज्यादा था पर, गठबंधन की गणित यहां भारी दिखती है।
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