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Hindu Personal Law Board petition challenges section 494 of ipc, questions on the right to marriage
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Lucknow : हिन्दू पर्सनल लॉ बोर्ड की हाईकोर्ट में याचिका- धारा 494 को चुनौती, शादी के हक पर सवाल
अमर उजाला नेटवर्क, लखनऊ
Published by: दुष्यंत शर्मा
Updated Thu, 02 Mar 2023 02:05 AM IST
सार
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कहा गया है कि आईपीसी की यह धारा मुस्लिमों को छोड़कर अन्य सभी समुदायों पर लागू होती है, जो धार्मिक भेदभाव को दर्शाता है। याचिका के माध्यम से मुस्लिम पर्सनल (शरीयत) अप्लीकेशन एक्ट, 1937 को भी चुनौती दी गई है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में दाखिल एक जनहित याचिका के माध्यम से, आईपीसी की धारा 494 को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की गई है। कहा गया है कि आईपीसी की यह धारा मुस्लिमों को छोड़कर अन्य सभी समुदायों पर लागू होती है, जो धार्मिक भेदभाव को दर्शाता है। याचिका के माध्यम से मुस्लिम पर्सनल (शरीयत) अप्लीकेशन एक्ट, 1937 को भी चुनौती दी गई है। इस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल को नोटिस जारी करने के साथ ही केंद्र सरकार को भी छह सप्ताह में जवाबी शपथपत्र दाखिल करने को कहा है। यह आदेश न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने दिया।
कोर्ट ने हिन्दू पर्सनल लॉ बोर्ड नामक संगठन की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि केंद्र सरकार की तरफ से शपथपत्र दाखिल किए जाने के दो सप्ताह बाद याची को भी अपना प्रत्युत्तर देना होगा। मामले की अगली सुनवाई आठ सप्ताह बाद होगी। याचीकर्ता संगठन के अधिवक्ता अशोक पांडेय ने बताया कि आईपीसी की धारा 494 के तहत यदि कोई व्यक्ति अपने पति या पत्नी के जीवनकाल में दूसरा विवाह करता है तो उसका यह विवाह शून्य है। इसके लिए सात साल के कारावास और जुर्माना से दंडित किए जाने का प्रावधान है।
याचीकर्ता की तरफ से कहा गया कि आईपीसी का यह प्रावधान मुस्लिमों के अतिरिक्त अन्य सभी समुदायों, हिन्दू, बौद्ध, सिख, ईसाई आदि पर लागू होता है। मुस्लिम समुदाय के लोगों पर यह प्रावधान इसलिए लागू नहीं होता क्योंकि शरीयत अप्लीकेशन एक्ट मुस्लिम पुरुष को चार शादियां करने की इजाजत देता है। यह सीधे तौर पर धर्म के आधार पर भेदभाव को दर्शाता है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 15 का भी उल्लंघन है। इसलिए आईपीसी की धारा 494 को असंवैधानिक घोषित कर खत्म किया जाए।
मुसलमानों को चार शादी का हक तो अन्य को क्यों नहीं
हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड ने हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में जनहित याचिका दायर कर सवाल उठाया है कि जब मुसलमानों को चार शादी करने का हक है तो हिंदुओं व अन्य धर्म के लोगों को यह अधिकार क्यों नहीं है? इसमें आईपीसी की धारा 494 को भेदभाव पूर्ण बताते हुए असांविधानिक घोषित करने की मांग की गई है।
हाईकोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत आवेदन) अधिनियम 1937 और आईपीसी की धारा 494 (द्विविवाह का अपराध होना) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को छह हफ्ते में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। कानून की वैधता को चुनौती के मद्देनजर अटार्नी जनरल को भी नोटिस जारी किया गया है। न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने यह आदेश हिंदू पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव महंत पवन कुमार दास शास्त्री की याचिका पर दिया। कोर्ट ने याची को आदेश दिया कि केंद्र सरकार के जवाब दाखिल करने के दो सप्ताह बाद वह भी अपना प्रत्युत्तर पेश करे। मामले की अगली सुनवाई आठ सप्ताह बाद होगी।
याची के अधिवक्ता अशोक पांडेय का कहना था कि आईपीसी की धारा 494 के तहत हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन, ईसाई व यहूदियों को पत्नी के जीवन काल में दूसरी शादी करने (द्वि विवाह) के अपराध में 7 साल तक की सजा व जुर्माना का प्रावधान है। लेकिन यह कानून मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत आवेदन) अधिनियम 1937 की वजह से मुसलमानों पर लागू नहीं होता है। कहा, ऐसे में यह कानून संविधान के अनुच्छेद 15 में दिए गए उस मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है जो राज्य को सिर्फ धर्म के आधार पर नागरिकों के बीच भेदभाव करने से रोकता है।
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