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गायत्री प्रजापति के अवैध निर्माण पर कोर्ट सख्त, कहा- दो दिन में गिरा दो

ब्यूरो/अमर उजाला, लखनऊ Updated Fri, 16 Jun 2017 01:12 AM IST
high court orders to demolish the illegal construction of gayatri prajapati
गायत्री प्रसाद प्रजापति - फोटो : amar ujala

हाईकोर्ट ने पूर्व मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति और उसके बेटे अनुराग प्रजापति के अवैध निर्माण को दो दिन में तोड़ने का आदेश दिया है। अदालत ने अनुराग की रिट याचिका खारिज करते हुए साफ कहा है कि पॉलिटिकल बॉस और एलडीए अधिकारियों की मिलीभगत से अवैध निर्माण हुआ।



हाईकोर्ट ने एलडीए चेयरमैन और मंडलायुक्त से अवैध निर्माण होने देने में शामिल अधिकारियों के नाम और उन पर कार्रवाई का ब्योरा सोमवार तक पेश करने को कहा है।


हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के जस्टिस विवेक चौधरी ने यह कड़ा फैसला सुनाया। पूर्व मंत्री के बेटे ने यह रिट याचिका एलडीए के चेयरमैन अनिल गर्ग द्वारा अपील खारिज करने के 23 मई 2017 के आदेश के खिलाफ दायर की थी। यह अपील एलडीए के विहित प्राधिकारी धनंजय शुक्ला के 25 अप्रेल 2017 के ध्वस्तीकरण के आदेश के खिलाफ की गई थी।

अनुराग का कहना था कि उसके पिता को अपील करने का मौका नहीं दिया गया। याचिका में कहा गया कि चूंकि जमीन तीन अलग-अलग सेल डीड से खरीदी गई, ऐसे में उसके पिता को भी अपील का कानूनी अधिकार है। पिता के जेल में होने के कारण उसने पिता की ओर से अपील की है।

अफसर पहले से जानते थे अवैध निर्माण के बारे में

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हाईकोर्ट ने कहा कि एलडीए के अधिकारी अवैध निर्माण के बारे में पहले से जानते थे। 24 दिसंबर 2016 को एलडीए के आदेश से इसका पता चलता है।

इस आदेश में गायत्री प्रजापति के संशोधित नक्शे को इस आधार पर ही खारिज किया गया कि वहां पूर्व में ही निर्माण हो गया। यह फैक्ट एलडीए के अधिकारियों की अपने पॉलिटिकल बॉस से मिलीभगत को साबित कर देता है। छह महीने पहले तय हो चुका था कि निर्माण अवैध है, इसके बाद भी इसे तोड़ा नहीं गया।

जिम्मेदारों पर कार्रवाई होगी, इस पर संदेह
हाईकोर्ट ने कहा, मुझे गंभीर संदेह है कि एलडीए के अधिकारी जिम्मेदारों पर कोई कार्रवाई करेंगे। अब एलडीए के चेयरमैन खुद हाईकोर्ट को सोमवार को बताएं कि बिना नक्शा पास हुए अवैध निर्माण होने देने के लिए जिम्मेदार अधिकारी और कर्मचारियों पर क्या कार्रवाई की गई?

फोटो देखकर तो नहीं लगता रिहाइशी है निर्माण
हाईकोर्ट ने याची की तरफ से दिए गए फोटोग्राफ देखकर कहा कि इससे तो नहीं लगता कि यह रिहाइशी निर्माण है। बेसमेंट के साथ बने पहले और दूसरे तल पर बिना किसी पार्टिशन के निर्माण हुआ है। वहीं एलडीए में जमा किए गए नक्शा के मुताबिक भी निर्माण नहीं हुआ है।

कोर्ट ने कहा, एलडीए की कार्रवाई बिल्कुल सही

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अपर महाधिवक्ता मदन मोहन पांडेय ने बताया कि हाईकोर्ट ने साफ तौर पर याची अनुराग प्रजापति को अंतरिम राहत देने से मना कर दिया। अदालत ने माना कि एलडीए की कार्रवाई बिल्कुल ठीक है।

इसके बाद याचिका को खारिज करते हुए सोमवार को चेयरमैन एलडीए से व्यक्तिगत शपथ पत्र देने के लिए कहा है। इसमें चेयरमैन को बताना होगा कि विहित प्राधिकारी के पूर्व आदेश का हाईकोर्ट के आदेश पर अनुपालन करा दिया गया है।

एलडीए नहीं बता पाया, कैसे जमा हुआ शमन शुल्क
याची ने हाईकोर्ट के सामने तथ्य रखा कि उसने अपने निर्माण का शमन कराने के लिए एलडीए में 10,000 रुपये का शुल्क जमा किया। वहीं एलडीए हाईकोर्ट को नहीं बता पाया कि उसने किस आधार पर याची को शमन शुल्क जमा करने दिया।

याची भी शमन शुल्क जमा करने का उद्देश्य साबित करने में विफल रहा। इससे पता चलता है कि नियम-कायदों का सम्मान किए बिना प्रदेश सरकार के मंत्री को अवैध निर्माण करने दिया गया। इसके बाद एलडीए के अधिकारी तकनीकी कारण बताते हुए कार्रवाई से बचते रहे।

बाप-बेटे के नाम अलग-अलग जमीन, निर्माण एक

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एलडीए ने हाईकोर्ट में बताया कि गायत्री प्रजापति और उसके बेटे अनुराग ने तीन सेल डीड से जमीनें 2012 में खरीदीं। इन जमीनों पर संयुक्त रूप से एक निर्माण कराया गया है। इसके लिए नक्शा स्वीकृत कराने के लिए सात फरवरी 2015 को आया।

इसके खारिज होने के बाद संशोधित नक्शा 18 जून 2015 और 20 दिसंबर 2016 को दिया गया। इन्हें भी 24 दिसंबर 2016 को खारिज कर दिया गया। जिन जमीनों पर एलडीए में नक्शा स्वीकृत होने के लिए आया, उनमें दो भूखंड 589/1 और 589/2 गायत्री प्रजापति के नाम हैं। वहीं खसरा संख्या 174 की जमीन अनुराग प्रजापति के नाम है।

ऐसे में विहित प्राधिकारी के ध्वस्तीकरण आदेश में गायत्री प्रजापति व अन्य के अवैध निर्माण को तोड़ने के लिए कहा गया। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में याची अनुराग प्रजापति और उसके पिता गायत्री प्रजापति के अवैध निर्माण को अब तोड़ने के लिए कहा है।

स्टे ऑर्डर नहीं था, फिर क्यों नहीं तोड़ा अवैध निर्माण
हाईकोर्ट ने एलडीए से पूछा है कि 25 अप्रैल 2016 के आदेश पर कार्रवाई करने से रोकने के लिए किसी सक्षम कोर्ट से स्टे ऑर्डर नहीं था। ऐसे में अवैध निर्माण को तोड़ने के प्रयास क्यों नहीं किए गए? इससे पूर्व मंत्री और एलडीए के अधिकारियों की मिलीभगत ही साबित होती है। इसके बाद हाईकोर्ट ने याचिका की सुनवाई से मना कर दिया। वहीं अपने आदेश में कहा कि अधिकारियों ने अवैध निर्माण के खिलाफ अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई।
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