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Delhi: 'जालसाजी अर्थव्यवस्था को करती है प्रभावित', नकली बेल्ट बेचने के मामले पर सुनवाई में हाईकोर्ट की टिप्पणी

अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली Published by: आकाश दुबे Updated Tue, 07 Feb 2023 12:40 AM IST
सार

अदालत ने दिल्ली स्थित एक स्टोर के मालिक को फ्रांसीसी लक्जरी फैशन हाउस लुई वुइटन (एलवी) को उसके नकली उत्पादों को बेचने के लिए नुकसान के रूप में पांच लाख का भुगतान करने का निर्देश देते हुए यह टिप्पणी की। अदालत ने यह निर्देश ट्रेडमार्क उल्लंघन से संबंधित लुई वुइटन (एलवी) द्वारा दायर आवेदन पर विचार करते हुए दिया।

Counterfeiting affects the economy High Court remarks in hearing on case of selling fake belts
Delhi high court - फोटो : फाइल फोटो

विस्तार

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि जालसाजी एक अत्यंत गंभीर मामला है, जिसका प्रभाव बहुत आगे तक जाता है और लंबे समय में राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के ताने-बाने पर इसका गंभीर असर पड़ता है। अदालत ने यह टिप्पणी दुकानदार को नकली बेल्ट बेचने के एक मामले में सुनवाई करते हुए की। इस मामले में अदालत ने लुइस वुइटन को पांच लाख का भुगतान करने का आदेश दिया है। ऐसा न करने पर उसे एक सप्ताह तक जेल की सजा काटनी होगी।



न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने कहा कि यह एक व्यावसायिक बुराई है जो ब्रांड मूल्य को नष्ट कर रही है और भरोसेमंद उपभोक्ता के साथ दोहरापन है। नकली सामान पूरी तरह से कानून के शासन की सीमाओं के भीतर काम करने वाले न्यायालय द्वारा न्यायसंगत विचार के किसी भी अधिकार को छोड़ देता है। वह किसी सहानुभूति का हकदार नहीं है। न्यायालय को आर्थिक और सामाजिक रूप से संवेदनशील होने की आवश्यकता है, और दूसरों को एक निवारक संदेश भेजने की आवश्यकता है।


अदालत ने दिल्ली स्थित एक स्टोर के मालिक को फ्रांसीसी लक्जरी फैशन हाउस लुई वुइटन (एलवी) को उसके नकली उत्पादों को बेचने के लिए नुकसान के रूप में पांच लाख का भुगतान करने का निर्देश देते हुए यह टिप्पणी की। अदालत ने यह निर्देश ट्रेडमार्क उल्लंघन से संबंधित लुई वुइटन (एलवी) द्वारा दायर आवेदन पर विचार करते हुए दिया। आवेदन में आरोप लगाया गया था कि अदालत के सितंबर 2021 के निषेधाज्ञा आदेश के बावजूद प्रतिवादी जावेद अंसारी नकली एलवी उत्पाद बेच रहा था।

जंतर-मंतर पर उपकरणों की कार्यक्षमता की स्थिति रिपोर्ट तलब
दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को जंतर मंतर पर उपकरणों की कार्यक्षमता की स्थिति के बारे में रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने यह निर्देश संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। याची ने आरोप लगाया कि अदालत के सितंबर 2010 के उस आदेश का पालन नहीं किया जा रहा, जिसमें एएसआई ने यह वादा किया था कि राष्ट्रीय स्मारक को उसकी क्षमता के अनुसार उसके मूल गौरव को बहाल किया जाएगा। वहां उपलब्ध खगोलीय उपकरणों को क्रियाशील बनाया जाएगा। मामले की सुनवाई 24 अप्रैल तय की गई है।

एएसआई को चार सप्ताह के भीतर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश
याचिकाकर्ता ने कहा कि वर्तमान कार्यवाही में केंद्रीय मुद्दा यह है कि जंतर-मंतर स्मारक पर उपकरण कार्यात्मक स्थिति में नहीं हैं। उन्होंने कहा कि 12 साल बीत जाने के बावजूद चीजें अपरिवर्तित हैं। याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने 20 जनवरी को एक आदेश पारित किया था, जिसमें उसने एएसआई को चार सप्ताह के भीतर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया और विशेष रूप से स्मारक पर उपकरणों के कार्यात्मक रूप से मौजूदा स्थिति के संबंध में अपना रुख निर्धारित किया। अदालत ने याचिकाकर्ता से यह भी कहा कि वह एएसआई के हलफनामे को जमा करने के बाद उसका जवाब दाखिल करें। अदालत ने उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 2010 में एएसआई की ओर से दिए गए एक वचन को दर्ज करते हुए एक आदेश पारित किया था कि जंतर-मंतर को कार्यात्मक बनाया जाएगा और इसकी मूल महिमा को बहाल किया जाएगा।
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