हरियाणा में बिजली चोरी, तकनीकी लॉस, कमर्शियल लॉस व बिजली बिल की कम उगाही के चलते हर साल बिजली वितरण कंपनियां सैकड़ों करोड़ का नुकसान झेल रही हैं। पांच वित्तीय वर्ष की समीक्षा करें तो सूबे की दोनों उत्तरी एवं दक्षिणी हरियाणा बिजली वितरण कंपनियों (डिसकॉम) को करीब 28329.1 करोड़ का नुकसान हो चुका है।
इसे ‘एटी एंड सी’ यानी एग्रीगेट टेक्निकल एंड कामर्शियल लॉस कहा जाता है। सरकार अब इसी एटी एंड सी लॉस को कम करने में जुटी है। जिसके चलते 2016 से बिजली कंपनियों ने सख्ती दिखानी शुरू कर दी है। जिससे 15 साल से घाटे में डूबी प्रदेश की बिजली वितरण कंपनियों को अब संजीवनी मिलने लगी है।
नतीजतन दो वित्तीय वर्ष से बिजली वितरण कंपनियों को पंद्रह साल बाद फायदा होना शुरू हुआ है। इसी सख्ती से वित्तीय वर्ष 2017-18 में बिजली कंपनियों को 412 करोड़ का फायदा हुआ रहा, तो वहीं 2018-19 में ये फायदा लगभग 280 करोड़ था, जिसमें अभी करीब 606 करोड़ सरकार की ओर से सब्सिडी की राशि आनी बाकी है।
वित्त वर्ष 2019-20 भी खत्म होने को है। आला अफसरों को उम्मीद है कि इस बार भी बिजली कंपनी फायदे में ही रहेंगी। देश में कुछेक ही राज्य (गुजरात, कर्नाटक, उतराखंड इत्यादि) ऐसे हैं, जिनकी बिजली वितरण कंपनियां फायदे में हैं। उनमें अब हरियाणा भी शामिल हो गया है।
उत्तरी एवं दक्षिणी हरियाणा बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के सीएमडी एवं चेयरमैन शत्रुजीत कपूर के अनुसार बिजजी कंपनियां फायदे में रहेंगी, तभी प्रदेश की बिजली सप्लाई को और सुचारु किया जा सकेगा। सरकार भी पूरा सहयोग कर रही है, जबकि हमने अपनी बिलिंग व कलेक्शन एफिशियंसी को भी बढ़ाया है। उनके अनुसार हमने तीन साल में एटी एंड सी के नुकसान कम करना शुरू कर दिया है।
बिजली वितरण कंपनियों के आला अफसरों का मानना है कि एक खास रणनीति से एटी एंड सी लॉस को और कम किया जा सकता है। जिससे बिजली व्यवस्था और कंपनियों की अर्थव्यवस्था दोनों मजबूत होंगी। वित्त वर्ष 2014-15 से एटी एंड सी लॉस की स्थिति देखें तो ये लॉस 29.98 प्रतिशत (6895.4 करोड़) था। 2015-16 ये लॉस बढ़कर 30.02 प्रतिशत (6904.6 करोड़) हो गया।
वित्त वर्ष 2016-17 में जब सख्ती हुई तो ये नुकसान कम होना शुरू हुआ और 25.43 प्रतिशत (5848.9 करोड़) तक पहुंचा। 2017-18 में लॉस 20.29 प्रतिशत (4666.7 करोड़) और 2018-19 में ये लॉस 17.45 प्रतिशत (4013.5 करोड़) हो गया। उम्मीद जताई जा रही है इस वित्त वर्ष 2019-20 में एटी एंड सी लॉस घटकर लगभग 16.25 प्रतिशत तक ( करीब 3737.5 करोड़) करोड़ हो सकता है।
उधर, हरियाणा बिजली विनियामक आयोग के चेयरमैन डीएस ढेसी भी एटी एंड सी लॉस को कम करने को लेकर गंभीर है। विभिन्न सर्कलों में अपने दौरे में ढेसी इसी लॉस की रिपोर्ट को गंभीरता से लेते हुए अफसरों को इसे कम करने के निर्देश देते रहे हैं।
बिजली कंपनियों का घाटा तभी पूरा हो सकता है जब बिलिंग और कलेक्शन क्षमता को और सुधारा जाए। सरकार अब इसी दिशा में काम कर रही है। नतीजतन दो साल में उतरी हरियाणा बिजली वितरण निगम की बिलिंग क्षमता (बिजली उपभोग यूनिटों का बिल) लगभग 67 से बढ़कर 80 फीसद तक रही।
वहीं दक्षिणी हरियाणा बिजली वितरण निगम की बिलिंग क्षमता करीब 74 से 85 फीसद तक हो गई। दोनों बिजली कंपनियों की औसतन क्षमता आज 83 प्रतिशत है, जोकि पहले 71 प्रतिशत थी। इसी के खिलाफ दो साल में बिजली कंपनियों की कलेक्शन क्षमता पूरी 100 फीसद रही।
यानी दो साल में जितनी यूनिट बिजली के बिल जेनरेट हुए, उसकी 100 प्रतिशत वसूली बिजली वितरण कंपनियों ने की। जोकि इन कंपनियों के लिए अच्छे संकेत हैं।
हरियाणा में बिजली चोरी, तकनीकी लॉस, कमर्शियल लॉस व बिजली बिल की कम उगाही के चलते हर साल बिजली वितरण कंपनियां सैकड़ों करोड़ का नुकसान झेल रही हैं। पांच वित्तीय वर्ष की समीक्षा करें तो सूबे की दोनों उत्तरी एवं दक्षिणी हरियाणा बिजली वितरण कंपनियों (डिसकॉम) को करीब 28329.1 करोड़ का नुकसान हो चुका है।
इसे ‘एटी एंड सी’ यानी एग्रीगेट टेक्निकल एंड कामर्शियल लॉस कहा जाता है। सरकार अब इसी एटी एंड सी लॉस को कम करने में जुटी है। जिसके चलते 2016 से बिजली कंपनियों ने सख्ती दिखानी शुरू कर दी है। जिससे 15 साल से घाटे में डूबी प्रदेश की बिजली वितरण कंपनियों को अब संजीवनी मिलने लगी है।
नतीजतन दो वित्तीय वर्ष से बिजली वितरण कंपनियों को पंद्रह साल बाद फायदा होना शुरू हुआ है। इसी सख्ती से वित्तीय वर्ष 2017-18 में बिजली कंपनियों को 412 करोड़ का फायदा हुआ रहा, तो वहीं 2018-19 में ये फायदा लगभग 280 करोड़ था, जिसमें अभी करीब 606 करोड़ सरकार की ओर से सब्सिडी की राशि आनी बाकी है।
वित्त वर्ष 2019-20 भी खत्म होने को है। आला अफसरों को उम्मीद है कि इस बार भी बिजली कंपनी फायदे में ही रहेंगी। देश में कुछेक ही राज्य (गुजरात, कर्नाटक, उतराखंड इत्यादि) ऐसे हैं, जिनकी बिजली वितरण कंपनियां फायदे में हैं। उनमें अब हरियाणा भी शामिल हो गया है।
उत्तरी एवं दक्षिणी हरियाणा बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के सीएमडी एवं चेयरमैन शत्रुजीत कपूर के अनुसार बिजजी कंपनियां फायदे में रहेंगी, तभी प्रदेश की बिजली सप्लाई को और सुचारु किया जा सकेगा। सरकार भी पूरा सहयोग कर रही है, जबकि हमने अपनी बिलिंग व कलेक्शन एफिशियंसी को भी बढ़ाया है। उनके अनुसार हमने तीन साल में एटी एंड सी के नुकसान कम करना शुरू कर दिया है।
नुकसान और कम करने को बनेगी रणनीति
बिजली वितरण कंपनियों के आला अफसरों का मानना है कि एक खास रणनीति से एटी एंड सी लॉस को और कम किया जा सकता है। जिससे बिजली व्यवस्था और कंपनियों की अर्थव्यवस्था दोनों मजबूत होंगी। वित्त वर्ष 2014-15 से एटी एंड सी लॉस की स्थिति देखें तो ये लॉस 29.98 प्रतिशत (6895.4 करोड़) था। 2015-16 ये लॉस बढ़कर 30.02 प्रतिशत (6904.6 करोड़) हो गया।
वित्त वर्ष 2016-17 में जब सख्ती हुई तो ये नुकसान कम होना शुरू हुआ और 25.43 प्रतिशत (5848.9 करोड़) तक पहुंचा। 2017-18 में लॉस 20.29 प्रतिशत (4666.7 करोड़) और 2018-19 में ये लॉस 17.45 प्रतिशत (4013.5 करोड़) हो गया। उम्मीद जताई जा रही है इस वित्त वर्ष 2019-20 में एटी एंड सी लॉस घटकर लगभग 16.25 प्रतिशत तक ( करीब 3737.5 करोड़) करोड़ हो सकता है।
उधर, हरियाणा बिजली विनियामक आयोग के चेयरमैन डीएस ढेसी भी एटी एंड सी लॉस को कम करने को लेकर गंभीर है। विभिन्न सर्कलों में अपने दौरे में ढेसी इसी लॉस की रिपोर्ट को गंभीरता से लेते हुए अफसरों को इसे कम करने के निर्देश देते रहे हैं।
और सुधरेगी बिलिंग व कलेक्शन क्षमता
बिजली कंपनियों का घाटा तभी पूरा हो सकता है जब बिलिंग और कलेक्शन क्षमता को और सुधारा जाए। सरकार अब इसी दिशा में काम कर रही है। नतीजतन दो साल में उतरी हरियाणा बिजली वितरण निगम की बिलिंग क्षमता (बिजली उपभोग यूनिटों का बिल) लगभग 67 से बढ़कर 80 फीसद तक रही।
वहीं दक्षिणी हरियाणा बिजली वितरण निगम की बिलिंग क्षमता करीब 74 से 85 फीसद तक हो गई। दोनों बिजली कंपनियों की औसतन क्षमता आज 83 प्रतिशत है, जोकि पहले 71 प्रतिशत थी। इसी के खिलाफ दो साल में बिजली कंपनियों की कलेक्शन क्षमता पूरी 100 फीसद रही।
यानी दो साल में जितनी यूनिट बिजली के बिल जेनरेट हुए, उसकी 100 प्रतिशत वसूली बिजली वितरण कंपनियों ने की। जोकि इन कंपनियों के लिए अच्छे संकेत हैं।