चंपावत। उत्तराखंड के प्रमुख धर्म स्थल मां पूर्णागिरि मंदिर की चट्टानों में आई दरारों को भरने (रिस्टोरेशन) का काम 13 वर्ष से लटका है। सर्वे, डिजाइन और डीपीआर (विस्तृत प्रगति रिपोर्ट) से ज्यादा वक्त इसकी कार्यदाई संस्था, डिविजन की अदला-बदली में लग रहा है। अब शासन ने कार्यदाई संस्था विश्व बैंक की निर्माण शाखा के बेरीनाग डिविजन से इस काम को लेकर हल्द्वानी डिविजन को दे दिया है।
पीआईयू (सेतु, सिंचाई एवं स्लोप) के कार्यक्रम प्रबंधक एसए मुरुगेशन ने 10 फरवरी को आदेश जारी किए हैं। विश्व बैंक की निर्माण शाखा को बदलने की वजह बेरीनाग से धाम की अधिक दूरी होना बताया गया है। बेरीनाग से पूर्णागिरि का फासला 215 किलोमीटर है, जबकि हल्द्वानी से ये दूरी 141 किमी है।
कहा गया कि इससे गुणवत्ता, प्रशासनिक नियंत्रण और भौतिक कार्यों की देखरेख बेहतर तरीके से हो सकेगी। 2008 से शुरू हुई यह परियोजना सबसे पहले लोनिवि के जिम्मे थी। 2017 में इस काम को विश्व बैंक निर्माण शाखा को दिया गया और अब बेरीनाग से हल्द्वानी डिविजन स्थानांतरित कर दिया गया है।
विश्व बैंक निर्माण खंड हल्द्वानी के ईई प्रवीण गुरुरानी का कहना है कि जल्द ही इस परियोजना को हस्तांतरित कर लिया जाएगा। इधर, विधायक कैलाश गहतोड़ी ने इस मामले में पहली मार्च से शुरू हो रहे विधानसभा के बजट सत्र में अनुपूरक प्रश्न लगाया है जिसमें पूर्णागिरि धाम की सुरक्षा के लिए उठाए गए अब तक के कदम और निर्माण की स्थिति की जानकारी मांगी गई है।
स्वतंत्र परामर्शदाता एजेंसी के डीपीआर के प्रारूप में संलग्न नहीं नक्शा
चंपावत। पूर्णागिरि मंदिर शिवालिक चट्टानयुक्त क्षेत्र में स्लेटी बलुआ पत्थरयुक्त चट्टानों पर स्थित है। शिखर पर्वत की संवेदनशीलता और भौगोलिक दुरुहता के चलते पहले बनी डीपीआर और डिजाइन के अनुरूप काम नहीं हो सका। सुरक्षा, निर्माण की जटिलता के चलते डिजाइन बदलने का काम पुणे की एक स्वतंत्र परामर्शदाता एजेंसी के आशीष घुड़पड़े को दिया गया।
मंदिर के शिखर से करीब 30 मीटर नीचे तक दरार भरने का शुरुआती प्रस्ताव है। ईई प्रवीण गुरुरानी ने बताया कि डीपीआर का प्रारूप आ गया है, लेकिन नक्शे नहीं लगे होने सहित कई कमियों के चलते परामर्शदाता से जरूरी पूछताछ की जाएगी। इसके बाद आगे की कार्यवाही होगी।
तीन बार निविदा निकालने पर भी शुरू नहीं हो सका काम
चंपावत। पूर्णागिरि के मुख्य मंदिर की पहाड़ी में 2008 से कई जगह करीब पांच इंच चौड़ी दरार हैं। एनएचपीसी, सीडब्ल्यूसी, वाप्कोस कंपनी ने शुरुआती डीपीआर तैयार की थी। 2015 में शासन ने उत्तराखंड आपदा राहत परियोजना से परामर्शदाता एजेंसी के चयन के साथ सर्वे का काम कराया।
भूगर्भीय रिपोर्ट, परामर्शदाता एजेंसी ने 5500 फीट की ऊंचाई वाले इस धाम की दरारों को भरने के साथ मुख्य मंदिर से 700 मीटर तक पैदल मार्ग की दो फीट की चौड़ाई को बढ़ाकर आठ फीट तक करने का सुझाव दिया था। लेकिन तीन बार निविदा निकाले जाने के बावजूद काम शुरू नहीं हो सका।
एई श्याम शुभम ने बताया कि राष्ट्रीय निविदा के बावजूद जोखिम के चलते 9.97 करोड़ रुपये के इस काम में कंपनियों ने कम दिलचस्पी ली। जो अकेले निविदादाता इसमें आए भी, उन्होंने 108 प्रतिशत ज्यादा में निविदा डाली थी। जिसे खारिज कर दिया गया था।
चंपावत। उत्तराखंड के प्रमुख धर्म स्थल मां पूर्णागिरि मंदिर की चट्टानों में आई दरारों को भरने (रिस्टोरेशन) का काम 13 वर्ष से लटका है। सर्वे, डिजाइन और डीपीआर (विस्तृत प्रगति रिपोर्ट) से ज्यादा वक्त इसकी कार्यदाई संस्था, डिविजन की अदला-बदली में लग रहा है। अब शासन ने कार्यदाई संस्था विश्व बैंक की निर्माण शाखा के बेरीनाग डिविजन से इस काम को लेकर हल्द्वानी डिविजन को दे दिया है।
पीआईयू (सेतु, सिंचाई एवं स्लोप) के कार्यक्रम प्रबंधक एसए मुरुगेशन ने 10 फरवरी को आदेश जारी किए हैं। विश्व बैंक की निर्माण शाखा को बदलने की वजह बेरीनाग से धाम की अधिक दूरी होना बताया गया है। बेरीनाग से पूर्णागिरि का फासला 215 किलोमीटर है, जबकि हल्द्वानी से ये दूरी 141 किमी है।
कहा गया कि इससे गुणवत्ता, प्रशासनिक नियंत्रण और भौतिक कार्यों की देखरेख बेहतर तरीके से हो सकेगी। 2008 से शुरू हुई यह परियोजना सबसे पहले लोनिवि के जिम्मे थी। 2017 में इस काम को विश्व बैंक निर्माण शाखा को दिया गया और अब बेरीनाग से हल्द्वानी डिविजन स्थानांतरित कर दिया गया है।
विश्व बैंक निर्माण खंड हल्द्वानी के ईई प्रवीण गुरुरानी का कहना है कि जल्द ही इस परियोजना को हस्तांतरित कर लिया जाएगा। इधर, विधायक कैलाश गहतोड़ी ने इस मामले में पहली मार्च से शुरू हो रहे विधानसभा के बजट सत्र में अनुपूरक प्रश्न लगाया है जिसमें पूर्णागिरि धाम की सुरक्षा के लिए उठाए गए अब तक के कदम और निर्माण की स्थिति की जानकारी मांगी गई है।
स्वतंत्र परामर्शदाता एजेंसी के डीपीआर के प्रारूप में संलग्न नहीं नक्शा
चंपावत। पूर्णागिरि मंदिर शिवालिक चट्टानयुक्त क्षेत्र में स्लेटी बलुआ पत्थरयुक्त चट्टानों पर स्थित है। शिखर पर्वत की संवेदनशीलता और भौगोलिक दुरुहता के चलते पहले बनी डीपीआर और डिजाइन के अनुरूप काम नहीं हो सका। सुरक्षा, निर्माण की जटिलता के चलते डिजाइन बदलने का काम पुणे की एक स्वतंत्र परामर्शदाता एजेंसी के आशीष घुड़पड़े को दिया गया।
मंदिर के शिखर से करीब 30 मीटर नीचे तक दरार भरने का शुरुआती प्रस्ताव है। ईई प्रवीण गुरुरानी ने बताया कि डीपीआर का प्रारूप आ गया है, लेकिन नक्शे नहीं लगे होने सहित कई कमियों के चलते परामर्शदाता से जरूरी पूछताछ की जाएगी। इसके बाद आगे की कार्यवाही होगी।
तीन बार निविदा निकालने पर भी शुरू नहीं हो सका काम
चंपावत। पूर्णागिरि के मुख्य मंदिर की पहाड़ी में 2008 से कई जगह करीब पांच इंच चौड़ी दरार हैं। एनएचपीसी, सीडब्ल्यूसी, वाप्कोस कंपनी ने शुरुआती डीपीआर तैयार की थी। 2015 में शासन ने उत्तराखंड आपदा राहत परियोजना से परामर्शदाता एजेंसी के चयन के साथ सर्वे का काम कराया।
भूगर्भीय रिपोर्ट, परामर्शदाता एजेंसी ने 5500 फीट की ऊंचाई वाले इस धाम की दरारों को भरने के साथ मुख्य मंदिर से 700 मीटर तक पैदल मार्ग की दो फीट की चौड़ाई को बढ़ाकर आठ फीट तक करने का सुझाव दिया था। लेकिन तीन बार निविदा निकाले जाने के बावजूद काम शुरू नहीं हो सका।
एई श्याम शुभम ने बताया कि राष्ट्रीय निविदा के बावजूद जोखिम के चलते 9.97 करोड़ रुपये के इस काम में कंपनियों ने कम दिलचस्पी ली। जो अकेले निविदादाता इसमें आए भी, उन्होंने 108 प्रतिशत ज्यादा में निविदा डाली थी। जिसे खारिज कर दिया गया था।