कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद के साहित्य और वैचारिकी से लोगों को परिचित कराने के लिए वाराणसी के हेरिटेज विलेज लमही में करोड़ों की लागत से बनकर तैयार स्मारक शोपीस बनकर रह गया है। भवन का लोकार्पण तो हो गया लेकिन यहां न तो शोध शुरू हो पाया न अध्ययन। प्रेमचंद स्मारक शोध एवं अध्ययन केंद्र का ताला तक नहीं खुलता।
आठ अक्तूबर को कथा सम्राट की पुण्यतिथि पर आगरा की ‘रंगलीला’ संस्था की ओर से प्रेमचंद की कहानियों का पाठ होगा। लमही फिर साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बनेगा लेकिन अध्ययन केंद्र पर जमा धूल की परतें नहीं हट सकेंगी।
केंद्र के कोआर्डिनेटर प्रो. कुमार पंकज का कहना है कि केंद्र तभी खुलेगा तब सृजित पदों पर कर्मचारियों की नियुक्ति होगी। इसकी फाइल यूजीसी को भेजी गई है। लमही में मुंशी प्रेमचंद स्मारक शोध एवं अध्ययन केंद्र के लिए वर्ष 2005-06 में तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार ने पहल की थी।
लंबे प्रयासों के बाद वर्ष भर पहले भवन बनकर तैयार हो गया। उस समय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री रहे डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय ने केंद्र का लोकार्पण भी कर दिया लेकिन इसके संचालन के लिए अधिकारियों, कर्मचारियों की तैनाती की सुध नहीं ली गई। लिहाजा केंद्र अभी तक खुल नहीं सका है।
जिला संस्कृति विभाग की देखरेख में स्थापित इस केंद्र का संचालन बीएचयू के जिम्मे है। इसके समन्वयक कला संकाय के डीन प्रो. कुमार पंकज बताते हैं कि दो रिसर्च ऑफीसर, दो सेक्शन ऑफीसर, एक असिस्टेंट लाइब्रेरियन और परिचारकों समेत सात पद सृजित हैं।
यूजीसी में चेयरमैन का पद रिक्त होने के चलते अभी स्वीकृति नहीं मिल सकी है। सृजित पदों पर तैनाती होने के साथ ही केंद्र का संचालन आरंभ कर दिया जाएगा।
हिंदी साहित्य के संरक्षण-संवर्धन की देश की सबसे बड़ी संस्था नागरी प्रचारिणी सभा ने मुंशी प्रेमचंद की याद में लमही में स्मारक का निर्माण कराया था। 1950 के दशक में लमही गांव में प्रचारिणी ने इसके लिए 344.79 वर्गमीटर जमीन खरीदी थी।
वहां स्मारक के साथ मुंशी प्रेमचंद की प्रतिमा का लोकार्पण 1959 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने किया था। बाद में 12 जुलाई 2006 को प्रचारिणी ने स्मारक को प्रदेश सरकार को दान दे दिया।
प्रचारिणी के सहायक पुस्तकालय मंत्री सभाजीत शुक्ल बताते हैं कि वहां पर एक कर्मी की तैनाती भी की गई थी। अस्पताल भी मुंशी प्रेमचंद के नाम से चलता था, लेकिन अब वहां न तो अस्पताल है और न ही प्रचारिणी की स्मृतियां। क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र प्रमुख डॉ. रत्नेश वर्मा का कहना है कि प्रचारिणी ने स्मारक दान कर दिया है। दान देने वाले का नाम नहीं रह जाता।
मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि पर आठ अक्तूबर को लमही गांव में इस बार कथावाचन होगा। आगरा की रंगलीला संस्था प्रेमचंद की तीन कहानियों ‘ईदगाह’, ‘पूस की रात’ और ‘ठाकुर का कुआं’ का वाचन करेगी।
यह प्रस्तुति सुबह-ए-बनारस और बीएचयू के भोजपुरी अध्ययन केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में होगी। इसके अलावा शहर के कई अन्य संस्थानों में भी पुण्यतिथि पर कई कार्यक्रम आयोजित किए गए।
कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद के साहित्य और वैचारिकी से लोगों को परिचित कराने के लिए वाराणसी के हेरिटेज विलेज लमही में करोड़ों की लागत से बनकर तैयार स्मारक शोपीस बनकर रह गया है। भवन का लोकार्पण तो हो गया लेकिन यहां न तो शोध शुरू हो पाया न अध्ययन। प्रेमचंद स्मारक शोध एवं अध्ययन केंद्र का ताला तक नहीं खुलता।
आठ अक्तूबर को कथा सम्राट की पुण्यतिथि पर आगरा की ‘रंगलीला’ संस्था की ओर से प्रेमचंद की कहानियों का पाठ होगा। लमही फिर साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बनेगा लेकिन अध्ययन केंद्र पर जमा धूल की परतें नहीं हट सकेंगी।
केंद्र के कोआर्डिनेटर प्रो. कुमार पंकज का कहना है कि केंद्र तभी खुलेगा तब सृजित पदों पर कर्मचारियों की नियुक्ति होगी। इसकी फाइल यूजीसी को भेजी गई है। लमही में मुंशी प्रेमचंद स्मारक शोध एवं अध्ययन केंद्र के लिए वर्ष 2005-06 में तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार ने पहल की थी।
लंबे प्रयासों के बाद वर्ष भर पहले भवन बनकर तैयार हो गया। उस समय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री रहे डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय ने केंद्र का लोकार्पण भी कर दिया लेकिन इसके संचालन के लिए अधिकारियों, कर्मचारियों की तैनाती की सुध नहीं ली गई। लिहाजा केंद्र अभी तक खुल नहीं सका है।
जिला संस्कृति विभाग की देखरेख में स्थापित इस केंद्र का संचालन बीएचयू के जिम्मे है। इसके समन्वयक कला संकाय के डीन प्रो. कुमार पंकज बताते हैं कि दो रिसर्च ऑफीसर, दो सेक्शन ऑफीसर, एक असिस्टेंट लाइब्रेरियन और परिचारकों समेत सात पद सृजित हैं।
यूजीसी में चेयरमैन का पद रिक्त होने के चलते अभी स्वीकृति नहीं मिल सकी है। सृजित पदों पर तैनाती होने के साथ ही केंद्र का संचालन आरंभ कर दिया जाएगा।