वाराणसी। दिल्ली में रणनीतिक बैठक के दो दिन बाद गंगा मुक्ति महासंग्राम की कोर कमेटी के सलाहकार मैगसायसाय पुरस्कार विजेता जल पुरुष राजेंद्र सिंह गुरुवार को तपस्वियों की हालत देखने कबीरचौरा अस्पताल पहुंचे। तपस्वियों से बारी-बारी से मिलकर उनको ढांढस बंधाया। यहां उन्होंने अविरलता-निर्मलता का फार्मूला भी सुझाया और कहा कि परियोजनाओं के उत्सर्जित जल को दोबारा उन्हीं बांधों के जरिए सिल्ट बहाने के उपयोग में लाया जाए तो गंगा को पर्यावरणीय प्रवाह मिल जाएगा। इसके पहले उन्होंने विद्यामठ में तपस्या की कमान संभालने वाले अघोरी ब्रह्मरंध्र महाराज से भी मुलाकात की।
पहली गंगा पंचायत में हिस्सा लेने के लिए गहमर जाने से पहले अमर उजाला से बातचीत में जल पुरुष ने अहम मुद्दों पर चर्चा की। उनकी मानें तो पिछले चलीस सालों में गंगा पर जो संकट आया है, उसी का परिणाम है मुक्ति संग्राम। इसका समाधान गंगा की सेहत सुधारने से ही संभव होगा। इसे क्रियान्वित करने के लिए राज, समाज और संतों का एक सर्वसम्मत आधार पत्र तैयार किया जाना चाहिए। गंगा की अविरलता के सवाल पर उनका कहना था कि अभी तक जितने बांध बन गए हैं उनसे बहुत फायदा नहीं मिल रहा है। उनका दावा है कि बांधों की बिजली बनाने की क्षमता 20 फीसदी से अधिक नहीं रही है। इसलिए पहले उन बांधों की ऊर्जा निर्माण क्षमता की समीक्षा की जाए। परियोजनाओं के उत्सर्जित जल को दोबारा बांधों के जरिए ही सिल्ट बहाने के उपयोग में लाया जाए। यह व्यवस्था कर दी जाए तो पुराने बांधों से पर्यावरणीय प्रवाह गंगा को मिल जाएगा। कहा कि केंद्र सरकार को नए प्रस्तावित 39 बांधों को रद करने के साथ ही बन रहे आठ बांधों पर काम तत्काल रोक देना चाहिए।
निर्मलता के सुझाव
जल पुरुष राजेंद्र सिंह के मुताबिक निर्मलता के लिए कोई भी नगर निगम, पंचायत गंगा में अवजल प्रवाहित न करने पाए। उद्योगों का कचरा भी गंगा में न जाने पाए। ऐसा कानून बनाया जाए जो गंगा को गंदा करने वाले व्यक्ति, संस्था को सख्त सजा दे। गंगा में सिर्फ जल प्रवाहित हो इसके लिए गंदे नाले के पानी को खेती-बागवानी के काम में लाने के लिए अलग से प्लांट लगाए जाने चाहिए।