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यह व्यवस्था अहले हदीस मसलक के मानने वालों की ओर से महिलाओं को समाज में बराबरी का हक दिलाने के क्रम में की गई थी।
यह दीगर बात है कि इस्लाम धर्म के कई मसलकों और उलमाओं के अनुसार महिलाओं की जमात पुरुषों की जमात के साथ नमाज अदा करने पर मनाही है। क्योंकि इस्लाम में करना मना किया गया है। इसके बावजूद अहले हदीस मसलक के मौलाना कमालुद्दीन सनादिली ने गुन्नौर की छोटी ईदगाह पर ईदुल जुहा के मौके पर महिलाओं के लिए अलग से टेंट लगवाया। इसमें चारों ओर पर्दे लगाए गए थे। इसमें करीब तीन सौ महिलाओं ने सामूहिक रूप से ईदुल जुहा की नमाज अदा की। वहीं इसी ईदगाह पर बड़ी संख्या में पुरुष नमाजियों ने भी ईदुल जुहा की नमाज पढ़ी।
हमेशा से ही घरों में ही नमाज पढ़ती आईं महिलाओं में सामूहिक रूप से जमात के रूप में घरों की चहारदीवारी से बाहर निकलकर नमाज अदा करने की खुशी देखने को मिली। रुखसाना बेगम का कहना है कि पहली बार ईदगाह में गए, कभी सोचा भी नहीं था कि ईदगाह पर जाकर कभी जमात के साथ नमाज पढ़ने का मौका मिलेगा। इसलिए काफी खुशी हो रही है।
तो वहीं गुड़िया ने बताया कि अब तक तो घरों की चहारदीवारी के अंदर ही नमाज अदा करते आए हैं। ईदगाह पर सामूहिक रूप से पहली बार ही नमाज अदा की। मन को काफी खुशी मिली है।
रुकैया और रेहाना बेगम ने बताया कि इस्लाम कभी नहीं कहता हैकि महिलाएं आगे न बढ़े। इसलिए ईदगाह पर नमाज पढ़ना महिला समाज के लिए अच्छी पहल है। मौलानाओं ने महिलाओं के हक को तरजीह दी, यह सराहनीय कदम है। जब महिलाएं पुरुष के साथ हज करने जा सकती है तो आखिर नमाज क्यों नहीं पढ़ सकती है।
महिलाओं को बराबरी का हक मिलना ही चाहिए, जब महिलाएं हज पर जा सकती है तो ईदगाह क्यों नहीं। इसलिए मैने आज ईदगाह पर अलग से चारों ओर से ढका हुआ टेंट लगाकर महिलाओं के लिए नमाज अदा करने की व्यवस्था कराई। इसमें करीब तीन सौ से अधिक महिलाओं ने सामूहिक रूप से नमाज अदा की।
-मौलाना कमालुद्दीन सनादिली
महिला और पुरुषों की जमात जब एक साथ आती है, तो कुछ विकार, दोष उत्पन्न होते हैं। इस कारण इस्लाम में पुरुषों की जमात के साथ महिलाओं की जमात को नमाज आदि पढ़ने से मना किया गया है। इसलिए जमात में पुरुषों के साथ महिलाओं की हाजिरी को जायज नहीं माना जा सकता।
-मौलाना मुहम्मद नाजिम अशरफी शहर इमाम चंदौसी.