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ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित करने का फॉर्मूला खोजा, गोरखपुर विश्वविद्यालय के डॉ. अंबरीश ने की खोज
Gorakhpur, Uttar Pradesh, India
Published by: Vikas Kumar
Updated Mon, 21 Jan 2019 12:19 AM IST
गोरखपुर विश्वविद्यालय भौतिक विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अंबरीश कुमार श्रीवास्तव
- फोटो : अमर उजाला
गोरखपुर विश्वविद्यालय भौतिक विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अंबरीश कुमार श्रीवास्तव ने एक ऐसे अणु को खोज निकाला है, जिसकी मदद से ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रित किया जा सकता है। हेक्सा-लीथियो-बेंजीन नामक यह अणु न सिर्फ स्थायी अणु कार्बन डाई ऑक्साइड का एकल इलेक्ट्रॉन रिडक्शन करने में सक्षम है बल्कि एक साथ कम से कम छह कार्बन डाई ऑक्साइड अणुओं को अधिशोषित भी कर सकता है। डॉ. अंबरीश का दावा है कि इस अणु का प्रयोगशाला में परीक्षण कर व्यापक स्तर पर काम हो तो पर्यावरण को प्रदूषण रहित बना सकते हैं।
बहराइच के नानपारा निवासी डॉ. अंबरीश के आणुविक सिमुलेशन पर आधारित इस शोध को यूएसए के प्रतिष्ठित इंटरनेशनल जर्नल ऑफ क्वांटम केमेस्ट्री ने हाल ही में प्रकाशित किया है। यह शोध पत्र पिछले वर्ष जनवरी में यूके के जर्नल ‘मॉलिक्यूलर फिजिक्स’ से प्रकाशित हुआ था। सुपर एटॉमिक क्लस्टर्स के क्षेत्र में डॉ. अंबरीश ने शोध वर्ष 2014 से लखनऊ विश्वविद्यालय में पीएचडी के दौरान शुरू किया। इसे गोरखपुर विश्वविद्यालय में अपने नेशनल पोस्ट डॉक्टरल शोध में भी जारी रखा।
पिछले माह यूजीसी ने स्टार्ट अप ग्रांट भी प्रदान किया था। उनका कहना है कि कार्बन डाई ऑक्साइड ऋणात्मक इलेक्ट्रॉन बंधुता के कारण इसका एकल इलेक्ट्रॉन रिडक्शन बहुत मुश्किल है। लेकिन डॉ. अंबरीश ने इस मुमकिन कर दिखाया है। कार्बन डाई ऑक्साइड ग्रीन हाउस गैसों का सबसे बड़ा घटक है, जिसका स्टोरेज न सिर्फ वैश्विक स्तर पर कार्बन संतुलन के लिए बल्कि स्वस्थ पर्यावरण के लिए भी अनिवार्य है। इस उपलब्धि पर कुलपति प्रो वीके सिंह, प्रो सुग्रीव नाथ तिवारी, प्रो नीरज मिश्र, प्रो शांतुन रस्तोगी, प्रो हरिशरण, प्रो अजय शुक्ल आदि ने शुभकामनाएं दी है।
क्या है फॉर्मूला
हेक्सा-लीथियो-बेंजीन की संरचना बेंजीन जैसी ही है लेकिन इसमें लीथियम परमाणु दो-दो कार्बन से जुड़े होते हैं। यह अणु वैसे तो कोई नया नहीं है लेकिन इसके बहुत सारे गुण-धर्म अब भी अज्ञात ही हैं। इनमें से एक सुपर एटॉमिक प्रवृत्ति का है। डॉ. अंबरीश के मुताबिक हेक्सा-लीथियो-बेंजीन की आयनन ऊर्जा एक लीथियम परमाणु एटम से भी कम होती है, जिसके फलस्वरूप उसका व्यवहार एक सुपर-एटम की तरह होता है जो कार्बन-डाई ऑक्साइड को इलेक्ट्रॉन स्थानांतरित करके उसको अधिशोषित कर लेता है। यही नहीं जैसे-जैसे कार्बन डाई-ऑक्साइड के अणुओं की संख्या बढ़ती है उसकी अधिशोषण ऊर्जा में भी वृद्धि होती जाती है।
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