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यह कैसा विकास जो किसानों की जमीन छीन ले, अपने ही गांव में उन्हें बंधक जैसा जीवन जीने को मजबूर करे, कार्रवाई के भय से घर और गांव। एक तरफ प्रदेश सरकार चार साल का कार्यकाल पूरा होने पर समाजवादी विकास दिवस मना रही है तो दूसरी ओर करछना पावर प्लांट से प्रभावित आठ गांवों के किसान चौतरफा मुसीबत झेल रहे हैं।
विकास के नाम पर अधिग्रहीत जमीन लोहिया आवास बनवाए जा रहे हैं, सड़कों का निर्माण कराया जा रहा है, सोलर लाइटें लगवाई जा रही हैं। दरअसल, यह विकास गांवों का नहीं बल्कि अफसरों का है, जो कमीशन के फेर में बड़े से बड़े घोटाले को अंजाम देने पर तुले हुए हैं। अफसरों को भी मालूम है कि जिस दिन पावर प्लांट का निर्माण शुरू हुआ, उस दिन अधिग्रहीत जमीन पर कराए गए तमाम विकास कार्यों का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। आवास और शौचालय ध्वस्त कर दिए जाएंगे, सोलर लाइटें अनुपयोगी हो जाएंगी और सड़क अधिग्रहीत भूमि के समतलीकरण की भेंट चढ़ जाएगी।
करछना के भगेसर देहली गांव में अधिग्रहीत जमीन पर सड़क का निर्माण अब भी जारी है। अधिग्रहीत भूमि पर लोहिया आवास कैसे बन गए, अफसरों के पास यह जांच करने की भी फुर्सत नहीं है। पावर प्लांट के लिए अधिग्रहीत भूमि को चहारदीवारी से घेरा जा रहा है। किसान इसका विरोध न करें, सिर्फ इस आशंका पर प्रभावित गांवों में किसानों को बंधक जैसा जीवन जीना पड़ रहा है। प्रभावित गांव कचरी की रहने वाली नीलम बताती है कि पावर प्लांट के लिए मिले मुआवजे से असंतोष किसानों ने पूर्व में जो आंदोलन किया उसमें उनके पति संतोष भी शामिल हुए। संतोष अब तक जेल में हैं। लीनम के पास अपने पीति की जमानत के लिए भी पैसे नहीं हैं।
गांव का विकास तो दूर, वहां रहने वाले किसान यह सोचकर परेशान हैं कि पावर प्लांट का निर्माण शुरू होने के बाद वे कहां सिर छिपाएंगे। सरकार ने अपने वादे के अनुरूप अब तक कोई आवास भी उपलब्ध नहीं कराया और चहारदीवारी के निर्माण के साथ किसानों को उनके घर से बेदखल करने की तैयारी भी चल रही है। कचरा गांव की रेशमा देवी का कहना है कि पिछले साल बारिश और ओलावृष्टि में फसल बर्बाद हो गई। इस बार भी कुदरत ने साथ नहीं दिया। खेती के लिए जो कर्ज लिया, अब उसे चुकाने की भी हिम्मत नहीं है। मुआवजा मिला नहीं। पशुओं को खिलाने के लिए भी कुछ नहीं बचा। होली का त्योहार भी तंगहाली में बीत जाएगा।
यह कैसा विकास जो किसानों की जमीन छीन ले, अपने ही गांव में उन्हें बंधक जैसा जीवन जीने को मजबूर करे, कार्रवाई के भय से घर और गांव। एक तरफ प्रदेश सरकार चार साल का कार्यकाल पूरा होने पर समाजवादी विकास दिवस मना रही है तो दूसरी ओर करछना पावर प्लांट से प्रभावित आठ गांवों के किसान चौतरफा मुसीबत झेल रहे हैं।
विकास के नाम पर अधिग्रहीत जमीन लोहिया आवास बनवाए जा रहे हैं, सड़कों का निर्माण कराया जा रहा है, सोलर लाइटें लगवाई जा रही हैं। दरअसल, यह विकास गांवों का नहीं बल्कि अफसरों का है, जो कमीशन के फेर में बड़े से बड़े घोटाले को अंजाम देने पर तुले हुए हैं। अफसरों को भी मालूम है कि जिस दिन पावर प्लांट का निर्माण शुरू हुआ, उस दिन अधिग्रहीत जमीन पर कराए गए तमाम विकास कार्यों का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। आवास और शौचालय ध्वस्त कर दिए जाएंगे, सोलर लाइटें अनुपयोगी हो जाएंगी और सड़क अधिग्रहीत भूमि के समतलीकरण की भेंट चढ़ जाएगी।
करछना के भगेसर देहली गांव में अधिग्रहीत जमीन पर सड़क का निर्माण अब भी जारी है। अधिग्रहीत भूमि पर लोहिया आवास कैसे बन गए, अफसरों के पास यह जांच करने की भी फुर्सत नहीं है। पावर प्लांट के लिए अधिग्रहीत भूमि को चहारदीवारी से घेरा जा रहा है। किसान इसका विरोध न करें, सिर्फ इस आशंका पर प्रभावित गांवों में किसानों को बंधक जैसा जीवन जीना पड़ रहा है। प्रभावित गांव कचरी की रहने वाली नीलम बताती है कि पावर प्लांट के लिए मिले मुआवजे से असंतोष किसानों ने पूर्व में जो आंदोलन किया उसमें उनके पति संतोष भी शामिल हुए। संतोष अब तक जेल में हैं। लीनम के पास अपने पीति की जमानत के लिए भी पैसे नहीं हैं।
गांव का विकास तो दूर, वहां रहने वाले किसान यह सोचकर परेशान हैं कि पावर प्लांट का निर्माण शुरू होने के बाद वे कहां सिर छिपाएंगे। सरकार ने अपने वादे के अनुरूप अब तक कोई आवास भी उपलब्ध नहीं कराया और चहारदीवारी के निर्माण के साथ किसानों को उनके घर से बेदखल करने की तैयारी भी चल रही है। कचरा गांव की रेशमा देवी का कहना है कि पिछले साल बारिश और ओलावृष्टि में फसल बर्बाद हो गई। इस बार भी कुदरत ने साथ नहीं दिया। खेती के लिए जो कर्ज लिया, अब उसे चुकाने की भी हिम्मत नहीं है। मुआवजा मिला नहीं। पशुओं को खिलाने के लिए भी कुछ नहीं बचा। होली का त्योहार भी तंगहाली में बीत जाएगा।