विधायक एवं प्रदेश कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष डॉ. रीता बहुगुणा जोशी के भाजपा में जाने की अटकलों से नेहरू की नगरी में कांग्रेसी बेचैन नजर आ रहे हैं। कांग्रेसियों को सिर्फ इतना मालूम है कि डॉ. रीता जोशी दिल्ली में हैं, लेकिन उनके दोनों फोन स्विच ऑफ हो जाने से समर्थकों में उहापोह की स्थिति है। कयासबाजी का दौर शुरू हो गया है। रीता जोशी किन कारणों से पार्टी छोड़ सकती है, भाजपा में जाने पर उन्हें क्या फायदा होगा और कांग्रेस को कितना नुकसान, कार्यकर्ताओं के बीच सोमवार को इन्हीं मुद्दों चर्चा होती रही।
डॉ. रीता जोशी के भाई शेखर बहुगुणा रविवार को ही दिल्ली से लौटे हैं। उनका कहना है कि दिल्ली में उन्हें ऐसी कोई सूचना या जानकारी नहीं मिली और न ही इलाहाबाद आने के बाद कोई सूचना आई। जहां तक डॉ. जोशी के दोनों फोन स्विच ऑफ होने की बात है तो उन्हें अस्थमा का अटैक पड़ा है। डॉक्टरों ने उन्हें बेड रेस्ट की सलाह दी है। इसलिए दोनों फोन बंद हैं। कांग्रेस की यूपी कोऑर्डिनेशन कमेटी के प्रभारी प्रमोद तिवारी ऐसी किसी सूचना से इनकार कर रहे हैं और बोले, ‘इससे आगे कुछ नहीं कहना चाहता हूं’। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य से पूछा गया कि क्या रीता जोशी भाजपा में शामिल होंगी तो गोलमोल जवाब देते हुए बोले कि फिलहाल अभी ऐसा कुछ नहीं है। रीता के करीबियों और बड़े नेताओं की ओर से इस मसले पर सीधा जवाब न मिलना इस बात का संकेत है कि अटकलों का दौर अभी थमने वाला नहीं। जब तक रीता जोशी खुद सामने आकर स्थिति स्पष्ट नहीं करती हैं, पार्टी में उथल-पुथल और समर्थकों की बेचैनी कम नहीं होगी।
रीता जोशी भले ही लखनऊ के कैंट से विधायक हों लेकिन इलाहाबाद में उनकी सक्रियता किसी भी मायने में कम नहीं है। इलाहाबाद से ही अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत करने वाली रीता जोशी पिता हेमवती नंदन बहुगुणा के निधन के बाद कांग्रेस छोड़कर भले ही सपा में चली गई थीं लेकिन कांग्रेस से ज्यादा दिनों तक दूर नहीं सकीं। कांग्रेस में वापसी के बाद हमेशा उन्हें अहम जिम्मेदारियां सौंपी गईं। प्रदेश अध्यक्ष भी रहीं और सोनिया गांधी की करीबी भी मानी जाती हैं। पार्टी में प्रखर वक्ता और ब्राह्मण चेहरे के रूप में उनकी पहचान है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि भाई विजय बहुगुणा के कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने के बाद आगामी विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों से दूर रखे जाना ही उनकी नाराजगी का कारण हो सकता है।
कांग्रेस में रीता जोशी और प्रमोद तिवारी गुट के बीच तकरार जगजाहिर है। यूपी विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी की ओर से वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपे जाने और उनकी सक्रियता बढ़ने के बाद रीता जोशी गुट को झटका लगा है और पार्टी में उनकी सक्रियता भी कुछ कम हुई है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि भले ही विवाद उभरकर सामने नहीं आया लेकिन उथलपुथल उसी वक्त शुरू हो गई थी, जब रीता जोशी के भाई विजय बहुगुणा कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए। हालांकि कुछ दिनों पहले ही इलाहाबाद में आयोजित राहुल गांधी के रोड शो में रीता जोशी भी शामिल हुईं थीं और पूरे आयोजन के दौरान वह मौजूद थीं।
विधायक एवं प्रदेश कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष डॉ. रीता बहुगुणा जोशी के भाजपा में जाने की अटकलों से नेहरू की नगरी में कांग्रेसी बेचैन नजर आ रहे हैं। कांग्रेसियों को सिर्फ इतना मालूम है कि डॉ. रीता जोशी दिल्ली में हैं, लेकिन उनके दोनों फोन स्विच ऑफ हो जाने से समर्थकों में उहापोह की स्थिति है। कयासबाजी का दौर शुरू हो गया है। रीता जोशी किन कारणों से पार्टी छोड़ सकती है, भाजपा में जाने पर उन्हें क्या फायदा होगा और कांग्रेस को कितना नुकसान, कार्यकर्ताओं के बीच सोमवार को इन्हीं मुद्दों चर्चा होती रही।
डॉ. रीता जोशी के भाई शेखर बहुगुणा रविवार को ही दिल्ली से लौटे हैं। उनका कहना है कि दिल्ली में उन्हें ऐसी कोई सूचना या जानकारी नहीं मिली और न ही इलाहाबाद आने के बाद कोई सूचना आई। जहां तक डॉ. जोशी के दोनों फोन स्विच ऑफ होने की बात है तो उन्हें अस्थमा का अटैक पड़ा है। डॉक्टरों ने उन्हें बेड रेस्ट की सलाह दी है। इसलिए दोनों फोन बंद हैं। कांग्रेस की यूपी कोऑर्डिनेशन कमेटी के प्रभारी प्रमोद तिवारी ऐसी किसी सूचना से इनकार कर रहे हैं और बोले, ‘इससे आगे कुछ नहीं कहना चाहता हूं’। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य से पूछा गया कि क्या रीता जोशी भाजपा में शामिल होंगी तो गोलमोल जवाब देते हुए बोले कि फिलहाल अभी ऐसा कुछ नहीं है। रीता के करीबियों और बड़े नेताओं की ओर से इस मसले पर सीधा जवाब न मिलना इस बात का संकेत है कि अटकलों का दौर अभी थमने वाला नहीं। जब तक रीता जोशी खुद सामने आकर स्थिति स्पष्ट नहीं करती हैं, पार्टी में उथल-पुथल और समर्थकों की बेचैनी कम नहीं होगी।
रीता जोशी भले ही लखनऊ के कैंट से विधायक हों लेकिन इलाहाबाद में उनकी सक्रियता किसी भी मायने में कम नहीं है। इलाहाबाद से ही अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत करने वाली रीता जोशी पिता हेमवती नंदन बहुगुणा के निधन के बाद कांग्रेस छोड़कर भले ही सपा में चली गई थीं लेकिन कांग्रेस से ज्यादा दिनों तक दूर नहीं सकीं। कांग्रेस में वापसी के बाद हमेशा उन्हें अहम जिम्मेदारियां सौंपी गईं। प्रदेश अध्यक्ष भी रहीं और सोनिया गांधी की करीबी भी मानी जाती हैं। पार्टी में प्रखर वक्ता और ब्राह्मण चेहरे के रूप में उनकी पहचान है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि भाई विजय बहुगुणा के कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने के बाद आगामी विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों से दूर रखे जाना ही उनकी नाराजगी का कारण हो सकता है।
कांग्रेस में रीता जोशी और प्रमोद तिवारी गुट के बीच तकरार जगजाहिर है। यूपी विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी की ओर से वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपे जाने और उनकी सक्रियता बढ़ने के बाद रीता जोशी गुट को झटका लगा है और पार्टी में उनकी सक्रियता भी कुछ कम हुई है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि भले ही विवाद उभरकर सामने नहीं आया लेकिन उथलपुथल उसी वक्त शुरू हो गई थी, जब रीता जोशी के भाई विजय बहुगुणा कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए। हालांकि कुछ दिनों पहले ही इलाहाबाद में आयोजित राहुल गांधी के रोड शो में रीता जोशी भी शामिल हुईं थीं और पूरे आयोजन के दौरान वह मौजूद थीं।