इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में जातीय सम्मेलनों पर रोक लगाने का आदेश दिया है। प्रदेश के राजनीतिक दलों के लिए ये तगड़ा झटका माना जा रहा है।
उच्च न्यायालय ने इस संबंध में केंद्र सरकार, राज्य सरकार, चुनाव आयोग और उत्तर प्रदेश के चार प्रमुख राजनीतिक दलों, सपा, बसपा भाजपा और कांग्रेस को भी नोटिस जारी किया है।
उच्च न्यायलय की लखनऊ बेंच ने ये फैसला एक जनहित याचिका की सुनवाई में दिया है। याचिका स्थानीय वकील मोती लाल यादव ने दाखिल की है।
जस्टिस उमानाथ सिंह तथा जस्टिस महेंद्र दयाल की खंडपीठ ने ऐसे आयोजनों को संविधान की व्यवस्था के विपरीत बताया है और कहा भविष्य में ऐसी रैलियां और बैठकें आयोजित न की जाएं।
गौरतलब है कि लोकसभा चुनावों मद्देनजर सपा और बसपा प्रदेश भर में जातीय सम्मेलन आयोजित कर रही हैं।
क्या कहा गया है याचिका में
उच्च न्यायालय में दाखिल याचिका में कहा गया है कि प्रदेश में जातीय सम्मेलनों की बाढ़ आ गई है। राजनीतिक दल ब्राह्मण, ठाकुर और वैश्यों के नाम पर राजनीतिक सम्मेलन आयोजित कर रहे हैं।
याचिका में कहा गया है कि ये सम्मेलन समाज की एकता और सद्भाव को नष्ट कर रहे हैं। साथ ही ये संविधान के प्रावधानों के अनुरूप भी नहीं हैं।
याचिका में बहुजन समाज पार्टी की सात जुलाई को लखनऊ में ब्राह्मण महासम्मेलन का उल्लेख किया गया है। याची ने आरोप लगाया है कि यह सम्मेलन लोकसभा में वोट पाने के लिए आयोजित किया गया जो संवैधानिक व्यवस्था के प्रतिकूल है।
याची ने अदालत में यह भी कहा कि संविधान के अनुसार सभी जातियां बराबर हैं और किसी पार्टी विशेष द्वारा उनको अलग रखना कानून व मूल अधिकारों का हनन है।
प्रदेश भर में हो रहे जातीय सम्मेलन
2014 लोकसभा चुनावों की तैयारी में जुटे सपा और बसपा जैसे राजनीतिक दल यूपी के सभी हिस्सों में जातीय सम्मेलन कर रहे हैं।
बसपा ने ब्राह्मणों को लुभाने के लिए प्रदेश के 40 जिलों में ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित करने की योजना बनाई है। इनमें कई सम्मेलन हो भी चुके हैं।
हाल ही में पार्टी ने लखनऊ में ऐसा ही एक सम्मेलन किया था, जिसमें पार्टी सुप्रीमो मायावती भी शामिल हुई थीं। बसपा मुसलमान को रिझाने के लिए मुस्लिम भाईचारा सम्मेलन भी आयोजित कर रही है।
बसपा की होड़ में ही सपा भी प्रदेश में ब्राह्मणों को लुभाने के ब्राह्मण सम्मेलन कर रही है। सपा भी लखनऊ में ब्राह्मण और मुस्लिम सम्मेलन कर चुकी है।
ये दल ब्राह्मणों और मुसलमानों के सम्मेलनों की अलावा वैश्यों और पिछड़ी जातियों के सम्मेलन भी कर रहे हैं।
क्या रही राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
उच्च न्यायालय ने इस मामले में केंद्र सरकार, राज्य सरकार, चुनाव आयोग सपा, बसपा भाजपा और कांग्रेस को नोटिस भी जारी किया है।
कांग्रेस ने आदेश की प्रतिक्रिया में कहा है कि कोर्ट का फैसला सराहनीय है और इससे देश मजबूत होगा। पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने कहा है कि सपा और बसपा जैसे पार्टियों को इस पर विचार करना चाहिए।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मी कांत वाजपेयी ने कहा है कि भाजपा कभी भी जातीय राजनीति की समर्थक नहीं रही है। कोर्ट के फैसले से प्रदेश मे जातीयता का जहर खत्म होगा और आपसी सद्भाव बढ़ेगा।
वहीं, सपा नेता नरेश अग्रवाल ने कहा कि जातीय सम्मेलनों का आयोजन बसपा ने शुरू किया है। उन्होंने कहा है कि जातीय सम्मेलनों का हम भी विरोध करते हैं, इससे समाजिक मनमुटाव पैदा हो रहा है।
जातिवाद की जड़ें पुरानी
- देश में संसदीय व्यवस्था को अमली जामा पहनाने के लिए 1919 के मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार के साथ ही भारत की संसदीय परिपाटी में जातीय तत्व के समावेश का रास्ता खोल दिया गया था।
- भारत की संसदीय व्यवस्था तय करने के लिए ब्रिटेन में लंबी बहस के दौरान स्मिथ नाम के एक अधिकारी ने हाउस ऑफ कॉमन्स के सभी सदस्यों को अपनी एक किताब वितरित कराकर इस खतरे के संकेत दे दिए थे। भारत में 30 साल काम चुके स्मिथ ने उस किताब में लिखा था, ‘आप लोग (अंग्रेज) भारत के लिए जिस तरह के संवैधानिक सुधार और संसदीय परिपाटी का खाका खींच रहे हैं। उससे भारतीय समाज में जाति का प्रभाव बढ़ेगा। धीरे-धीरे जाति का राजनीतिक इस्तेमाल शुरू हो जाएगा। जो बहुत खतरनाक होगा।’ पर, अंग्रेज नहीं माने। आज वही दिख रहा है।
निर्णय स्वागतयोग्य है। समाजवादी पार्टी तो शुरू से ही बिना किसी भेदभाव के सभी को समान अवसर देने की पक्षधर है। समाजवादी विचारधारा जातिवाद की विरोधी है। इस निर्णय से जाति व संप्रदाय की राजनीति करने वालों को सबक मिलेगा।
--मुलायम सिंह यादव, राष्ट्रीय अध्यक्ष सपा
निर्णय जाति की राजनीति करने वाले दलों के मुंह पर तमाचा है । कांग्रेस, सपा, बसपा जैसे दल समाज को जाति के आधार पर बांटना चाहते हैं। उच्च न्यायालय से अनुरोध है कि वह स्वयं संज्ञान लेकर जातीय व धार्मिक आधार पर होने वाली जनगणना रोके व सम्मेलन करने वालों को दंडित करे।
--डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी, प्रदेश अध्यक्ष भाजपा
हम फैसले का स्वागत करते हैं। समाजवादी पार्टी ने कभी जाति, धर्म की राजनीति नहीं की। सपा धर्मनिरपेक्षता को मानती है और यहां सभी धर्म और जाति के लोगों को बराबर सम्मान मिलता है।
--शिवपाल यादव, सपा नेता
‘निजी तौर पर मेरा मानना है कि जात-पात की राजनीति की नींव कांग्रेस ने रखी, बाद में क्षेत्रीय पार्टियों ने अपनी सीमाएं लांघ दी। लोकतंत्र में यह कैंसर की तरह है, जिसे खत्म करना बहुत जरूरी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया है।’
--विजय बहादुर, बसपा नेता
‘राजनीतिक पार्टियों ने सामाजिक परिवर्तन की बजाय सिर्फ सत्ता हथियाने के लिए जातिगत राजनीति को हथियार बनाया। सपा-बसपा हमेशा ही जात-पात की राजनीति करते आए हैं। कांग्रेस ने कभी भी इस तरह की राजनीति में विश्वास नहीं रखा।’
--पीएल पूनिया, कांग्रेसी सांसद