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Ajmer Dargah: पदाधिकारियों का दावा-अजमेर दरगाह में नहीं है स्वस्तिक डिजाइन वाली जाली, चार पॉइंट में समझिए सच

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, अजमेर Published by: उदित दीक्षित Updated Sat, 28 May 2022 10:14 PM IST
All You Need To Know About Ajmer dargah controversy Dhai Din Ka Jhopra 
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राजस्थान के अजमेर की दरगाह शरीफ के हिंदू मंदिर होने के बाद से विवाद छिड़ गया है। दरगाह के मुस्लिम पदाधिकारियों ने इस दावे को निराधर बताया है। उन्होंने कहा, दरगाह का इतिहास 850 साल पुराना है, यहां ऐसा कोई धार्मिक स्थान नहीं था। देश में अराजकता फैलाने के लिए इस तरह के दावे किए जा रहे हैं।
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जानिए... किसने क्या दावा किया?
दिल्ली के रहने वाले राजवर्धन सिंह परमार महाराणा प्रताप सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। परमार ने सीएम अशोक गहलोत को पत्र लिखकर अजमेर स्थित ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह को पूर्व में हिंदू मंदिर होने का दावा कर पुरातत्व विभाग से सर्वे कराने की मांग की। सीएम को लिखे पत्र में परमार ने दरगाह के अंदर कई जगहों पर हिंदू धार्मिक चिन्ह स्वस्तिक के निशान होने का दावा भी किया। इसके बाद से यह विवाद शुरू हो गया है। 
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परमार ने जिस स्वस्तिक निशान का दावा किया, वह कहां है?  
महाराणा प्रताप सेना के अध्यक्ष ने एक जाली की तस्वीरें शेयर की, जिसमें स्वस्तिक का डिजाइन बना हुआ है। उन्होंने कहा, यह जाली दरगाह की दीवारों पर लगी हुई है। इसी आधार पर दरगाह के हिंदू मंदिर होने का दावा किया गया था। बताया जा रहा है कि इस तरह की जाली सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में किसी भी हिस्से में नहीं है। 
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कहां है स्वास्तिक डिजाइन वाली जाली?
अजमेर दरगाह से थोड़ी दूरी पर अढ़ाई दिन का झोपड़ा है। यहां परमार द्वारा जारी की गई तस्वीरें जैसी जालियां लगी हुई हैं। उन पर स्वस्तिक की डिजाइन भी बनी हुई हैं। इस आधार पर परमार का दावा गलत साबित होता है।
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जानिए...क्या है अढाई दिन के झोपड़े का इतिहास?
1198 में मोहम्मद गोरी के आदेश पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने एक हिंदू इमारत को तोड़कर अढ़ाई दिन का झोपड़ा बनवाया था। यहां इससे पहले एक संस्कृत महाविद्यालय और मंदिर थे। जिन्हें तोड़कर मस्जिद में बदल दिया गया था। झोपड़े के मुख्य द्वार पर संगमरमर का बना एक शिलालेख भी है, जिस पर संस्कृत में उस विद्यालय का जिक्र किया गया है। यहां मंदिरों के 70 स्तंभ आज भी मौजूद है। हैं। हर स्तंभ पर खूबसूरत नक्काशी की गई है और उनकी ऊंचाई करीब 25 फीट है। बताया जाता है कि 90 के दशक में यहां कई प्राचीन मूर्तियां बिखरी पड़ी थीं, जिन्हें बाद में संरक्षित किया गया। झोपड़े में बनी नई दीवारों पर कुरान की आयतें लिखी गईं हैं, जिससे पता चलता है कि अब यह मस्जिद है। कहा जाता है कि, महाविद्यालय को मस्जिद बनने में ढ़ाई दिन लगे थे, इसी से इसका नाम अढ़ाई दिन का झोपड़ा पड़ गया। 
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