अपने आखिरी बजट भाषण में उत्तराखंड के वित्त प्रकाश पंत ने जो चार पंक्तियां कही वे अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई हैं। उन्होंने कह था- ‘सूर्य हूं मैं हर एक पल जला हूं सदा/ चांद बन रात में भी चला हूं सदा/ हार के टूटने का मैं आदी नहीं/ मैं कमल कीच में भी खिला हूं सदा।’
ये चार पंक्तियां दर्ज हैं, प्रदेश सरकार के उस बजट अभिभाषण के आखिरी पन्ने में, जिसे प्रकाश पंत, वित्त मंत्री के तौर पर नहीं पढ़ पाए। अब ये सिर्फ इतिहास ही बन कर रह गई हैं। सदन में जब वे आधे भाषण तक पहुंचे थे तो उनके पांव लड़खड़ा गए। वे अचेत हुए तो उपस्थित सदन स्तब्ध था। जैसे-तैसे खुद संभालते वे फिर भाषण पढ़ने लगे, लेकिन काया निढाल होने लगी। उन्हें भाषण बीच में छोड़ना पड़ा।
तब किसी ने भी नहीं सोचा था कि उनके फेफड़ों में एक ऐसा रोग दाखिल हो चुका है, जो उनके प्राणों को हर लेगा। लेकिन सच्चाई यही है कि सज्जन, मृदभाषी और कवि हृदय प्रकाश पंत अब हमारे बीच नहीं रहे। बजट भाषण में जो चार पंक्तियां उन्होंने लिखी, वे उनके व्यक्तित्व का आइना बन गई। जिन्हें उनका सानिध्य प्राप्त हुआ है, वे उनके राजनीतिक संघर्ष को जानते हैं। एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्में पंत फार्मासिस्ट से राजनीति में आए और अपनी काबलियत के दम पर संसदीय, विधायी और वित्त सरीखे मंत्रालय के मंत्री बनें।
ये उनकी राजनीतिक शख्सियत ही थी कि बीसी खंडूड़ी, भगत सिंह कोश्यारी और डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक सरीखे दिग्गज राजनेताओं के मध्य उन्हें भी मुख्यमंत्री पद के प्रमुख और गंभीर दावेदार के तौर पर देखा गया। सत्ता हो या संगठन दोनों ही जगह पंत ने अपनी काबलियत को साबित किया।
सदन के भीतर जब-जब उनकी सरकार और मंत्रियों पर विपक्ष हमलावर हुआ तो वे ढाल बनकर सामने खड़े हो गए। मुस्कराहट उनका सबसे प्रमुख हथियार था, जिसके आगे विपक्षी अकसर हथियार डाल देते थे।