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महाकुंभ 2021: हरिद्वार स्नान करने पहुंचे इन अजब-गजब बाबाओं ने बढ़ाई कुंभ की शान, देखते ही रह गए लोग  

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, हरिद्वार Published by: अलका त्यागी Updated Thu, 29 Apr 2021 05:31 PM IST
Haridwar Mahakumbh 2021: Different Type of Saints Comes in Kumbh Mela Know Interesting Facts
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हरिद्वार में एक महीने तक चले कुंभ मेले का अनौपचारिक समापन हो गया है। अब कुंभ में स्नान करने आए संत और नागा बाबा भी अपने गंत्व्यों को जा चुके हैं। लेकिन हम आपको बता रहे हैं कुछ ऐसे अजब-गजब संतों और बाबाओं के बारे में जिनकी चर्चा कुंभ में खूब रही। कुंभ में आए कुछ नागा साधुओं ने अपने अजब-गजब श्रृंगार और पहनावे के चलते लोगों का ध्यान अपनी ओर खूब आकर्षित किया। शोभायात्रा हो, पेशवाई हो या शाही स्नान, जब-जब ये बाबा सड़कों पर उतरे तो देखने वाले हैरान रह गए। 

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बता दें कि अधिकारिक रूप से तो महाकुंभ 30 अप्रैल शुक्रवार को संपन्न होगा, लेकिन अखाड़ों के महाकुंभ का समापन अंतिम शाही स्नान के साथ हो चुका है। हरिद्वार में मकर संक्रांति स्नान पर्व से लेकर महाकुंभ मेले के अंतिम शाही स्नान चैत्र पूर्णिमा तक साढ़े 91 लाख श्रद्धालुओं ने गंगा में डुबकी लगाकर अपने तन को निर्मल किया।  

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सभी संन्यासी और बैरागी अखाड़ों के संतों ने कोविड नियमों का पालन किया। पूजा-अर्चना और शाही स्नान के दौरान भी शारीरिक दूरी का पालन किया गया। संतों ने स्नान में अधिक समय भी नहीं लगाया। इससे अखाड़ों के स्नान की व्यवस्थाएं सुचारु रूप से चलती रही। वहीं, शाही स्नान संपन्न होते ही जिला प्रशासन ने हरिद्वार में तीन मई तक के लिए कोविड कर्फ्यू लागू कर दिया है। 
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कुंभ में पहुंचे बेन बाबा ने स्विट्जरलैंड से हरिद्वार तक का सफर अपने कदमों से नाप दिया। भारतीय संस्कृति, सनातन धर्म और योग से प्रभावित बेन बाबा पांच साल में करीब साढ़े छह हजार किलोमीटर पैदल सफर कर हरिद्वार कुंभ स्नान करने पहुंचे थे। बेन बाबा स्विट्जरलैंड की लग्जरी जिंदगी छोड़कर अध्यात्म और योग में रम गए। उन्होंने सनातन धर्म और योग का प्रचार-प्रसार को जिंदगी का मकसद और पैदल विश्व यात्रा को अपनी साधना बना लिया है। 33 वर्षीय बेन बाबा ने बताया कि स्विट्जरलैंड में ही उन्होंने हिंदी सीखी। कहा कि यूरोप में पैसा है, लग्जरी जिंदगी है, लेकिन खुशी नहीं है। खुशी तो योग और ध्यान से मिलती है। 
 
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इन्हीं में से एक हैं नागा बाबा विक्रम गिरी। जूना अखाड़ा के महंत नागा बाबा विक्रम गिरि की दाढ़ी श्रद्धालुओं के लिए कौतुक बनी रही। नागा बाबा विक्रम गिरी ने 27 साल से दाड़ी नहीं बनाई है। दाड़ी की लंबाई पौने छह फुट तक पहुंच गई। मुरादाबाद के कुंदरकी ब्लाक के रहने वाले नाबा बाबा विक्रम गिरि महाकुंभ में जूना अखाड़ा की छावनी स्थित कल्पवास में रहे। उन्होंने 1994 में संन्यास और 2004 में जूना अखाड़ा से नागा दीक्षा ली। उन्होंने 1994 से अपनी दाड़ी नहीं काटी। दाड़ी को सिर की जटाओं की तरह सहेज कर रखते हैं। 
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वहीं, तुलसी चौक के किनारे गंगाघाट पर बैठकर तपस्या करने वाले अजय गिरि उर्फ रुद्राक्ष बाबा ने 11 हजार रुद्राक्ष धारण किए हुए थे। जिनका वजन 20 किलो के करीब था। गंगा घाट पर जप व तप में ध्यानमग्न नागा बाबा दिंगबर राघवगिरी के अनुसार, उन्होंने अपने सिर पर साढ़े तीन किलो रूद्राक्ष धारण किए थे। रुद्राक्ष को शिवलिंग का रूप दिया गया है।
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महाकुंभ में आए संत दिगंबर दिवाकर भारती साढ़े चार साल से उर्द बाहु (बाएं हाथ ) को ऊपर कर तपस्या में लीन थे। उनका कहना था यह तपस्या आजीवन जारी रहेगी। उन्होंने हिमालय में अलग-अलग स्थानों पर तपस्या की है। उत्तराखंड के नैनीताल और पश्चिम बंगाल के आसनसोल में भी उन्होंने तपस्या की है। 
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