चुनाव कोई भी हो, कोई न कोई छोटी-सी बात नतीजा पलट सकती है। देश में इस वक्त बिहार चुनाव का दौर चल रहा है। ऐसे में हम आपको रूबरू कराते हैं बिहार चुनाव से जुड़े उस किस्से से, जब पहली बार प्याज चुनावी मुद्दा बना। इसके अलावा हाथी की सवारी और माफी ने नतीजा ही पलटकर रख दिया।
1975 का आपातकाल कांग्रेस पर पड़ा था भारी
दरअसल, यह किस्सा है साल 1980 का। बिहार उस वक्त भी चुनावी दौर से गुजर रहा था और उस वक्त कांग्रेस पार्टी विपक्ष में थी। हुआ यूं था कि 1975 में आपातकाल लगाना तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भारी पड़ गया था। जेपी आंदोलन इंदिरा सरकार पर भारी पड़ चुका था। और साल 1977 आया तो केंद्र के साथ-साथ बिहार से भी कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। उस वक्त जनता पार्टी ने केंद्र और बिहार दोनों जगह सरकार बनाई थी, लेकिन साल 1980 आते-आते हालात बदल चुके थे।
पहली बार प्याज बना चुनावी मुद्दा
1980 में प्याज की कीमतें बेकाबू थीं, जिसके चलते गरीबों की थाली का हिस्सा माना जाने वाला प्याज भारतीय राजनीति में पहली बार चुनावी मुद्दा बन गया। कांग्रेस ने अच्छी तरह भुनाया और केंद्र की तत्कालीन चौधरी चरण सिंह सरकार पर प्याज की कीमतें नियंत्रित करने में असफल रहने का आरोप लगा दिया। केंद्र का यह मुद्दा बिहार की तत्कालीन कर्पूरी ठाकुर की सरकार के खिलाफ भी काम कर गया और लोगों ने एक बार फिर कांग्रेस का ‘हाथ’ थाम लिया।
हाथी की सवारी कर सुर्खियों में आईं इंदिरा
हाथी की सवारी का यह किस्सा भी 1977 और 1980 के बिहार विधानसभा चुनावों से जुड़ा हुआ है। दरअसल, 1977 में विधानसभा चुनाव से 2-4 दिन पहले हरनौत विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत बेलछी गांव में कुर्मियों के एक गुट ने गरीबों के घरों पर हमला कर दिया। उन्होंने 11 खेत मजदूरों को उनके घरों से खींचकर निकाला और घसीटकर एक बंजर मैदान में ले गए। बताया जाता है कि दबंगों ने लकड़ियों और घास-फूस का एक ढेर लगाया, जिसमें आग लगा दी गई। जब तक सभी 11 मजदूर जलकर खाक नहीं हो गए, दबंग शांत नहीं हुए। मामले की जानकारी मिलते ही इंदिरा गांधी बेलछी गांव पहुंच गईं। उस वक्त रात हो चली थी, लेकिन इंदिरा के इरादे नहीं डिगे। हवाई जहाज से दिल्ली-पटना का सफर करने वाली इंदिरा बिहार शरीफ तक कार से गई थीं, लेकिन बेलछी में उन्हें सवारी के लिए हाथी मिला और इंदिरा हाथी पर सवार हो गईं। उनका रात में हाथी पर बैठकर बेलछी गांव पहुंचना देश और दुनिया भर की मीडिया की सुर्खियां बन गया। इस घटना ने इंदिरा गांधी को बिहार के दलितों के बीच लोकप्रिय कर दिया और इसका फायदा उन्हें 1980 के बिहार विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत की सरकार के रूप में मिला।
जब इंदिरा-संजय ने लोगों से मांगी माफी
आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार अपने नसबंदी कार्यक्रम के चलते भी निशाने पर थी। इस कार्यक्रम से भी कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा और पार्टी खासतौर पर मुस्लिम समुदाय की नाराजगी का शिकार हो गई। जब 1980 में बिहार विधानसभा चुनाव हुए तो इंदिरा गांधी की कई रैलियों में उनके बेटे संजय गांधी भी नजर आए। उन्होंने नसबंदी कार्यक्रम के लिए जनता से माफी मांगी और पार्टी ने दोबारा सत्ता में वापसी कर ली।