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लखनऊ के नाले ही गोमती के पानी में घोल रहे जहर
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, लखनऊ
Published by: manoj tiwari
Updated Tue, 26 Mar 2019 01:48 AM IST
लखनऊ। गोमती को प्रदूषित करने के लिए खुद लखनऊ जिम्मेदार है। स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि शहर के अंदर नदी का पानी ट्रीटमेंट के बाद भी पीने लायक नहीं बच रहा है। यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) के पूरे साल के आंकड़ों के आकलन के बाद आई रिपोर्ट शहर के लोगों को आईना दिखाने वाली है। इसके मुताबिक शहर में घुसने से पहले और निकलने के बाद नदी में पानी की गुणवत्ता बेहतर मिल रही है।
यूपीपीसीबी ने 2018 में जनवरी से लेकर दिसंबर के अंत तक गोमती में 11 जगहों पर नमूने लिए। इनकी जांच के बाद तीन बिंदुओं पर आंकडे़ जुटाए गए। इसमें घुलित ऑक्सीजन (डीओ), जैव ऑक्सीजन मांग (बीओडी) और टोटल कॉलीफार्म को जांचा गया। आंकड़ों के मुताबिक शहर के बाहर डीओ औसतन 7.4 से 8.0 मिलीग्रा प्रति लीटर तक मिल रहा है। बीओडी भी औसतन 2.3 से 4.4 मिलीग्रा प्रति लीटर बना हुआ है। हालांकि, लखनऊ की सीमा में डीओ जहां घटकर 1.7 मिलीग्रा प्रति लीटर तक है तो बीओडी बढ़कर 17.3 मिलीग्रा प्रति लीटर तक जा रहा है।
...तो क्या शहर को जहर पिला रहे
शहर में पानी की आपूर्ति को गऊ घाट से पानी पंप कर लिया जाता है। यहां से लिए नमूनों के मुताबिक डीओ का औसत स्तर 5.6 मिलीग्रा प्रति लीटर और बीओडी 4.1 मिलीग्रा प्रति लीटर है। पानी के ट्रीटमेंट के लिए यूपीपीसीबी के मानकों के मुताबिक बीओडी का स्तर 3 मिलीग्रा प्रति लीटर से अधिक नहीं होना चाहिए। यह सीधे तौर पर पानी की खराब गुणवत्ता को दर्शाता है। जून में तो यूपीपीसीबी को बीओडी 9.8 मिलीग्रा प्रति लीटर मिला। वहीं, डीओ स्तर 0.3 मिलीग्रा प्रति लीटर रिकॉर्ड हुआ। गऊ घाट से ठीक पहले तीन प्रमुख नाले पाटा, सरकटा और नगरिया नदी में गिर रहे हैं। इनसे अपस्ट्रीम से मिल रहा पानी भी गंदा हो रहा है।
भरवारा से नहीं मिल रहा ट्रीट हुआ सीवरेज!
आंकड़ों के मुताबिक गोमती बैराज और पिपराघाट से निकलने के बाद गोमती में भरवारा एसटीपी से आने वाली लाइनों से ट्रीट हुआ सीवरेज वाटर गिराया जाता है। ऐसे में यहां डीओ और बीओडी का स्तर सुधरना चाहिए। इसके उलट यहां स्थिति और खराब मिली। ऐसे में भरवारा एसटीपी के काम करने पर ही सवाल उठ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा तभी संभव है जब एसटीपी से बिना ट्रीट किए ही सीवर नदी में गिराया जा रहा हो।
नदी को तालाब बना दिया
बीबीएयू के पर्यावरण विभाग के प्रो. और गोमती के संरक्षण में जुटे डॉ. वेंकटेश दत्ता का कहना है कि लखनऊ में बीकेटी से इंदिरानहर तक 38 नाले नदी में गिरते हैं। रिवरफ्रंट के नाम पर जिस 8.5 किमी में सुधार हुआ, वहां 27 नालों का सीवर गिरता है। नदी को प्रदूषण मुक्त करने के नाम पर सिर्फ प्रयोग हुए हैं। ऐसा ही प्रयोग भरवारा एसटीपी था, जोकि फेल ही रहा है। अधिकांश समय यह काम ही नहीं करता। वहीं, हमारे अधिकारियों ने कई जगह नदी को तालाब बना दिया। कुड़ियाघाट का अस्थायी बांध हटाया नहीं गया। बैराज के गेट तभी खोले जाते हैं जब नदी में प्रदूषण अधिकतम हो जाए। डीओ कई बार गोमती बैराज से पहले शून्य तक मिलता है। गऊ घाट जहां से हम पानी लेकर शहर को दे रहे हैं, उससे पहले ही तीन नाले नदी में गिराते हैं। दौलतगंज एसटीपी यहां बना, लेकिन इसकी क्षमता बढ़ाकर संचालन का काम अभी तक नहीं किया जा सका।
सभी विभागों को भेजे आंकड़े
गोमती के आंकड़ों को सभी विभागों के साथ साझा किया जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है जिससे उचित योजना बनाकर नदी को प्रदूषणमुक्त करने को काम हो सके। रिपोर्ट के आंकड़े भी सभी विभागों को भेजे गए हैं।
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- डॉ. रामकरन, क्षेत्रीय अधिकारी, यूपीपीसीबी
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