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राज्य संग्रहालय की ओर से आयोजित डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल स्मृति
व्याख्यानमाला के दूसरे दिन ‘सर्वतोभद्रिका मूर्तियां एवं सर्वतोभद्र
मंदिर’ पर व्याख्यान दिया गया।
इसमें मुख्य वक्ता लखनऊ विवि के भारतीय
प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के प्रो. अमर सिंह ने कहा कि
सर्वतोभद्रिका का मतलब है जो चारों ओर से दिखाई दे।
चारों ओर से सुंदर हो।
इनको चतुर्बिंब या चतुर्मुख कहा जाता है। मथुरा में बनी जैन मूर्तियों में
यह काफी देखने को मिलता है।
ऐसी मूर्तियां चारों ओर से दिखाई देती हैं। इसी
तरह सर्वतोभद्र मंदिरों का आशय ऐसे मंदिरों से है जिसमें चारों दिशाओं से
प्रवेश हो। यह आर्किटेक्चरल टर्म भी है। ऐसे भवन चौकोर होते हैं।
नगरीय
योजना में भी इस शब्द का प्रयोग किया जाता है। मतलब जिन नगरों या ग्राम में
चारों दिशाओं से प्रवेश हो। पूजा के दौरान ऐसे चौकोर यंत्र भी बनाए जाते
हैं।
उन्होंने बताया कि बौद्ध धर्म में भी चारों दिखाओं में पूजा होती है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता आईएएस डॉ. आरसी त्रिपाठी ने व संचालन संग्रहालय के
सहायक निदेशक डॉ. श्यामानंद उपाध्याय ने किया।
राज्य संग्रहालय की ओर से आयोजित डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल स्मृति
व्याख्यानमाला के दूसरे दिन ‘सर्वतोभद्रिका मूर्तियां एवं सर्वतोभद्र
मंदिर’ पर व्याख्यान दिया गया।
इसमें मुख्य वक्ता लखनऊ विवि के भारतीय
प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के प्रो. अमर सिंह ने कहा कि
सर्वतोभद्रिका का मतलब है जो चारों ओर से दिखाई दे।
चारों ओर से सुंदर हो।
इनको चतुर्बिंब या चतुर्मुख कहा जाता है। मथुरा में बनी जैन मूर्तियों में
यह काफी देखने को मिलता है।
ऐसी मूर्तियां चारों ओर से दिखाई देती हैं। इसी
तरह सर्वतोभद्र मंदिरों का आशय ऐसे मंदिरों से है जिसमें चारों दिशाओं से
प्रवेश हो। यह आर्किटेक्चरल टर्म भी है। ऐसे भवन चौकोर होते हैं।
नगरीय
योजना में भी इस शब्द का प्रयोग किया जाता है। मतलब जिन नगरों या ग्राम में
चारों दिशाओं से प्रवेश हो। पूजा के दौरान ऐसे चौकोर यंत्र भी बनाए जाते
हैं।
उन्होंने बताया कि बौद्ध धर्म में भी चारों दिखाओं में पूजा होती है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता आईएएस डॉ. आरसी त्रिपाठी ने व संचालन संग्रहालय के
सहायक निदेशक डॉ. श्यामानंद उपाध्याय ने किया।