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प्रदेश में सरकारी बीज खरीद में करोड़ों का गोलमाल पकड़ में आया है। कम बीज देकर ज्यादा मात्रा की रसीद काटकर यह खेल किया जा रहा था। घपला पकड़ में आते ही उत्तर प्रदेश बीज विकास निगम को 17 करोड़ रुपये का भुगतान रोक दिया गया है। पिछले वर्षों में हुई आपूर्ति के जांच के आदेश भी दे दिए गए हैं। इस फैसले से निगम के साथ-साथ कृषि विभाग में भी खलबली मची है।
कृषि विभाग हर साल रबी सीजन में ही उत्तर प्रदेश बीज विकास निगम से करीब 125 करोड़ रुपये के बीज खरीदता है। इन्हें अनुदान पर किसानों को वितरित किया जाता है। कुछ दिनों पहले बीज विकास निगम ने करीब 17 करोड़ रुपये के बिल भुगतान के लिए कृषि निदेशालय को भेजे।
इनकी जांच की गई तो अधिकारी हैरान रह गए। पहला मामला तोरिया के बीज से पकड़ में आया। इटावा में 60 क्विंटल तोरिया के बीज की आपूर्ति की रसीद लगाई गई थी। जांच कराई गई तो पता चला कि 40 क्विंटल ही बीज दिया गया है।
शक होने पर गेहूं बीज आपूर्ति की भी जांच की गई तो इसमें भी 2730 क्विंटल बीज का हिसाब-किताब नहीं मिला। तोरिया के बीज के लिए निगम को प्रति क्विंटल 600 रुपये और गेहूं के बीज के लिए प्रति क्विंटल 3280 रुपये का भुगतान कृषि विभाग करता है।
इस तरह 90 लाख 74 हजार 400 रुपये का घपला इटावा में हुई आपूर्ति में पकड़ में आया। पूरा मामला शासन की जानकारी में लाया गया। इसके बाद 17 करोड़ रुपये के चारों बिल विभाग ने निगम को वापस कर दिए। साथ ही निगम के प्रबंध निदेशक को कड़ी चिट्ठी भी लिखी गई है कि इन मामलों की वे अपने स्तर से जांच कराएं। कृषि विभाग सभी जिलों में हुई आपूर्ति का सत्यापन कराने के बाद ही भविष्य में कोई पेमेंट करेगा।
बीज विकास निगम के स्टोर से जिला कृषि अधिकारी बीज उठाते हैं। इसके लिए वे एक पावती रसीद भी स्टोर प्रशासन को देते हैं। इसकी एक प्रति जिला कृषि अधिकारियों के पास रहती है। स्टोर प्रशासन ने रसीदों में ओवरराइटिंग करके या फिर जितनी मात्रा में बीज दिया, उससे ज्यादा दिखाकर रसीद निदेशालय को भेजी। यह खेल कब से किया जा रहा था, इसका खुलासा गहन जांच के बाद ही हो सकेगा।
पिछले 16 साल में हुई खरीद की जांच का फैसला
शासन के एक उच्च अधिकारी ने बताया कि बीज विकास निगम की वर्ष 2002 में स्थापना से लेकर अब तक निगम से खरीदे गए बीज की जांच का फैसला किया गया है। इस जांच में करोड़ों रुपये का घपला सामने आने की आशंका है।
जिन जिला कृषि अधिकारियों ने निदेशालय की बिना अनुमति के निगम के स्टोर से निर्धारित मात्रा से ज्यादा बीज उठाया, उनसे भी जवाब तलब किया जा रहा है। उनसे पूछा गया है कि किन परिस्थितियों में और क्यों उन्होंने ऐसा किया। इसके लिए सक्षम स्तर से पूर्वानुमति क्यों नहीं ली गई।
बीज विकास निगम द्वारा भेजे गए कुछ संदिग्ध बिल पकड़ में आए हैं। इनकी जांच कराई जा रही है। इस संबंध में निगम को पत्र भेजा गया है। साथ ही करीब 17 करोड़ रुपये का बिल भुगतान रोक दिया गया है। शासन को भी स्थिति से अवगत करा दिया गया है।
-वीपी सिंह, अपर कृषि निदेशक, बीज एवं प्रक्षेत्र
प्रदेश में सरकारी बीज खरीद में करोड़ों का गोलमाल पकड़ में आया है। कम बीज देकर ज्यादा मात्रा की रसीद काटकर यह खेल किया जा रहा था। घपला पकड़ में आते ही उत्तर प्रदेश बीज विकास निगम को 17 करोड़ रुपये का भुगतान रोक दिया गया है। पिछले वर्षों में हुई आपूर्ति के जांच के आदेश भी दे दिए गए हैं। इस फैसले से निगम के साथ-साथ कृषि विभाग में भी खलबली मची है।
कृषि विभाग हर साल रबी सीजन में ही उत्तर प्रदेश बीज विकास निगम से करीब 125 करोड़ रुपये के बीज खरीदता है। इन्हें अनुदान पर किसानों को वितरित किया जाता है। कुछ दिनों पहले बीज विकास निगम ने करीब 17 करोड़ रुपये के बिल भुगतान के लिए कृषि निदेशालय को भेजे।
इनकी जांच की गई तो अधिकारी हैरान रह गए। पहला मामला तोरिया के बीज से पकड़ में आया। इटावा में 60 क्विंटल तोरिया के बीज की आपूर्ति की रसीद लगाई गई थी। जांच कराई गई तो पता चला कि 40 क्विंटल ही बीज दिया गया है।
शक होने पर गेहूं बीज आपूर्ति की भी जांच की गई तो इसमें भी 2730 क्विंटल बीज का हिसाब-किताब नहीं मिला। तोरिया के बीज के लिए निगम को प्रति क्विंटल 600 रुपये और गेहूं के बीज के लिए प्रति क्विंटल 3280 रुपये का भुगतान कृषि विभाग करता है।
इस तरह 90 लाख 74 हजार 400 रुपये का घपला इटावा में हुई आपूर्ति में पकड़ में आया। पूरा मामला शासन की जानकारी में लाया गया। इसके बाद 17 करोड़ रुपये के चारों बिल विभाग ने निगम को वापस कर दिए। साथ ही निगम के प्रबंध निदेशक को कड़ी चिट्ठी भी लिखी गई है कि इन मामलों की वे अपने स्तर से जांच कराएं। कृषि विभाग सभी जिलों में हुई आपूर्ति का सत्यापन कराने के बाद ही भविष्य में कोई पेमेंट करेगा।
ऐसे किया जा रहा था घपला
बीज विकास निगम के स्टोर से जिला कृषि अधिकारी बीज उठाते हैं। इसके लिए वे एक पावती रसीद भी स्टोर प्रशासन को देते हैं। इसकी एक प्रति जिला कृषि अधिकारियों के पास रहती है। स्टोर प्रशासन ने रसीदों में ओवरराइटिंग करके या फिर जितनी मात्रा में बीज दिया, उससे ज्यादा दिखाकर रसीद निदेशालय को भेजी। यह खेल कब से किया जा रहा था, इसका खुलासा गहन जांच के बाद ही हो सकेगा।
पिछले 16 साल में हुई खरीद की जांच का फैसला
शासन के एक उच्च अधिकारी ने बताया कि बीज विकास निगम की वर्ष 2002 में स्थापना से लेकर अब तक निगम से खरीदे गए बीज की जांच का फैसला किया गया है। इस जांच में करोड़ों रुपये का घपला सामने आने की आशंका है।
जिला कृषि अधिकारियों से जवाब तलब
जिन जिला कृषि अधिकारियों ने निदेशालय की बिना अनुमति के निगम के स्टोर से निर्धारित मात्रा से ज्यादा बीज उठाया, उनसे भी जवाब तलब किया जा रहा है। उनसे पूछा गया है कि किन परिस्थितियों में और क्यों उन्होंने ऐसा किया। इसके लिए सक्षम स्तर से पूर्वानुमति क्यों नहीं ली गई।
बीज विकास निगम द्वारा भेजे गए कुछ संदिग्ध बिल पकड़ में आए हैं। इनकी जांच कराई जा रही है। इस संबंध में निगम को पत्र भेजा गया है। साथ ही करीब 17 करोड़ रुपये का बिल भुगतान रोक दिया गया है। शासन को भी स्थिति से अवगत करा दिया गया है।
-वीपी सिंह, अपर कृषि निदेशक, बीज एवं प्रक्षेत्र