तालाबों की जमीन पर फ्लैट बनाए जाने पर हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एलडीए के बेतुके जवाब पर डीएम और एलडीए वीसी को 30 मई को तलब किया है। मामला मलेसेमऊ और आसपास के इलाके के 17 तालाबों और कब्रिस्तानों की जमीन पर निर्माण कराए जाने का है।
इसपर अदालत ने सवाल किया तो एलडीए ने कहा, ‘चूंकि तालाब अब वहां नहीं हैं, इसलिए उस जमीन का जैसे चाहें उपयोग किया जा सकता है।’ अदालत ने इस जवाब को बेहद अजीब करार देते हुए कहा कि डीएम और एलडीए वीसी हलफनामे पर बताएं कि तालाब की जमीन का निर्माण कार्य में उपयोग क्यों किया?
जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस वीरेंद्र कुमार-द्वितीय ने यह आदेश मोतीलाल यादव की याचिका पर दिए। याचिका में कहा गया कि मलेसेमऊ गांव के 17 खसरा राजस्व रिकॉर्ड में कब्रिस्तान व श्मशान भूमि के रूप में दर्ज किया गया है।
वहीं 15 खसरा संख्याओं की भूमि को तालाबों के रूप में दर्ज दिखाया गया है। लेकिन इनमें से ज्यादातर पर गैरकानूनी अतिक्रमण करके निर्माण कार्य करवा दिए गए हैं।
याचिका पर जवाबी हलफनामे में एलडीए के वीसी, सचिव और लैंड एक्विजिशन ऑफिसर ने माना कि जिन खसरा संख्याओं को उल्लेख किया गया है, वहां तालाब हुआ करता था।
लेकिन जवाब में यह भी कहा गया कि चूंकि अब तालाब वहां नहीं बचा है, ऐसे जगह का उपयोग निर्माण या किसी भी कार्यों के लिए किया जा सकता है। अदालत ने इस तर्क को बेहद अजीब बताया।
अदालत ने कहा कि डीएम और एलडीए वीसी बताएं कि जो जमीनें रिकॉर्ड में तालाबों और कब्रिस्तानों के रूप में दर्ज हैं, वहां तालाब फिर से तैयार करने के प्रयास करने के बजाय निर्माण कार्यों की अनुमति कैसे दे दी गई? मामले की अगली सुनवाई 30 मई को रखी गई है।
तालाबों-श्मशानों में ये योजनाएं बना डाली
याची का कहना था कि इन तालाबों और श्मशान व कब्रिस्तानों में तीन हजार फ्लैट रिवर व्यू स्कीम के तहत बना दिए गए हैं। इसी तरह सुलभ योजना में दो हजार और वनस्थली अपार्टमेंट योजना के तहत चार सौ फ्लैट बना दिए गए। करीब 600 फ्लैट ग्रीन वुड योजना, 128 फ्लैट अपना घर स्कीम के तहत और कई और भी फ्लैट सुलभ आवास योजना के तहत खड़े कर दिए गए।
तालाबों की जमीन पर फ्लैट बनाए जाने पर हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने एलडीए के बेतुके जवाब पर डीएम और एलडीए वीसी को 30 मई को तलब किया है। मामला मलेसेमऊ और आसपास के इलाके के 17 तालाबों और कब्रिस्तानों की जमीन पर निर्माण कराए जाने का है।
इसपर अदालत ने सवाल किया तो एलडीए ने कहा, ‘चूंकि तालाब अब वहां नहीं हैं, इसलिए उस जमीन का जैसे चाहें उपयोग किया जा सकता है।’ अदालत ने इस जवाब को बेहद अजीब करार देते हुए कहा कि डीएम और एलडीए वीसी हलफनामे पर बताएं कि तालाब की जमीन का निर्माण कार्य में उपयोग क्यों किया?
जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस वीरेंद्र कुमार-द्वितीय ने यह आदेश मोतीलाल यादव की याचिका पर दिए। याचिका में कहा गया कि मलेसेमऊ गांव के 17 खसरा राजस्व रिकॉर्ड में कब्रिस्तान व श्मशान भूमि के रूप में दर्ज किया गया है।
वहीं 15 खसरा संख्याओं की भूमि को तालाबों के रूप में दर्ज दिखाया गया है। लेकिन इनमें से ज्यादातर पर गैरकानूनी अतिक्रमण करके निर्माण कार्य करवा दिए गए हैं।