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प्रदेश के बहुचर्चित हाथरस कांड मामले की इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में बुधवार को सुनवाई हुई। सीबीआई ने अब तक की गई जांच की स्टेटस रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जिलाधिकारी हाथरस को अभी तक नहीं हटाने को लेकर नाराजगी व्यक्त की। इस पर सरकार की तरफ से कोर्ट में तर्क देते हुए जवाबी हलफ़नामा दाखिल किया गया। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 16 दिसंबर को नियत किया है।
न्यायमूर्ति पंकज मित्थल और न्यायमूर्ति राजन रॉय की खंडपीठ ने बुधवार को यह आदेश हाथरस मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए दर्ज कराई गई जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद दिया। गत दो नवंबर को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने 25 नवंबर को सीबीआई से जांच की स्टेटस रिपोर्ट पेश को कहा था, जिसके अनुपालन में बुधवार को सीबीआई ने स्टेटस रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी। सीबीआई ने कोर्ट से कहा है कि जांच तेज गति से चल रही है। वैज्ञानिक साक्ष्य जुटाने के लिए इस मामले के चारों आरोपितों का गांधीनगर में पॉलीग्राफ और बीईओएस (ब्रेन इलेक्ट्रिकल ऑसिलेशन सिग्नेचर) टेस्ट कराया जा रहा है। कहा कि संभवत: 10 दिसंबर तक जांच पूरी हो जाएगीं।
उधर, राज्य सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता विनोद कुमार शाही केंद्र की ओर से एसपी राजू, पीड़िता के परिवार की ओर से अधिवक्ता सीमा कुशवाहा व सीबीआई की ओर से अधिवक्ता अनुराग सिंह पेश हुए। मालूम हो कि दो नवंबर को सुनवाई के दौरान कोर्ट में उतर प्रदेश के एडीजी कानून-व्यवस्था प्रशांत कुमार, गृह सचिव तरुण गाबा व हाथरस के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक कोर्ट में पेश हुए थे।
जिलाधिकारी हाथरस प्रवीण कुमार के संबंध में कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा था कि विवेचना के दौरान क्या उन्हें हाथरस में बनाए रखना निष्पक्ष और उचित है। कोर्ट ने कहा था कि हमारे समक्ष भी जो प्रक्रिया चल रही है, उससे वह भी जुड़े हुए हैं। क्या यह उचित नहीं होगा कि सिर्फ निष्पक्षता व पारदर्शिता के लिए इन प्रक्रियाओं के दौरान उन्हें कहीं और शिफ्ट कर दिया जाए। इस पर राज्य सरकार के अधिवक्ता ने अगली सुनवाई पर सरकार का रुख स्पष्ट करने की बात कही है।
यह था मामला : हाथरस जिले के चंदपा इलाके के बूलगढ़ी गांव में 14 सितंबर को चार लोगों ने कथित रूप से 19 साल की दलित युवती से सामूहिक दुष्कर्म किया था। इस दौरान युवती को गंभीर चोट आई थी। दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान 29 सितंबर को पीड़िता की मौत हो गई थी। पीड़िता की 30 सितंबर को रात के अंधेरे में उसके घर के पास ही अंत्येष्टि कर दी गई थी। उसके परिवार का आरोप है कि स्थानीय पुलिस ने जल्दबाजी में अंतिम संस्कार करने के लिए मजबूर किया, जबकि स्थानीय पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि परिवार की इच्छा के मुताबिक ही अंतिम संस्कार किया गया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में प्रदेश के बहुचर्चित हाथरस काण्ड मामले में अगली सुनवाई पर 16 दिसंबर को ऐसे केसों में शवों के गरिमापूर्ण अन्तिम संस्कार की प्रक्रिया का फाइनल प्रारूप (एसओपी) पेश होगा। कोर्ट ने पहले इसके लिए दिशा निर्देश तय करने का आदेश राज्य सरकार को दिया था।
न्यायमूर्ति पंकज मितल और न्यायमूर्ति राजन राय की खंडपीठ के समक्ष बुधवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर ने एसओपी का प्रारुप पेश किया, जिसपर कोर्ट ने कुछ सुझाव भी दिए। माथुर के मुताबिक इसको लेकर राज्य सरकार व अपर महाधिवक्ता विनोद कुमार शाही से चर्चा के बाद 16 दिसंबर को एसओपी का फाइनल प्रारूप कोर्ट में पेश किया जाएगा।
कोर्ट ने पहले गत 12 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान हाथरस में परिवार की मर्जी के बिना रात में मृतका का अंतिम संस्कार किए जाने पर तीखी टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा था कि बिना धार्मिक संस्कारों के युवती का दाह संस्कार करना पीड़ित, उसके स्वजन और रिश्तेदारों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है। इसके लिए जिम्मेदारी तय कर कार्रवाई करने की आवश्यकता है। कोर्ट ने इस मामले में मीडिया, राजनीतिक दलों व सरकारी अफसरों की अतिसक्रियता पर भी नाराजगी प्रकट करते हुए उन्हें इस मामले में बेवजह बयानबाजी न करने की हिदायत भी दी थी। मालूम हो कि उतर प्रदेश के हाथरस जिले के बूलगढ़ी गांव में गत 14 सितंबर को दलित युवती से चार लड़कों ने कथित रूप के साथ सामूहिक दुष्कर्म और बेरहमी से मारपीट की थी। युवती को पहले जिला अस्पताल, फिर अलीगढ़ के जेएन मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया। हालत खराब होने पर पर उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल रेफर कर दिया गया, जहां 29 सितंबर को मृत्यु हो गई थी। मौत के बाद आनन-फानन में पुलिस ने रात में अंतिम संस्कार कर दिया था, जिसके बाद काफी बवाल हुआ। परिवार का कहना था कि उनकी मर्जी के खिलाफ पुलिस ने पीड़िता का अंतिम संस्कार कर दिया, हालांकि पुलिस इन दावों को खारिज कर रही है। हाथरस के तत्कालीन एसपी विक्रान्त वीर ने कोर्ट में कहा था कि पीड़िता के शव का रात में अन्तिम संस्कार कराने का निर्णय उनका और डीएम का था। मामले की अब हाईकोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच कर रही है।
पीड़िता के परिवार को यूपी से बाहर घर देने की गुजारिश
लखनऊ। हाथरस काण्ड की सुनवाई के दौरान पीड़िता के परिजनों की तरफ से पेश हुई अधिवक्ता सीमा कुशवाहा ने फिर पीड़िता के परिवार को प्रदेश से बाहर घर मुहैया कराए जाने की गुजारिश की। साथ ही कहा कि सीएम के आश्वासन के मुताबिक पीड़िता के एक परिजन को सरकारी नौकरी दिए जाने को लेकर कोई करवाई नहीँ की गई है। अधिवक्ता ने हाथरस के डीएम प्रवीण कुमार को न हटाए जाने का आरोप लगाते हुए आग्रह किया कि कथित अपराध में लिप्त पाए जाने वाले अफसरों के खिलाफ सख्त कारवाई की जाए। कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित कर लिया है। अब अदालत मामले में विस्तृत आदेश सुनाएगी।
प्रदेश के बहुचर्चित हाथरस कांड मामले की इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में बुधवार को सुनवाई हुई। सीबीआई ने अब तक की गई जांच की स्टेटस रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने जिलाधिकारी हाथरस को अभी तक नहीं हटाने को लेकर नाराजगी व्यक्त की। इस पर सरकार की तरफ से कोर्ट में तर्क देते हुए जवाबी हलफ़नामा दाखिल किया गया। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 16 दिसंबर को नियत किया है।
न्यायमूर्ति पंकज मित्थल और न्यायमूर्ति राजन रॉय की खंडपीठ ने बुधवार को यह आदेश हाथरस मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए दर्ज कराई गई जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद दिया। गत दो नवंबर को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने 25 नवंबर को सीबीआई से जांच की स्टेटस रिपोर्ट पेश को कहा था, जिसके अनुपालन में बुधवार को सीबीआई ने स्टेटस रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी। सीबीआई ने कोर्ट से कहा है कि जांच तेज गति से चल रही है। वैज्ञानिक साक्ष्य जुटाने के लिए इस मामले के चारों आरोपितों का गांधीनगर में पॉलीग्राफ और बीईओएस (ब्रेन इलेक्ट्रिकल ऑसिलेशन सिग्नेचर) टेस्ट कराया जा रहा है। कहा कि संभवत: 10 दिसंबर तक जांच पूरी हो जाएगीं।
उधर, राज्य सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता विनोद कुमार शाही केंद्र की ओर से एसपी राजू, पीड़िता के परिवार की ओर से अधिवक्ता सीमा कुशवाहा व सीबीआई की ओर से अधिवक्ता अनुराग सिंह पेश हुए। मालूम हो कि दो नवंबर को सुनवाई के दौरान कोर्ट में उतर प्रदेश के एडीजी कानून-व्यवस्था प्रशांत कुमार, गृह सचिव तरुण गाबा व हाथरस के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक कोर्ट में पेश हुए थे।
जिलाधिकारी हाथरस प्रवीण कुमार के संबंध में कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा था कि विवेचना के दौरान क्या उन्हें हाथरस में बनाए रखना निष्पक्ष और उचित है। कोर्ट ने कहा था कि हमारे समक्ष भी जो प्रक्रिया चल रही है, उससे वह भी जुड़े हुए हैं। क्या यह उचित नहीं होगा कि सिर्फ निष्पक्षता व पारदर्शिता के लिए इन प्रक्रियाओं के दौरान उन्हें कहीं और शिफ्ट कर दिया जाए। इस पर राज्य सरकार के अधिवक्ता ने अगली सुनवाई पर सरकार का रुख स्पष्ट करने की बात कही है।
यह था मामला : हाथरस जिले के चंदपा इलाके के बूलगढ़ी गांव में 14 सितंबर को चार लोगों ने कथित रूप से 19 साल की दलित युवती से सामूहिक दुष्कर्म किया था। इस दौरान युवती को गंभीर चोट आई थी। दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान 29 सितंबर को पीड़िता की मौत हो गई थी। पीड़िता की 30 सितंबर को रात के अंधेरे में उसके घर के पास ही अंत्येष्टि कर दी गई थी। उसके परिवार का आरोप है कि स्थानीय पुलिस ने जल्दबाजी में अंतिम संस्कार करने के लिए मजबूर किया, जबकि स्थानीय पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि परिवार की इच्छा के मुताबिक ही अंतिम संस्कार किया गया।
हाईकोर्ट में पेश होगी शवों के अन्तिम संस्कार की प्रक्रिया
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में प्रदेश के बहुचर्चित हाथरस काण्ड मामले में अगली सुनवाई पर 16 दिसंबर को ऐसे केसों में शवों के गरिमापूर्ण अन्तिम संस्कार की प्रक्रिया का फाइनल प्रारूप (एसओपी) पेश होगा। कोर्ट ने पहले इसके लिए दिशा निर्देश तय करने का आदेश राज्य सरकार को दिया था।
न्यायमूर्ति पंकज मितल और न्यायमूर्ति राजन राय की खंडपीठ के समक्ष बुधवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर ने एसओपी का प्रारुप पेश किया, जिसपर कोर्ट ने कुछ सुझाव भी दिए। माथुर के मुताबिक इसको लेकर राज्य सरकार व अपर महाधिवक्ता विनोद कुमार शाही से चर्चा के बाद 16 दिसंबर को एसओपी का फाइनल प्रारूप कोर्ट में पेश किया जाएगा।
कोर्ट ने पहले गत 12 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान हाथरस में परिवार की मर्जी के बिना रात में मृतका का अंतिम संस्कार किए जाने पर तीखी टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा था कि बिना धार्मिक संस्कारों के युवती का दाह संस्कार करना पीड़ित, उसके स्वजन और रिश्तेदारों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है। इसके लिए जिम्मेदारी तय कर कार्रवाई करने की आवश्यकता है। कोर्ट ने इस मामले में मीडिया, राजनीतिक दलों व सरकारी अफसरों की अतिसक्रियता पर भी नाराजगी प्रकट करते हुए उन्हें इस मामले में बेवजह बयानबाजी न करने की हिदायत भी दी थी। मालूम हो कि उतर प्रदेश के हाथरस जिले के बूलगढ़ी गांव में गत 14 सितंबर को दलित युवती से चार लड़कों ने कथित रूप के साथ सामूहिक दुष्कर्म और बेरहमी से मारपीट की थी। युवती को पहले जिला अस्पताल, फिर अलीगढ़ के जेएन मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया। हालत खराब होने पर पर उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल रेफर कर दिया गया, जहां 29 सितंबर को मृत्यु हो गई थी। मौत के बाद आनन-फानन में पुलिस ने रात में अंतिम संस्कार कर दिया था, जिसके बाद काफी बवाल हुआ। परिवार का कहना था कि उनकी मर्जी के खिलाफ पुलिस ने पीड़िता का अंतिम संस्कार कर दिया, हालांकि पुलिस इन दावों को खारिज कर रही है। हाथरस के तत्कालीन एसपी विक्रान्त वीर ने कोर्ट में कहा था कि पीड़िता के शव का रात में अन्तिम संस्कार कराने का निर्णय उनका और डीएम का था। मामले की अब हाईकोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच कर रही है।
पीड़िता के परिवार को यूपी से बाहर घर देने की गुजारिश
लखनऊ। हाथरस काण्ड की सुनवाई के दौरान पीड़िता के परिजनों की तरफ से पेश हुई अधिवक्ता सीमा कुशवाहा ने फिर पीड़िता के परिवार को प्रदेश से बाहर घर मुहैया कराए जाने की गुजारिश की। साथ ही कहा कि सीएम के आश्वासन के मुताबिक पीड़िता के एक परिजन को सरकारी नौकरी दिए जाने को लेकर कोई करवाई नहीँ की गई है। अधिवक्ता ने हाथरस के डीएम प्रवीण कुमार को न हटाए जाने का आरोप लगाते हुए आग्रह किया कि कथित अपराध में लिप्त पाए जाने वाले अफसरों के खिलाफ सख्त कारवाई की जाए। कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित कर लिया है। अब अदालत मामले में विस्तृत आदेश सुनाएगी।