चुनाव नतीजों के इंतजार ने सियासी दिग्गजों की धड़कनें बढ़ा दी हैं। हाड़ कंपा देने वाली ठंड में भी प्रत्याशियों की पेशानी पर पसीने की बूंदें छलछला आती हैं। मतदान के सभी चरण समाप्त होने के बाद अब जोड़तोड़ तेज है। चुनाव प्रचार के दौरान एक-दूसरे के खिलाफ आग उगलने वाले नेता भी परस्पर गठबंधन की संभावनाओं पर गंभीरता से विचार करने लगे हैं।
सियासी पंडितों और एग्जिट पोल के अनुमान अगर सत्य के करीब भी पहुंचते हैं तो जम्मू कश्मीर में बिना बैशाखी किसी भी दल के लिए सरकार बनाना मुश्किल होगा। जम्मू और लद्दाख में भाजपा और कश्मीर में पीडीपी के अच्छे प्रदर्शन की संभावनाओं के बीच सियासी दलों को फिर से हमसफर की तलाश है।
नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी का जनाधार कश्मीर में रहा है और दोनों दल स्वाभाविक रूप से कट्टर प्रतिद्वंदी हैं। लिहाजा, दोनों एक-दूसरे को रोकने के लिए हरसंभव कदम उठा सकते हैं।
महाराष्ट्र के चुनाव नतीजों के बाद बहुमत से दूर भाजपा को तब आक्सीजन मिल गई थी जब शरद पवार की एनसीपी ने एकतरफा बिना शर्त समर्थन की घोषणा कर दी थी। इससे शिवसेना का मोलभाव घट गया था।
भाजपा को जम्मू कश्मीर में भी एक पवार की तलाश है। अगर चुनाव नतीजों के बाद आंकड़ों के गणित में नेशनल कांफ्रेंस पिछड़ती है तो भाजपा की ओर से नेकां को पवार की भूमिका में लाने के प्रयास तेज हो सकते हैं। नेकां पहले भी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में साझीदार रही है। इसलिए इस समीकरण की संभावना बनती है।
चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो परिवारों से रियासत को मुक्त कराने का नारा दिया था। यह पृष्ठभूमि भाजपा को नेकां और पीडीपी के करीब लाने में बाधक जरूर है, लेकिन, सियासी मजबूरियां क्षेत्रीय दलों को समझौते के लिए प्रेरित कर सकती हैं।
पीडीपी की अधिक सीटें आने की स्थिति में कांग्रेस समर्थन देकर सरकार में शामिल होने के लिए पहले से तैयार है। इसके लिए परदे के पीछे गुणा-गणित पूरा हो चुका है। भाजपा की राह में समर्थक नहीं मिलने की बाधा पीडीपी की तुलना में अधिक है। बहरहाल ईवीएम मशीनों के खुलने की बेसब्र प्रतीक्षा चारों ओर है।
चुनाव नतीजों के इंतजार ने सियासी दिग्गजों की धड़कनें बढ़ा दी हैं। हाड़ कंपा देने वाली ठंड में भी प्रत्याशियों की पेशानी पर पसीने की बूंदें छलछला आती हैं। मतदान के सभी चरण समाप्त होने के बाद अब जोड़तोड़ तेज है। चुनाव प्रचार के दौरान एक-दूसरे के खिलाफ आग उगलने वाले नेता भी परस्पर गठबंधन की संभावनाओं पर गंभीरता से विचार करने लगे हैं।
सियासी पंडितों और एग्जिट पोल के अनुमान अगर सत्य के करीब भी पहुंचते हैं तो जम्मू कश्मीर में बिना बैशाखी किसी भी दल के लिए सरकार बनाना मुश्किल होगा। जम्मू और लद्दाख में भाजपा और कश्मीर में पीडीपी के अच्छे प्रदर्शन की संभावनाओं के बीच सियासी दलों को फिर से हमसफर की तलाश है।
नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी का जनाधार कश्मीर में रहा है और दोनों दल स्वाभाविक रूप से कट्टर प्रतिद्वंदी हैं। लिहाजा, दोनों एक-दूसरे को रोकने के लिए हरसंभव कदम उठा सकते हैं।
भाजपा को कश्मीर में पवार की तलाश
महाराष्ट्र के चुनाव नतीजों के बाद बहुमत से दूर भाजपा को तब आक्सीजन मिल गई थी जब शरद पवार की एनसीपी ने एकतरफा बिना शर्त समर्थन की घोषणा कर दी थी। इससे शिवसेना का मोलभाव घट गया था।
भाजपा को जम्मू कश्मीर में भी एक पवार की तलाश है। अगर चुनाव नतीजों के बाद आंकड़ों के गणित में नेशनल कांफ्रेंस पिछड़ती है तो भाजपा की ओर से नेकां को पवार की भूमिका में लाने के प्रयास तेज हो सकते हैं। नेकां पहले भी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में साझीदार रही है। इसलिए इस समीकरण की संभावना बनती है।
चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो परिवारों से रियासत को मुक्त कराने का नारा दिया था। यह पृष्ठभूमि भाजपा को नेकां और पीडीपी के करीब लाने में बाधक जरूर है, लेकिन, सियासी मजबूरियां क्षेत्रीय दलों को समझौते के लिए प्रेरित कर सकती हैं।
पीडीपी की अधिक सीटें आने की स्थिति में कांग्रेस समर्थन देकर सरकार में शामिल होने के लिए पहले से तैयार है। इसके लिए परदे के पीछे गुणा-गणित पूरा हो चुका है। भाजपा की राह में समर्थक नहीं मिलने की बाधा पीडीपी की तुलना में अधिक है। बहरहाल ईवीएम मशीनों के खुलने की बेसब्र प्रतीक्षा चारों ओर है।