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Strange World Movie Review in Hindi By Pankaj Shukla Don Hall Qui Nguyen Jake Gyllenhaal Dennis Quaid Lucy Liu
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Strange World Review: अजब दुनिया की नए रंगों से सराबोर गजब कहानी, पिता या बेटे के साथ देखिए डिज्नी की नई फिल्म
फिल्म ‘स्ट्रेंज वर्ल्ड’ एक तरह से देखा जाए तो ये डिज्नी के सौवें साल में प्रवेश पर आई उसकी सबसे आधुनिक कहानी है। ये है तो एक फंतासी कथा लेकिन इसमें तत्व आधुनिक दुनिया के हैं।
जेल जिलेनहाल
,
डेनिस क्वैड
,
लूसी लिउ
,
जाबूकी यंग व्हाइट
और
गैब्रिएल यूनियन, आदि
लेखक
क्वी एनजेन
निर्देशक
डॉन हाल
और
क्वी एनजेन
निर्माता
रॉय कोनली
रिलीज डेट
25 नवंबर 2022
रेटिंग
3/5
विस्तार
डिज्नी की नई एनीमेशन फिल्म ‘स्ट्रेंज वर्ल्ड’ अजब दुनिया के गजब लोगों की कहानी है। लेकिन, अजब होते हुए भी ये दुनिया कुछ कुछ जानी पहचानी सी लगती है। ये बातें भी इसी दुनिया की करती है। मौजूदा समय में वयस्क बच्चों के माता पिता शायद सबसे गजब अभिभावकों की विलुप्तप्राय पीढ़ी हैं। उनके अपने माता पिता से रिश्ते कैसे भी रहे हों, वह नई सदी के अभिभावक बनने की जी जान से कोशिश करने में लगे रहते हैं। उन पर दबाव रहा कि वे वैसा ही बनें जैसे उनके माता पिता बनाना चाहते थे। अब वह अपने बच्चों को अपने पसंद की दुनिया में जीने देना चाहते हैं। साथ ही उनकी फिक्र में भी दिन रात लगे रहते हैं। एक कहानी साथ में ये भी चल रही है कि अपनी सुख सुविधाओं के लिए प्रकृति का जो दोहन हम कर रहे हैं, क्या उससे धरती का दिल कमजोर नहीं हो रहा। सोचकर देखिए कि अगर हम धरती का सीना चीरकर प्राकृतिक संसाधनों को निचोड़ना बंद कर दें तो भले हमें रात में अंधेरे में रहना पड़े लेकिन प्रकृति उसके बाद कितनी खूबसूरत हो जाएगी। हवा साफ होगी। पानी कहीं से भी पीने लायक होगा, वगैरह वगैरह...!
स्ट्रेंज वर्ल्ड रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
सौवें साल के बदलाव की कहानी
फिल्म ‘स्ट्रेंज वर्ल्ड’ एक तरह से देखा जाए तो ये डिज्नी के सौवें साल में प्रवेश पर आई उसकी सबसे आधुनिक कहानी है। ये है तो एक फंतासी कथा लेकिन इसमें तत्व आधुनिक दुनिया के हैं। एक जिद्दी बाप अपने बेटे को बीच राह छोड़कर इसलिए चला जाता है क्योंकि उसे अपनी बस्ती को चारों तरफ से घेरे खड़े पहाड़ों के पार की दुनिया देखनी है। बेटा इसलिए आधी राह से लौट आता है क्योंकि उसे अपनी बस्ती की हालत सुधारने का नुस्खा बीच रास्ते ही मिल गया है। ये 25 साल पहले की बात है। अब बेटा बड़ा हो चुका है। उसके लाए नुस्खे से पूरी बस्ती में ऐशो आराम आ चुका है। उसका अपना बेटा इतना बड़ा हो चुका है कि वह भी प्रेम के मायने समझ सकता है। लेकिन, उसका प्रेम अपने माता पिता सरीखा नहीं है। वह अपने साथी पर फिदा है। दुनिया भर में हंगामा है कि ये डिज्नी की दुनिया का पहला ऐसा समलैंगिक किरदार है जिसका कहानी में भरा पूरा वजूद है। लेकिन, फिल्म के किरदारों में से किसी को इसकी पड़ी नहीं है, उनके लिए ये उस किशोर की निजी जिंदगी है और अपनी जिंदगी उसे अपने तरीके से जीने के हक की बात बहुत ही सरल तरीके से समझाती फिल्म वहां आकर रुकती है जहां दुनिया को ये संदेश मिलता है कि प्राकृतिक दोहन न रुका तो क्या हो सकता है!
स्ट्रेंज वर्ल्ड रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
ये फिल्म बहुत कुछ कहती है
डिज्नी की हर फिल्म कुछ कहती है। वह दर्शकों से बात करने की कोशिश करती है। उसके किरदार अब तक दो अलग अलग ध्रुवों पर बसते रहे हैं। कभी वे ‘अप’, ‘सोल’ और ‘इनसाइड आउट’ जैसी दुनिया में अपनी परंपराओं को जीते नजर आते हैं तो कभी ‘मिनियन्स’, ‘कार्स’ और ‘ट्रोल्स’ में नई दुनिया की बेफिक्रियों को दोहराते दिखते हैं। फिल्म ‘स्ट्रेंज वर्ल्ड’ इन दोनों के बीच से रास्ता निकालती है। साइंस फिक्शन एनीमेशन फिल्म होते हुए भी ये फिल्म समझाती है कि विज्ञान के विकास का अगर बेरोकटोक इस्तेमाल हुआ तो इसका असर सीधे हम पर ही होगा। सारी सांसें अगर हमने अपनी विज्ञान के भरोसे पर ही टिका दीं तो एक दिन ऐसा भी आएगा जब हमें सांसें लेने के लिए शायद साफ हवा ही न मिले। पर्यावरण संरक्षण की बात को एक अनोखे तरीके से समझाती फिल्म ‘स्ट्रेंज वर्ल्ड’ उस दुनिया की कहानी है जहां सब कुछ अतरंगी है। एक ऐसे रंगों की दुनिया जिसे बड़े परदे पर देखना आंखों को सुकून देता है। सब रंग नए हैं। लेकिन, कुछ भी सतरंगी जैसा नहीं है। और इसलिए ये अजब दुनिया है।
स्ट्रेंज वर्ल्ड रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
पीढ़ी एकांतरण की भावुक कहानी
पीढ़ी एकांतरण की बात को सिरे से पकड़ती ये फिल्म पिता-पुत्र के बीच आपसी समझदारी की बात करती है। पिछली पीढ़ी अगर अपनी संतानों को अपनी जायदाद समझकर उन पर अपना हक समझती रही तो नई पीढ़ी के माता पिता भले उनकी पसंद और नापसंद मे ज्यादा हस्तक्षेप न करते हों लेकिन बनाना वे भी उन्हें अपने जैसा ही चाहते हैं। संतान के प्रति स्नेह और संतान के सिर पर हरदम मंडराते रहने की बारीक लकीर पर ये कहानी गजब का संतुलन बनाकर चलती है। फिल्म का समलैंगिक धागा यहां कहानी की डोर का मुख्य हिस्सा नहीं है। कोई भी किरदार उसके बारे में बात भी नहीं करता। ये इतना ही सामान्य होना भी चाहिए। डिज्नी की फिल्मों में ऐसे संदर्भ पहले भी आते रहे हैं लेकिन वे तब ऐसे होते थे कि किसी देश के सेंसर बोर्ड को आपत्ति हो तो उन्हें काटने के बाद भी फिल्म के कथानक पर असर न पड़े। यहां ऐसा नहीं है। यहां ये धागा चटकाकर तोड़ा जाए तो फिर लगने वाली गांठ साफ नजर आ सकती है।
स्ट्रेंज वर्ल्ड रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
वातावरण से बदलता सिनेमा का असर
हिंदी सिनेमा को जो सीख डिज्नी की ऐसी फिल्मों से लेनी चाहिए वह है कहानी में वातावरण को शामिल करने की अनिवार्यता। ‘विक्रमवेधा’ में लखनऊ कहीं नहीं है। ‘दृश्यम 2’ में गोवा हर बात में मौजूद है। आधुनिक कथा कथन का ये नया दस्तूर है। जितना कहानी का वातावरण रुचिकर होगा, इसके किरदार भी उतने ही नेत्रप्रिय लगेंगे। डिज्नी की कंप्यूटरजनित एनीमेशन फिल्मों में कैमरा और लाइटिंग की इतनी विशाल टीम इसीलिए होती है। जी हां, कंप्यूटर पर रचे गए कहानी के वातावरण में किरदारों के आसपास ई कैमरों की जगह कुछ इस तरह बनाई जाती है कि किरदारों पर वांछित स्तर के प्रकाश को वे सही तरीके से फिल्मा सकें। डिज्नी की अपने प्रशंसकों के बीच विकसित की गई सिनेसंस्कृति इन्हीं सब बातों से खुराक पाती है। हर वह चीज जो हमें प्रिय है, उसे नुकसान पहुंचाने वाले हमारे दुश्मन बन जाते हैं लेकिन क्या वाकई जिसे हम प्रिय या अपनी जरूरत मान बैठे हैं, वह उतनी ही जरूरी है हमारे लिए या कि फिर किसी दूसरे दृष्टिकोण से भी इस बात को देखा जा सकता है?
स्ट्रेंज वर्ल्ड रिव्यू
- फोटो : अमर उजाला, मुंबई
दादा, बेटे और पोते की मनोरंजक फिल्म
फिल्म ‘स्ट्रेंज वर्ल्ड’ कहने को एक मनोरंजक कहानी पर बनी बढ़िया एनीमेशन फिल्म है लेकिन सोचने बैठें तो इस कहानी के भीतर भी एक अलग कहानी है जिसे इसके लेखक ने इतनी चतुराई से दर्शकों के दिमाग में बोया है कि अगर ये जरा सा भी निष्पक्ष चिंतक हुआ तो उसमें कुलबुलाहट होना लाजिमी है। तकनीकी तौर पर डिज्नी की एनीमेशन फिल्मों का संसार हमेशा से चित्ताकर्षक रहा है। इस बार इसमें नए रंगों की बौछार डाली गई है। नई पीढ़ी के किशोरों के ज्ञानचक्षु खोलने वाली ये फिल्म देखने के बाद बच्चों के तमाम सवाल भी अपने माता पिता से हो सकते हैं तो बेहतर है कि फिल्म साथ साथ देखें और बच्चे सवाल करें तो नई सदी के आधुनिक माता पिता की तरह इस पर खुलकर उनसे चर्चा भी करें। और हां, बच्चों के दादा को भी साथ ले जा सकें तो सोने पर सुहागा!
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