दिल्ली में राजनैतिक पारा चढ़ा हुआ है। गली-गली में सरकार और विधानसभा चुनावों को लेकर चर्चाएं चल रही हैं। सब यही मान रहे हैं कि दिल्ली की सियासत का यह रुख भारतीय जनता पार्टी के उस फैसले के बाद हुआ है, जो उसने रविवार शाम संसदीय बोर्ड की बैठक में लिया। लेकिन असल मामला इससे इतर है।
असल में दिल्ली की राजनीति में ये खलबली कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के फोन कॉल से मची है। जो उन्होंने अपने ही पार्टी के एक विधायक को की थी। अगर सोनिया गांधी ने वह फोन कॉल ना किया होती तो शायद आज दिल्ली का मौजूदा परिदृश्य कुछ और होता।
शायद भाजपा दिल्ली में सरकार बना चुकी होती और कांग्रेस का दिल्ली में अस्तित्व खतरे में पड़ गया होता। बात तब की है जब दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को चिट्ठी लिखकर कहा था कि वह भाजपा को सरकार बनाने के लिए बुलाना चाहते हैं।
तब राष्ट्रपति ने उन्हें इसकी अनुमति भी दे दी थी और भाजपा के पास पूरा मौका था कि वह दिल्ली में सरकार बना ले। लेकिन उसके पास सरकार बनाने के लिए आवश्यक नंबर नहीं थे। तब भाजपा ने किया था कुछ ऐसा कि करना पड़ा सोनिया को फोन।
एलजी की चिट्ठी के बाद भाजपा ने भरसक कोशिश की कि वह दिल्ली में सरकार बना ले। इसके लिए पार्टी ने सभी तौर-तरीके अपनाए। उसी दौरान आम आदमी पार्टी ने भाजपा पर अपने विधायकों को तोड़ने की कोशिश का आरोप लगाया था। आप ने बाकायदे स्टिंग ऑपरेशन के जरिए इसके पुख्ता सबूत भी दिए थे।
उन्हीं दिनों चर्चा उड़ी की आप विधायकों को न तोड़ पाने की स्थिति में भाजपा, कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने की कोशिश कर रही है। उड़ती-उड़ती खबरें आई थीं कि कांग्रेस के छह विधायक भाजपा को समर्थन देने के लिए तैयार भी हो गए हैं। यही नहीं वह दल बदलने की भी तैयारी कर चुके हैं।
लेकिन बात बनी नहीं। अब सूत्रों के हवाले से इस मामले पर एक बड़ा खुलासा हुआ है। जानकारी के अनुसार वास्तव में कांग्रेस के छह विधायक भाजपा को समर्थन देने की तैयारी में थे। बात यहां तक बढ़ गई कि यह बात कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी तक पहुंच गई। बस तभी सोनिया ने मिला दिया अपने एक विधायक को फोन।
सोनिया ने दिल्ली में टूट की जानकारी पर अपने एक विश्वसनीय विधायक को फोन किया और उनके घरेलू मुद्दों पर बातचीत की, हालचाल पूछा। साथ ही किसी दिन निवास पर आकर मुलाकत करने को कहा। एक बड़े समाचार पत्र की मानें तो विधायक पर इस बात का इतना असर हुआ कि वह अन्य तीन विधायकों के साथ सोनिया के निवास पर मुलाकात के लिए पहुंच गए।
वहां सोनिया ने उनसे दिल्ली के मौजूदा हालात की जानकारी ली और आगे की रणनीति पर चर्चा की। इसके बाद उस विधायक ने न केवल यह तय किया कि वह भाजपा को समर्थन नहीं देंगे, बल्कि अपने अन्य साथियों को भी भाजपा से सांठगांठ न करने को प्रेरित किया।
कुल मिलाकर सोनिया के उस कॉल का असर कांग्रेस के न टूटने के रुप में हुआ। और अंततः भाजपा को चुनाव में खींचने में कारगर सिद्ध हुआ। अब जब दिल्ली में चुनाव होना तय है, तो एक बार फिर से कांग्रेस एकजुट दिख रही है और पूरी तैयारी के साथ चुनाव में उतरने में जुटी हुई है।
दिल्ली में राजनैतिक पारा चढ़ा हुआ है। गली-गली में सरकार और विधानसभा चुनावों को लेकर चर्चाएं चल रही हैं। सब यही मान रहे हैं कि दिल्ली की सियासत का यह रुख भारतीय जनता पार्टी के उस फैसले के बाद हुआ है, जो उसने रविवार शाम संसदीय बोर्ड की बैठक में लिया। लेकिन असल मामला इससे इतर है।
असल में दिल्ली की राजनीति में ये खलबली कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के फोन कॉल से मची है। जो उन्होंने अपने ही पार्टी के एक विधायक को की थी। अगर सोनिया गांधी ने वह फोन कॉल ना किया होती तो शायद आज दिल्ली का मौजूदा परिदृश्य कुछ और होता।
शायद भाजपा दिल्ली में सरकार बना चुकी होती और कांग्रेस का दिल्ली में अस्तित्व खतरे में पड़ गया होता। बात तब की है जब दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को चिट्ठी लिखकर कहा था कि वह भाजपा को सरकार बनाने के लिए बुलाना चाहते हैं।
तब राष्ट्रपति ने उन्हें इसकी अनुमति भी दे दी थी और भाजपा के पास पूरा मौका था कि वह दिल्ली में सरकार बना ले। लेकिन उसके पास सरकार बनाने के लिए आवश्यक नंबर नहीं थे। तब भाजपा ने किया था कुछ ऐसा कि करना पड़ा सोनिया को फोन।
कांग्रेस को टूटने से कैसे रोका उस फोन कॉल ने
एलजी की चिट्ठी के बाद भाजपा ने भरसक कोशिश की कि वह दिल्ली में सरकार बना ले। इसके लिए पार्टी ने सभी तौर-तरीके अपनाए। उसी दौरान आम आदमी पार्टी ने भाजपा पर अपने विधायकों को तोड़ने की कोशिश का आरोप लगाया था। आप ने बाकायदे स्टिंग ऑपरेशन के जरिए इसके पुख्ता सबूत भी दिए थे।
उन्हीं दिनों चर्चा उड़ी की आप विधायकों को न तोड़ पाने की स्थिति में भाजपा, कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने की कोशिश कर रही है। उड़ती-उड़ती खबरें आई थीं कि कांग्रेस के छह विधायक भाजपा को समर्थन देने के लिए तैयार भी हो गए हैं। यही नहीं वह दल बदलने की भी तैयारी कर चुके हैं।
लेकिन बात बनी नहीं। अब सूत्रों के हवाले से इस मामले पर एक बड़ा खुलासा हुआ है। जानकारी के अनुसार वास्तव में कांग्रेस के छह विधायक भाजपा को समर्थन देने की तैयारी में थे। बात यहां तक बढ़ गई कि यह बात कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी तक पहुंच गई। बस तभी सोनिया ने मिला दिया अपने एक विधायक को फोन।
क्या था उस फोन कॉल में
सोनिया ने दिल्ली में टूट की जानकारी पर अपने एक विश्वसनीय विधायक को फोन किया और उनके घरेलू मुद्दों पर बातचीत की, हालचाल पूछा। साथ ही किसी दिन निवास पर आकर मुलाकत करने को कहा। एक बड़े समाचार पत्र की मानें तो विधायक पर इस बात का इतना असर हुआ कि वह अन्य तीन विधायकों के साथ सोनिया के निवास पर मुलाकात के लिए पहुंच गए।
वहां सोनिया ने उनसे दिल्ली के मौजूदा हालात की जानकारी ली और आगे की रणनीति पर चर्चा की। इसके बाद उस विधायक ने न केवल यह तय किया कि वह भाजपा को समर्थन नहीं देंगे, बल्कि अपने अन्य साथियों को भी भाजपा से सांठगांठ न करने को प्रेरित किया।
कुल मिलाकर सोनिया के उस कॉल का असर कांग्रेस के न टूटने के रुप में हुआ। और अंततः भाजपा को चुनाव में खींचने में कारगर सिद्ध हुआ। अब जब दिल्ली में चुनाव होना तय है, तो एक बार फिर से कांग्रेस एकजुट दिख रही है और पूरी तैयारी के साथ चुनाव में उतरने में जुटी हुई है।