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Kargil Vijay Diwas: कॉलेज से कारगिल तक कैप्टन हनीफ ने लहराया था परचम, अंतिम सांस तक किया था दुश्मन का मुकाबला

अमर उजाला नेटवर्क, नई दिल्ली Published by: विजय पुंडीर Updated Tue, 26 Jul 2022 12:38 AM IST
सार

कारगिल युद्ध के दौरान बर्फ की चादर से ढकी कारगिल की चोटियों पर कैप्टन हनीफुद्दीन गोला-बारूद खत्म होने के बावजूद आगे बढ़ते रहे। उन्होंने अंतिम सांस तक दुश्मनों का मुकाबला किया। 

Captain Hanifuddin fought enemies till his last breath in Turtuk sector of Kargil
शहीद कैप्टन हनीफुद्दीन (फाइल फोटो) - फोटो : अमर उजाला

विस्तार
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कैप्टन हनीफुद्दीन ने कॉलेज से कारगिल तक जीत का परचम चलहराया था। दिल्ली विश्वविद्यालय के शिवाजी कॉलेज में पढ़ाई के दौरान अपनी बहुआयामी प्रतिभा के कारण हनीफुद्दीन ने मिस्टर शिवाजी का खिताब अपने नाम किया था। 7 जून 1997 को भारतीय सेना में कमीशन हासिल किया और इसके ठीक 2 साल बाद 7 जून 1999 को कारगिल के तुरतुक सेक्टर में वह वीर शिवाजी की ही भांति दुश्मनों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।



भारत माता की आन, बान और शान की रक्षा के लिए अबतक अनगिनत वीर सपूतों ने प्रांणों की आहूति दी है। देश की सीमाओं की हिफाजत करते हुए सिपाहियों ने अपने लहू से इस मिट्टी को सींचा है। कैप्टन हनीफुद्दीन ऐसे ही वीर सपूतों में से एक हैं, जिनके बलिदान के कारण कारगिल पर विजय हासिल हुई थी। वीर चक्र से सम्मानित शहीद कैप्टन हनीफ के छोटे भाई व पेशे से शिक्षक नफीस करीब 21 साल पुराने उस पल को याद करके गौरवान्वित हो उठते हैं। उन्होंने अपने भाई को देश के लिए समर्पित कर दिया।


नफीस बताते हैं कि उनके भाई हनीफ बेहद जोशीले और दिलकश इंसान थे। यदि वह सेना में नहीं होते तो बड़े संगीतकार होते। मां हेमा अजीज हिंदुस्तानी क्लासिकल सिंगर थीं। इसका असर हनीफ पर पड़ा। राजपूताना राइफल में तैनात होने के दौरान उन्होंने एक जॉज बैंड बनाया था। कारगिल की वीरान वादियों में अपने साथी सिपाहियों को वह गाने गाकर सुनाया करते थे।

हनीफुद्दीन की नानी स्वतंत्रता सेनानी थीं। वह अपनी नानी से बेहद प्रभावित थे और वीरगति को प्राप्त होने से पहले तक वह अपनी नानी को लगातार चिट्ठियां लिख कर कारगिल की गतिविधियों के बारे में बताया करते थे। कारगिल युद्ध के दौरान बर्फ की चादर से ढकी कारगिल की चोटियों पर वह गोला-बारूद खत्म होने के बावजूद आगे बढ़ते रहे। उन्होंने अंतिम सांस तक दुश्मनों का मुकाबला किया। कारगिल युद्ध जीतने के बाद भारतीय सेना ने कारगिल के तुरतुक सेक्टर का नाम हनीफुद्दीन सब सेक्टर रखा है। 

शहीद कैप्टन हनीफुद्दीन की स्मृति में पूर्वी दिल्ली के मयूर विहार फेज-1 में सड़क और सरकारी स्कूल का नाम रखा गया है। भाई नफीस ने बताया कि सड़क की नाम पट्टिका खराब हो गई है, इसे बदलने की जरूरत है। कैप्टन हनीफुद्दीन के नाम पर साल 2000 में कुल्लू में गरीब बच्चों के लिए एक विद्यालय खोला गया है। इसे एक स्थानीय स्वयंसेवी संस्था चला रही है। 

हनीफ की अम्मी की उम्र करीब 75 साल है। वह अब ज्यादातर समय शहीद बेटे की यादों को संजोए घर पर ही रखती हैं। उनके भाई नफीस कहते हैं कि देश किसी एक व्यक्ति से नहीं बनता। इसलिए जो लोग जिस भी पेशे में हैं, वह उसी के जरिए देश को आगे बढ़ाने में योगदान दे सकते हैं। उन्होंने कहा कि हनीफ अब केवल उनके भाई नहीं रहे, बल्कि नेशनल हीरो बन गए हैं, आने वाली पीढ़ी हनीफ से प्रेरणा ले सकती है।
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