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मूलरूप से कपूरथला के भुल्लथ के निकट गांव निक्की मयानी निवासी इकबाल भट्टी आज फ्रांस में भारतीय मूल के लोगों के लिए मसीहा बन चुके हैं। उन्होंने 16 साल पहले लवारिस भारतीयों के शवों की शिनाख्त कर उनको स्वदेश भेजने का मिशन शुरू किया था और अब तक वह 130 शव भारत भिजवा चुके हैं। अब तो फ्रांस सरकार भी उनका लोहा मानने पर मजबूर हो गई है।
यही वजह है कि फ्रांस में जब भी किसी भारतीय मूल के व्यक्ति की लवारिस लाश मिलती है तो पहली घंटी इकबाल भट्टी के फोन पर बजती है। पुलिस उनकी मदद लेकर शव की शिनाख्त करती है। 63 साल के इकबाल भट्टी 1991 में फ्रांस में पहुंचे थे। उन्होंने पहले वहां राजमिस्त्री का काम किया और आजकल एक स्टोर पर सेल्समैन के तौर पर कार्यरत हैं।
2003 में फ्रांस में भुल्लथ का युवक सुखविंदर सिंह लापता हो गया। वहां बने हर गुरुद्वारे में अनाउंसमेंट होने लगी। उसके दोस्त भी काफी परेशान थे। भट्टी कहते हैं कि इस घटना ने उनके जीवन का मकसद बदल डाला। सुखविंदर ने राजनीतिक शरण के लिए फ्रांस सरकार को आवेदन कर रखा था।
सुखविंदर को लेकर उनके अंदर दर्द उठा और उन्होंने खोजबीन शुरू की। इसके बाद पेरिस से लगभग 1500 किमी दूर पुर्तगाल बॉर्डर से उन्होंने सुखविंदर का शव ढूंढ निकाला।
भट्टी कहते हैं कि सुखविंदर को ढूंढते समय मैं मैं एक जासूस की तरह काम करने लगा था। मुझे पता चला कि सुखविंदर अक्सर एक चाइनीज लड़की से मुलाकात करने क्लब जाता था। वह उसे ढूंढते हुए क्लब तक पहुंचे और मैनेजर को अपना फोन नंबर देकर कहा कि अगर चाइनीज लड़की मिले तो उससे मेरी बात करवा दी जाए।
चंद दिनों के बाद उन्हें उस चाइनीज लड़की का फोन आया। उसने बताया कि सुखविंदर अवैध रूप से फ्रांस आया था और सरकार ने उसे पुर्तगाल बार्डर पर भेज दिया। पेरिस से पुर्तगाल काफी दूर था। रात को 11 बजे भट्टी ने अपनी कार उठायी और सुखविंदर की तलाश में पुर्तगाल बार्डर की ओर निकल पड़े। वहां पर जाकर पता चला कि सुखविंदर सरकारी घर में ठहरा था, जहां उसकी मौत हो गई थी।
सरकारी घर के मैनेजर को सुखविंदर के पास से कोई फोन नंबर नहीं मिला, जिससे उसकी शिनाख्त हो पा रही थी। इसके बाद भट्टी ने सुखविंदर के परिवार से संपर्क साधा और अनहोनी घटना से अवगत करवाया। भट्टी ने इसके बाद सुखविंदर की मां व जीजा को फ्रांस बुलाया और उसका अंतिम संस्कार किया गया।
भट्टी कहते हैं कि उनकी संस्था मृतक के परिवार से संपर्क करती है और उसके दस्तावेज, परिवार के साथ फोटो व तमाम दस्तावेजों का बंदोबस्त करती है। कई दिनों या कहें तो कई महीनों की मेहनत के बाद मृतक की देह को रजिस्टर किया जाता है। रजिस्ट्रेशन के बाद दो रास्ते होते हैं।
या तो शव भारत भेजा जाए या उसका संस्कार करने के बाद कलश में अस्थियां डालकर भारत रवाना की जाएं। अगर अस्थियां भेजनी होती हैं तो उसे पूरी तरह सील मर्तबान में डाला जाता है। अगर सील टूटी हुई मिल जाए तो कम से कम 6 महीने की सजा है। इसलिए इस काम को बड़ी सावधानी के साथ किया जाता है।
बिना शिनाख्त फ्रांस से बाहर नहीं जा सकता शव
भट्टी बताते हैं कि आप फ्रांस में बिना कागजों के दो नंबर में दाखिल तो हो सकते हैं लेकिन जब किसी की मौत हो जाती है तो उसकी असल पहचान तय किए बिना उसके शव को फ्रांस से बाहर नहीं भेजा जा सकता। अवैध रूप से फ्रांस में रह रहे भारतीयों की जब भी मौत होती है लोग मुझसे संपर्क करते हैं।
मूलरूप से कपूरथला के भुल्लथ के निकट गांव निक्की मयानी निवासी इकबाल भट्टी आज फ्रांस में भारतीय मूल के लोगों के लिए मसीहा बन चुके हैं। उन्होंने 16 साल पहले लवारिस भारतीयों के शवों की शिनाख्त कर उनको स्वदेश भेजने का मिशन शुरू किया था और अब तक वह 130 शव भारत भिजवा चुके हैं। अब तो फ्रांस सरकार भी उनका लोहा मानने पर मजबूर हो गई है।
यही वजह है कि फ्रांस में जब भी किसी भारतीय मूल के व्यक्ति की लवारिस लाश मिलती है तो पहली घंटी इकबाल भट्टी के फोन पर बजती है। पुलिस उनकी मदद लेकर शव की शिनाख्त करती है। 63 साल के इकबाल भट्टी 1991 में फ्रांस में पहुंचे थे। उन्होंने पहले वहां राजमिस्त्री का काम किया और आजकल एक स्टोर पर सेल्समैन के तौर पर कार्यरत हैं।
2003 में फ्रांस में भुल्लथ का युवक सुखविंदर सिंह लापता हो गया। वहां बने हर गुरुद्वारे में अनाउंसमेंट होने लगी। उसके दोस्त भी काफी परेशान थे। भट्टी कहते हैं कि इस घटना ने उनके जीवन का मकसद बदल डाला। सुखविंदर ने राजनीतिक शरण के लिए फ्रांस सरकार को आवेदन कर रखा था।
सुखविंदर को लेकर उनके अंदर दर्द उठा और उन्होंने खोजबीन शुरू की। इसके बाद पेरिस से लगभग 1500 किमी दूर पुर्तगाल बॉर्डर से उन्होंने सुखविंदर का शव ढूंढ निकाला।
1500 किमी दूर से तलाश लाए सुखविंदर का शव
भट्टी कहते हैं कि सुखविंदर को ढूंढते समय मैं मैं एक जासूस की तरह काम करने लगा था। मुझे पता चला कि सुखविंदर अक्सर एक चाइनीज लड़की से मुलाकात करने क्लब जाता था। वह उसे ढूंढते हुए क्लब तक पहुंचे और मैनेजर को अपना फोन नंबर देकर कहा कि अगर चाइनीज लड़की मिले तो उससे मेरी बात करवा दी जाए।
चंद दिनों के बाद उन्हें उस चाइनीज लड़की का फोन आया। उसने बताया कि सुखविंदर अवैध रूप से फ्रांस आया था और सरकार ने उसे पुर्तगाल बार्डर पर भेज दिया। पेरिस से पुर्तगाल काफी दूर था। रात को 11 बजे भट्टी ने अपनी कार उठायी और सुखविंदर की तलाश में पुर्तगाल बार्डर की ओर निकल पड़े। वहां पर जाकर पता चला कि सुखविंदर सरकारी घर में ठहरा था, जहां उसकी मौत हो गई थी।
सरकारी घर के मैनेजर को सुखविंदर के पास से कोई फोन नंबर नहीं मिला, जिससे उसकी शिनाख्त हो पा रही थी। इसके बाद भट्टी ने सुखविंदर के परिवार से संपर्क साधा और अनहोनी घटना से अवगत करवाया। भट्टी ने इसके बाद सुखविंदर की मां व जीजा को फ्रांस बुलाया और उसका अंतिम संस्कार किया गया।
संस्कार के बाद अस्थियां भेजना भी जोखिम भरा काम
भट्टी कहते हैं कि उनकी संस्था मृतक के परिवार से संपर्क करती है और उसके दस्तावेज, परिवार के साथ फोटो व तमाम दस्तावेजों का बंदोबस्त करती है। कई दिनों या कहें तो कई महीनों की मेहनत के बाद मृतक की देह को रजिस्टर किया जाता है। रजिस्ट्रेशन के बाद दो रास्ते होते हैं।
या तो शव भारत भेजा जाए या उसका संस्कार करने के बाद कलश में अस्थियां डालकर भारत रवाना की जाएं। अगर अस्थियां भेजनी होती हैं तो उसे पूरी तरह सील मर्तबान में डाला जाता है। अगर सील टूटी हुई मिल जाए तो कम से कम 6 महीने की सजा है। इसलिए इस काम को बड़ी सावधानी के साथ किया जाता है।
बिना शिनाख्त फ्रांस से बाहर नहीं जा सकता शव
भट्टी बताते हैं कि आप फ्रांस में बिना कागजों के दो नंबर में दाखिल तो हो सकते हैं लेकिन जब किसी की मौत हो जाती है तो उसकी असल पहचान तय किए बिना उसके शव को फ्रांस से बाहर नहीं भेजा जा सकता। अवैध रूप से फ्रांस में रह रहे भारतीयों की जब भी मौत होती है लोग मुझसे संपर्क करते हैं।