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Chandigarh News: पीजीआई में पहली बार इस बीमारी का इलाज, 13 साल से दर्द झेल रही थी महिला इंजीनियर

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चंडीगढ़ Published by: ajay kumar Updated Tue, 21 Mar 2023 03:47 PM IST
सार

प्रो. बबीता ने बताया कि इस मर्ज में मरीज के न्यूरल सर्किट में गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है। ऐसे में मरीज के दिमाग से संदेश का संचार अनियमित हो जाता है। इससे मरीज के पेशाब की थैली में पेशाब एकत्र करने की क्षमता कम होती जाती है। इससे 300 से 500 एमएल के बजाय 40 से 50 एमएल पेशाब के एकत्र होते ही दिमाग संदेश भेजने लगता है।

Successful treatment of Overactive Bladder through sacral neuromodulation technique in PGI
पीजीआई चंडीगढ़।

विस्तार
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चंडीगढ़ पीजीआई के विशेषज्ञों ने पहली बार अति सक्रिय दर्दनाक मूत्राशय (ओवर एक्टिव पेनफुल ब्लैडर) का सफल इलाज कर मरीज को राहत प्रदान की है। महिला मरीज 13 वर्षों से इस मर्ज के कारण भयंकर पीड़ा झेल रही थी। पीजीआई के यूरोलॉजी विभाग और पेन मैनेजमेंट यूनिट के डॉक्टरों ने सेक्रल न्यूरोमॉड्यूलेशन तकनीक अपनाकर यह सफलता हासिल की।



पेन मैनेजमेंट यूनिट की प्रभारी व एनेस्थिसिया विभाग की प्रो. बबीता घई ने बताया कि इस मर्ज में मरीज को हर आधे से एक घंटे में पेशाब करने की तीव्र इच्छा होती है। मरीज काबू नहीं कर पाता। पेशाब रोकने पर उसे भयंकर पीड़ा होती है। यह बीमारी दुर्लभ बामारी की श्रेणी में शामिल है। प्रति एक लाख की आबादी में ऐसे मरीजों की संख्या तीन से चार होती है।


विशेषज्ञों ने इस मर्ज का इलाज कर 27 वर्षीय युवती की जिंदगी बदल दी। इलाज की प्रक्रिया 27 फरवरी को पूरी की गई। उसके बाद से लगातार मरीज का फॉलोअप किया जा रहा है। मौजूदा समय में वह बिल्कुल सामान्य है। युवती पेशे से इंजीनियर है। उसका कहना है कि इस मर्ज के कारण उसका जीवन ठहर सा गया था। वह किसी सामाजिक और पारिवारिक आयोजन में शामिल नहीं हो पाती थी। 

Successful treatment of Overactive Bladder through sacral neuromodulation technique in PGI
पीजीआई चंडीगढ़
बड़ी मुश्किलों को झेलकर उसने अपनी पढ़ाई पूरी की। पिछले 13 वर्षों में उसके परिवार ने देश के अलग-अलग कोनों में उसकी बीमारी का इलाज कराने का प्रयास किया लेकिन सफलता नहीं मिली। बाद में वह पीजीआई पहुंची, जहां से उसे राहत मिली। उसने पीजीआई के डॉक्टरों का धन्यवाद किया।

न्यूरल सर्किट में आ जाती है गड़बड़ी
प्रो. बबीता ने बताया कि इस मर्ज में मरीज के न्यूरल सर्किट में गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है। ऐसे में मरीज के दिमाग से संदेश का संचार अनियमित हो जाता है। इससे मरीज के पेशाब की थैली में पेशाब एकत्र करने की क्षमता कम होती जाती है। इससे 300 से 500 एमएल के बजाय 40 से 50 एमएल पेशाब के एकत्र होते ही दिमाग संदेश भेजने लगता है, जिसके कारण मरीज को पेशाब करने की तीव्र इच्छा जाग जाती है और वह पेशाब किए बिना नहीं रह पाता। उसे हर आधे से एक घंटे पर पेशाब पास करना पड़ता है। इस स्थिति में पेशाब रोकने पर उसे भयंकर पीड़ा होती है।

कई चरण में किया गया मरीज का इलाज
अति सक्रिय दर्दनाक मूत्राशय नामक इस मर्ज की पहचान और इलाज बेहद कठिन है। यूरोलॉजी विभाग के प्रो. सुधीर ने बताया कि इस मर्ज की पहचान करना सामान्य डॉक्टरों के बस की बात नहीं है। इसके इलाज के लिए मल्टीमॉडल तकनीक का प्रयोग किया गया। इसमें यूरोलॉजिस्ट, पेन मैनेजमेंट विशेषज्ञ, मनोवैज्ञानिक और फिजियोथैरेपिस्ट शामिल थे। मरीज का कई चरण में अलग-अलग तरीके से प्रबंधन किया गया। इलाज के लिए सेक्रल न्यूरोमॉड्यूलेशन तकनीक का प्रयोग कर मस्तिष्क संबंधी विकार को दूर किया गया। इसके लिए इंप्लांटेबल पल्स जनरेटर का प्रयोग किया गया।
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