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Himachal Pradesh to take over Shanan power project from Punjab in March next year
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Punjab: अगले साल मार्च में हिमाचल ले लेगा शानन प्रोजेक्ट, CM सुक्खू ने लिखा पत्र, नहीं बढ़ेगी पंजाब की लीज
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, चंडीगढ़
Published by: ajay kumar
Updated Fri, 26 May 2023 01:05 AM IST
सार
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ब्रिटिश शासन के दौरान मंडी के तत्कालीन राजा जोगिंदर सिंह ने बिजली उत्पादन के लिए शानन प्रोजेक्ट को 3 मार्च 1925 को 99 साल के लिए पंजाब को लीज पर दिया था। इस लीज की अवधि 2 मार्च 2024 में समाप्त हो रही है। इस समय यह प्रोजेक्ट पावरकाम के अधीन 110 मेगावाट हाईड्रो बिजली पैदा करता है, जो पंजाब को काफी सस्ती पड़ती है।
पंजाब और हिमाचल के सीएम की बैठक।
- फोटो : अमर उजाला
हिमाचल सरकार ने शानन पावर प्रोजेक्ट से पंजाब को अलग करने की तैयारी शुरू कर दी है। हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने साफ कर दिया है कि इस प्रोजेक्ट की लीज अवधि समाप्त होने के बाद पंजाब के पक्ष में इसका नवीनीकरण नहीं किया जाएगा। लीज की अवधि समाप्त होते ही हिमाचल के इंजीनियर इस प्रोजेक्ट का कामकाज संभाल लेंगे।
शानन पावर प्रोजेक्ट की लीज 2 मार्च 2024 को समाप्त हो रही है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने इस लीज के नवीनीकरण या इसे बढ़ाने का कोई फैसला नहीं लिया है। हिमाचल के मुख्यमंत्री ने इस कार्य में पंजाब के मुख्यमंत्री से सहयोग देने की अपील करते हुए पंजाब पुनर्गठन एक्ट का भी हवाला दिया है।
पंजाब ने भी बंद कर दिया है प्रोजेक्ट का रखरखाव
ब्रिटिश शासन के दौरान मंडी के तत्कालीन राजा जोगिंदर सिंह ने बिजली उत्पादन के लिए शानन प्रोजेक्ट को 3 मार्च 1925 को 99 साल के लिए पंजाब को लीज पर दिया था। इस लीज की अवधि 2 मार्च 2024 में समाप्त हो रही है। इस समय यह प्रोजेक्ट पावरकाम के अधीन 110 मेगावाट हाईड्रो बिजली पैदा करता है, जो पंजाब को काफी सस्ती पड़ती है।
दूसरी ओर, पंजाब सरकार की उदासीनता के कारण यह प्रोजेक्ट अब काफी जर्जर हालत में है। पंजाब सरकार ने अपनी इमारतों, रोपवे ट्रॉली सेवा और परियोजना के अन्य उपकरणों का रखरखाव बंद कर दिया है। अंग्रेजों ने पठानकोट और जोगिंदरनगर के बीच भारी मशीनरी को शानन परिसर तक पहुंचाने के लिए एक नैरो गेज रेल लाइन भी बिछाई थी, जो आज एक पर्यटक स्थल के रूप में पहचान बना चुकी है। 1966 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद, केंद्र ने पंजाब को शानन पावर हाउस का अधिकार दिया था, क्योंकि ब्रिटिश प्रतिनिधि कर्नल बीसी बैटी और मंडी के राजा जोगिंदर सेन के बीच 1925 में हस्ताक्षरित पट्टा समझौता अभी समाप्त नहीं हुआ था।
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