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जैंती (अल्मोड़ा)। महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम सिंह धौनी ने देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए पूरा जीवन कुर्बान कर दिया। आजादी के 73 साल गुजर जाने के बाद भी सरकारों ने उनकी उपेक्षा ही की। वर्ष 2016-17 में जैंती में राम सिंह धौनी बहुउद्देश्यीय पुस्तकालय स्वीकृत हुआ था। पांच साल बीत जाने के बाद भी पुस्तकालय भवन नहीं बन सका है। यहां तक कि धौनी के नाम से जिस तल्ला बिनौला गांव को पहचान मिली, वहां लंबे अर्से बाद भी उनकी प्रतिमा तक नहीं लग सकी है।
क्रांतिकारी राम सिंह धौनी की स्मृति में वर्ष 2016-17 में जैंती में राम सिंह धौनी बहुउद्देश्यीय पुस्तकालय स्वीकृत हुआ था। इसके लिए शासन से 75 लाख रुपये स्वीकृत किए गए थे। सर्वोदय इंटर कालेज द्वारा पुस्तकालय के लिए भूमि दान में दी गई है। पुस्तकालय भवन की नींव पड़ने के बाद काम अधूरा पड़ा है। हालत यह है कि पुस्तकालय की नींव पड़ने के बाद काम अधूरा पड़ा है। पुस्तकालय का निर्माण कार्य पूरा नहीं होने के कारण क्षेत्रीय लोगों में भारी नाराजगी है।
देशसेवा के लिए ठुकरा दी तहसीलदार की सरकारी नौकरी: 1919 में राम सिंह धौनी बीए अंतिम वर्ष की परीक्षा की तैयारियों में जुटे थे। इसी दौरान उनकी माता का निधन हो गया। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद उनके परिजन चाहते थे कि वह कोई सरकारी नौकरी कर लें, लेकिन उन्होंने कुमाऊं कमिश्नर के तहसीलदार तक की सरकारी नौकरी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और पूरा जीवन देश सेवा में लगा दिया।
संक्षिप्त परिचय
क्रांतिकारी राम सिंह धौनी का जन्म जैंती तहसील के अंतर्गत तल्ला बिनौला गांव में 24 फरवरी 1893 में कुंती देवी और हिम्मत सिंह धौनी के घर में हुआ था। बचपन से कुशाग्र बुद्धि के राम सिंह धौनी ने बीए तक की पढ़ाई प्रथम श्रेणी में पास की। तब धौनी सालम क्षेत्र से स्नातक उपाधि पाने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने आजादी की लड़ाई के दौरान देश को गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए सालम समेत देश के अन्य क्षेत्रों में घूम-घूम कर लोगों में आजादी की अलख जगाई।
झाड़ियों में छिप गया धौनी आश्रम
जैंती (अल्मोड़ा)। सालम के महान क्रांतिकारी राम सिंह धौनी की मृत्यु के बाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने 1935 में राम सिंह धौनी आश्रम की स्थापना की। स्थापना के बाद से ही यह आश्रम स्वतंत्रता आंदोलन का प्रमुख केंद्र भी रहा। स्थिति यह है कि क्रांतिकारियों की स्मृति में बना आश्रम आज बदहाल हो गया है। आश्रम की छत टूटने लगी है और दीवारों से पत्थर गिर रहे हैं। आसपास झाड़ियां और घास उग गई है। इससे पूरा आश्रम झाड़ियों में छुप गया है।
राम सिंह धौनी के पैतृक गांव में जल्द उनकी प्रतिमा लगाई जानी चाहिए। राम सिंह धौनी बहुउद्देश्यीय पुस्तकालय का निर्माण कार्य जल्द पूरा किया जाना चाहिए। ताकि आने वाली भावी पीढ़ी को उनके त्याग, बलिदान, देशप्रेम से प्रेरणा मिल सके। स्वीकृति के पांच साल बाद भी पुस्तकालय न बनना क्रांतिकारी धौनी की उपेक्षा है। जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। - श्याम नारायण पांडे, सामाजिक कार्यकर्ता
जैंती (अल्मोड़ा)। महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम सिंह धौनी ने देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए पूरा जीवन कुर्बान कर दिया। आजादी के 73 साल गुजर जाने के बाद भी सरकारों ने उनकी उपेक्षा ही की। वर्ष 2016-17 में जैंती में राम सिंह धौनी बहुउद्देश्यीय पुस्तकालय स्वीकृत हुआ था। पांच साल बीत जाने के बाद भी पुस्तकालय भवन नहीं बन सका है। यहां तक कि धौनी के नाम से जिस तल्ला बिनौला गांव को पहचान मिली, वहां लंबे अर्से बाद भी उनकी प्रतिमा तक नहीं लग सकी है।
क्रांतिकारी राम सिंह धौनी की स्मृति में वर्ष 2016-17 में जैंती में राम सिंह धौनी बहुउद्देश्यीय पुस्तकालय स्वीकृत हुआ था। इसके लिए शासन से 75 लाख रुपये स्वीकृत किए गए थे। सर्वोदय इंटर कालेज द्वारा पुस्तकालय के लिए भूमि दान में दी गई है। पुस्तकालय भवन की नींव पड़ने के बाद काम अधूरा पड़ा है। हालत यह है कि पुस्तकालय की नींव पड़ने के बाद काम अधूरा पड़ा है। पुस्तकालय का निर्माण कार्य पूरा नहीं होने के कारण क्षेत्रीय लोगों में भारी नाराजगी है।
देशसेवा के लिए ठुकरा दी तहसीलदार की सरकारी नौकरी: 1919 में राम सिंह धौनी बीए अंतिम वर्ष की परीक्षा की तैयारियों में जुटे थे। इसी दौरान उनकी माता का निधन हो गया। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद उनके परिजन चाहते थे कि वह कोई सरकारी नौकरी कर लें, लेकिन उन्होंने कुमाऊं कमिश्नर के तहसीलदार तक की सरकारी नौकरी के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और पूरा जीवन देश सेवा में लगा दिया।
संक्षिप्त परिचय
क्रांतिकारी राम सिंह धौनी का जन्म जैंती तहसील के अंतर्गत तल्ला बिनौला गांव में 24 फरवरी 1893 में कुंती देवी और हिम्मत सिंह धौनी के घर में हुआ था। बचपन से कुशाग्र बुद्धि के राम सिंह धौनी ने बीए तक की पढ़ाई प्रथम श्रेणी में पास की। तब धौनी सालम क्षेत्र से स्नातक उपाधि पाने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने आजादी की लड़ाई के दौरान देश को गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए सालम समेत देश के अन्य क्षेत्रों में घूम-घूम कर लोगों में आजादी की अलख जगाई।
झाड़ियों में छिप गया धौनी आश्रम
जैंती (अल्मोड़ा)। सालम के महान क्रांतिकारी राम सिंह धौनी की मृत्यु के बाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने 1935 में राम सिंह धौनी आश्रम की स्थापना की। स्थापना के बाद से ही यह आश्रम स्वतंत्रता आंदोलन का प्रमुख केंद्र भी रहा। स्थिति यह है कि क्रांतिकारियों की स्मृति में बना आश्रम आज बदहाल हो गया है। आश्रम की छत टूटने लगी है और दीवारों से पत्थर गिर रहे हैं। आसपास झाड़ियां और घास उग गई है। इससे पूरा आश्रम झाड़ियों में छुप गया है।
राम सिंह धौनी के पैतृक गांव में जल्द उनकी प्रतिमा लगाई जानी चाहिए। राम सिंह धौनी बहुउद्देश्यीय पुस्तकालय का निर्माण कार्य जल्द पूरा किया जाना चाहिए। ताकि आने वाली भावी पीढ़ी को उनके त्याग, बलिदान, देशप्रेम से प्रेरणा मिल सके। स्वीकृति के पांच साल बाद भी पुस्तकालय न बनना क्रांतिकारी धौनी की उपेक्षा है। जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। - श्याम नारायण पांडे, सामाजिक कार्यकर्ता