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आज से सावन माह शुरू हो गया। पहले दिन जलाभिषेक और दर्शन-पूजन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु और कांवड़िए जलाभिषेक के लिए शिवमंदिरों पर जुटेंगे। बुधवार को सावन के पहले ही दिन भारी भीड़ जुटेगी। बावजूद इसके जिले के प्रमुख शिवधामों पर अव्यवस्थाओं का आलम है। कई जगहों पर धाम पर जाने वाली सड़कें खुदी हुई हैं तो कहीं पर गिट्टियां डालकर छोड़ दी गई हैं। ऐसे में श्रद्धालुओं और कांवड़ियों को परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।
बेलखरनाथधाम में जहां सड़क के दोनों तरफ टेलीफोन का केबिल बिछाने के लिए पटरी को खोदकर सड़क पर मिट्टी जमा कर दी गई है, वहीं मंगलवार की शाम तक घुइसरनाथधाम में बैरीकेडिंग तक नहीं की गई थी। बेलखरनाथधाम, हौदेश्वरनाथ, घुइसरनाथधाम के साथ-साथ भयहरणनाथधाम में धाम में ऐसे ही हालात हैं। जिले के प्रमुख शिवधामों से एक बेलखरनाथधाम में इस बार सावन की कोई तैयारी नहीं की गई है। बेलखरनाथधाम को जाने वाली सड़क जगदीशगढ़ से धाम तक बेहद खराब है। जगह-जगह गड्ढे और बिखरी हुई गिट्टियां भोले के भक्तों को चोटहिल कर सकती हैं। सड़क के किनारे केबिल डालने के लिए खुदी मिट्टी को सड़क पर फैला दिया गया है। इससे सड़क पर कीचड़ फैला गया है। स्नान घाट पर भी जंगली झाड़ियां उगी हुई हैं।
बेलखरनाथधाम में वर्षों पूर्व लगा हाईमास्ट सालभर से खराब पड़ा है। इससे शाम होते ही पूरा धाम अंधेरे में डूब जाता है। घुइसरनाथधाम में मंगलवार की शाम तक नदी में स्नान करने वाले भक्तों के लिए बैरीकेडिंग तक नहीं की गई थी। इससे भक्तों की भीड़ को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाएगा। कुंडा स्थित हौदेश्वरनाथ धाम को जाने वाली सड़क की दशा बेहद खराब है। सड़क पर फैली गिट्टियां और जगह-जगह गड्ढे में भरा पानी शिवभक्तों के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। इलाहाबाद की सीमा पर स्थित भयहरणनाथ धाम में बैरीकेडिंग नहीं होने से भक्तों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। भयहरणनाथ धाम से गौरा और दूसरा बासूराजा ढेमा की सड़क बेहद खराब है। प्रत्येक मंगलवार को होने वाले साप्ताहिक मेले में उमड़ने वाली भीड़ को नियंत्रित करने के लिए भी कोई पहल नहीं की गई है।
देवताओं ने शुरू की थी शिव जलाभिषेक की परंपरा
शिव पुराण में उल्लेख है कि समुद्र मंथन के समय 14 रत्नों में से एक हलाहल (विष) भी निकला था। इसके निकलते ही देवता और दानव सभी इसकी गर्मी से परेशान हो गए थे। उस समय सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने इसे पी लिया और अपने गले में ही रोक लिया। पं. बैजनाथ बताते हैं कि पुराण के अनुसार इसे पीने के बाद भगवान शिव उसकी गर्मी से बेचैन हो उठे थे। शीतलता प्राप्त करने के लिए तीनों लोकों में विचरण करने लगे। उन्हें परेशान देख देवताओं ने उन्हें शांत करने की युक्ति निकाली और विष की गर्मी को शांत करने के लिए गंगाजल लाकर उनका जलाभिषेक किया। उनके इस कार्य से भगवान शिव को भारी राहत मिली और वह शांत हो गए। इस पर भगवान ने देवताओं को आशीर्वाद देने के साथ ही यह वरदान दिया कि जो भी सावन माह में उन्हें गंगाजल का अभिषेक करेगा उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होगी।
कांवड़ यात्रा का विधिविधान
कांवड़ यात्रा के लिए पहले से तैयारी की जाती है। कांवड़ को सजाकर उसके दोनों किनारों पर मिट्टी की लुटिया बांधी जाती है ताकि गंगाजल ठंडा रहे। गंगा में खुद के साथ कांवड़ को स्नान कराकर जल भर लें। इसके बाद घाट पर कांवड़ पूजा की जाती है। इसमें उत्तर दिशा में मुंहकर खड़े हों और कांवड़ नीचे घुटनों के बल होकर दोनों हाथों से स्पर्श सहित उठानी चाहिए। इसे सिर के ऊपर से नहीं घुमाया जाता। एक कंधे से दूसरे कंधे पर ले जाने के लिए बगल से घुमाकर दूसरे कंधे पर ले जाया जाता है। नंगे पैर यात्रा की जाती है। यदि कपड़े का जूता या चप्पल पहनें तो सिर पर भी कपड़ा धारण करें। ब्रह्मचर्य के साथ जमीन या तख्त पर सोएं। तामसी भोजन, मादक पदार्थ, मांस, अंडा धूम्रपान, अश्लील साहित्य, वार्तालाप, फिल्म आदि पूर्णत: वर्जित हैं। तेल, साबुन और कंघे का भी प्रयोग नहीं होता। एक ही समय भोजन या फलाहार और कांवड़ उठाने के दिन घर में भी बनने वाली सब्जी या दाल में छौंका नहीं लगना चाहिए। विश्राम या शौच के बाद स्नान आवश्यक है। यात्रा के दौरान ओम नम: शिवाय का जाप करते हुए, गूलर की छाया से बचते हुए और कोई भी वस्तु नि:शुल्क नही ली जाती। रास्ते में पत्ते आदि नहीं तोड़ें। संकल्प स्थान पर पहुंचकर पूजा अर्चना के बाद जलाभिषेक करें और फिर प्रसाद आदि वितरित करें।
आज से सावन माह शुरू हो गया। पहले दिन जलाभिषेक और दर्शन-पूजन के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु और कांवड़िए जलाभिषेक के लिए शिवमंदिरों पर जुटेंगे। बुधवार को सावन के पहले ही दिन भारी भीड़ जुटेगी। बावजूद इसके जिले के प्रमुख शिवधामों पर अव्यवस्थाओं का आलम है। कई जगहों पर धाम पर जाने वाली सड़कें खुदी हुई हैं तो कहीं पर गिट्टियां डालकर छोड़ दी गई हैं। ऐसे में श्रद्धालुओं और कांवड़ियों को परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।
बेलखरनाथधाम में जहां सड़क के दोनों तरफ टेलीफोन का केबिल बिछाने के लिए पटरी को खोदकर सड़क पर मिट्टी जमा कर दी गई है, वहीं मंगलवार की शाम तक घुइसरनाथधाम में बैरीकेडिंग तक नहीं की गई थी। बेलखरनाथधाम, हौदेश्वरनाथ, घुइसरनाथधाम के साथ-साथ भयहरणनाथधाम में धाम में ऐसे ही हालात हैं। जिले के प्रमुख शिवधामों से एक बेलखरनाथधाम में इस बार सावन की कोई तैयारी नहीं की गई है। बेलखरनाथधाम को जाने वाली सड़क जगदीशगढ़ से धाम तक बेहद खराब है। जगह-जगह गड्ढे और बिखरी हुई गिट्टियां भोले के भक्तों को चोटहिल कर सकती हैं। सड़क के किनारे केबिल डालने के लिए खुदी मिट्टी को सड़क पर फैला दिया गया है। इससे सड़क पर कीचड़ फैला गया है। स्नान घाट पर भी जंगली झाड़ियां उगी हुई हैं।
बेलखरनाथधाम में वर्षों पूर्व लगा हाईमास्ट सालभर से खराब पड़ा है। इससे शाम होते ही पूरा धाम अंधेरे में डूब जाता है। घुइसरनाथधाम में मंगलवार की शाम तक नदी में स्नान करने वाले भक्तों के लिए बैरीकेडिंग तक नहीं की गई थी। इससे भक्तों की भीड़ को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाएगा। कुंडा स्थित हौदेश्वरनाथ धाम को जाने वाली सड़क की दशा बेहद खराब है। सड़क पर फैली गिट्टियां और जगह-जगह गड्ढे में भरा पानी शिवभक्तों के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। इलाहाबाद की सीमा पर स्थित भयहरणनाथ धाम में बैरीकेडिंग नहीं होने से भक्तों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। भयहरणनाथ धाम से गौरा और दूसरा बासूराजा ढेमा की सड़क बेहद खराब है। प्रत्येक मंगलवार को होने वाले साप्ताहिक मेले में उमड़ने वाली भीड़ को नियंत्रित करने के लिए भी कोई पहल नहीं की गई है।
देवताओं ने शुरू की थी शिव जलाभिषेक की परंपरा
शिव पुराण में उल्लेख है कि समुद्र मंथन के समय 14 रत्नों में से एक हलाहल (विष) भी निकला था। इसके निकलते ही देवता और दानव सभी इसकी गर्मी से परेशान हो गए थे। उस समय सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने इसे पी लिया और अपने गले में ही रोक लिया। पं. बैजनाथ बताते हैं कि पुराण के अनुसार इसे पीने के बाद भगवान शिव उसकी गर्मी से बेचैन हो उठे थे। शीतलता प्राप्त करने के लिए तीनों लोकों में विचरण करने लगे। उन्हें परेशान देख देवताओं ने उन्हें शांत करने की युक्ति निकाली और विष की गर्मी को शांत करने के लिए गंगाजल लाकर उनका जलाभिषेक किया। उनके इस कार्य से भगवान शिव को भारी राहत मिली और वह शांत हो गए। इस पर भगवान ने देवताओं को आशीर्वाद देने के साथ ही यह वरदान दिया कि जो भी सावन माह में उन्हें गंगाजल का अभिषेक करेगा उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होगी।
कांवड़ यात्रा का विधिविधान
कांवड़ यात्रा के लिए पहले से तैयारी की जाती है। कांवड़ को सजाकर उसके दोनों किनारों पर मिट्टी की लुटिया बांधी जाती है ताकि गंगाजल ठंडा रहे। गंगा में खुद के साथ कांवड़ को स्नान कराकर जल भर लें। इसके बाद घाट पर कांवड़ पूजा की जाती है। इसमें उत्तर दिशा में मुंहकर खड़े हों और कांवड़ नीचे घुटनों के बल होकर दोनों हाथों से स्पर्श सहित उठानी चाहिए। इसे सिर के ऊपर से नहीं घुमाया जाता। एक कंधे से दूसरे कंधे पर ले जाने के लिए बगल से घुमाकर दूसरे कंधे पर ले जाया जाता है। नंगे पैर यात्रा की जाती है। यदि कपड़े का जूता या चप्पल पहनें तो सिर पर भी कपड़ा धारण करें। ब्रह्मचर्य के साथ जमीन या तख्त पर सोएं। तामसी भोजन, मादक पदार्थ, मांस, अंडा धूम्रपान, अश्लील साहित्य, वार्तालाप, फिल्म आदि पूर्णत: वर्जित हैं। तेल, साबुन और कंघे का भी प्रयोग नहीं होता। एक ही समय भोजन या फलाहार और कांवड़ उठाने के दिन घर में भी बनने वाली सब्जी या दाल में छौंका नहीं लगना चाहिए। विश्राम या शौच के बाद स्नान आवश्यक है। यात्रा के दौरान ओम नम: शिवाय का जाप करते हुए, गूलर की छाया से बचते हुए और कोई भी वस्तु नि:शुल्क नही ली जाती। रास्ते में पत्ते आदि नहीं तोड़ें। संकल्प स्थान पर पहुंचकर पूजा अर्चना के बाद जलाभिषेक करें और फिर प्रसाद आदि वितरित करें।